Home अर्थव्यवस्था जिन नौकरशाहों को नियंत्रित करने आरटीआई कानून लाया उन्ही को बनाया कानून...

जिन नौकरशाहों को नियंत्रित करने आरटीआई कानून लाया उन्ही को बनाया कानून का पहरेदार – आत्मदीप पूर्व मध्य प्रदेश सूचना आयुक्त

350
0
99th National Webinar

आरटीआई कानून के क्रियान्वयन के 120 दिन के भीतर मिलने वाली जानकारी आज भी बनी है सपना – भूपेंद्र धर्माणी पूर्व हरियाणा सूचना आयुक्त

पत्रकारिता में रहते हुए आरटीआई कानून का उपयोग कर किये बड़े बदलाव – पत्रकार रमेश शर्मा

गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा विकास और भ्रष्टाचार उन्मूलन को लेकर आयोजित हुआ 99 वां आरटीआई वेबिनार

दिनाँक 15 मई 2022,

आरटीआई कानून जनजागृति को लेकर 99 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की जबकि विशिष्ट अतिथियों के तौर पर पूर्व हरियाणा सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्मानी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक रमेश शर्मा सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजक एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया जबकि सहयोगियों में छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह सम्मिलित रहे। 99 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का विषय गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा विकास एवं भ्रष्टाचार उन्मूलन में आरटीआई की भूमिका रखा गया।

जब तक जवाबदेही तय नहीं होती आरटीआई कानून का वास्तविक औचित्य स्पष्ट नहीं हो पाएगा – भूपेंद्र धर्माणी

कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए हरियाणा के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्मानी ने बताया की आर टी आई कानून में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं है। हम मात्र छोटे-छोटे सक्सेस स्टोरी में ही अपने आप को प्रसन्न रखते हैं जबकि बड़ी जगह में कोई बदलाव नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि लोक सूचना अधिकारी के दायित्व को लेकर यदि देखा जाय जिसमें बहुत निचले स्तर के कर्मचारी को लोक सूचना अधिकारी बनाया जाता है जिसकी पूरे सिस्टम में अधिकारिकता कम रहती है। जबकि होना यह चाहिए की उस विभाग के विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए तभी कुछ हो पाएगा और आरटीआई कानून के तहत जो जुर्माने की कार्यवाही की जाती है वह इन वरिष्ठ अधिकारियों के सर्विस बुक में चढ़ाई जानी चाहिए और पेनल्टी वसूलने की त्वरित व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कार्यक्रम के दौरान अपने कार्यकाल के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय भी साझा किए जिसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार से वृद्ध की पेंशन दिलवाए जाने पर वृद्ध ने बहुत प्रसन्नता महसूस की। हरियाणा के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त ने यह भी बताया कि आरटीआई कानून के क्रियान्वयन के 17 वर्ष पूरे होने को है और आज स्थिति यह है की धारा 4(1)(बी) के तहत जो बाध्यताएं लोक प्राधिकारीयों को दी गई है वह आज तक पूरी नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा धारा 4(1)(बी) में बहुत सारी ऐसी जानकारियां हैं जो कानून के क्रियान्वयन के 120 दिन के भीतर पब्लिक के बीच साझा की जानी चाहिए थी लेकिन वह आज भी पूरी नहीं हो पाई हैं जो काफी चिंता का विषय है।

आरटीआई से प्राप्त जानकारी को पत्रकारिता को सशक्त करने का बनाया अधिकार – पत्रकार रमेश शर्मा

उधर कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार एवं ओपन आई मैगजीन के वरिष्ठ संपादक रमेश शर्मा ने कहा कि आरटीआई कानून के माध्यम से उन्होंने समय-समय पर काफी जानकारियां एकत्रित की और समय-समय पर अपनी पत्रिका में छापते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस विषय पर समय-समय पर उन्होंने सरकार और विभागों को भी लिखा है जिसके बाद बड़े बड़े बदलाव हुए हैं। इसी प्रकार उन्होंने कुछ निर्णयों को भी साझा किया जिसके माध्यम से प्रशासनिक ढांचे में बड़े बदलाव किए गए। उन्होंने आरटीआई से संबंधित कुछ कटु अनुभवों को भी साझा किया जिसमें अफसरों ने उन्हें किस तरह से टॉर्चर किया और यहां तक कह डाला कि यह व्यक्ति आरटीआई लगाकर ब्लैकमेल कर रहा है। लेकिन वरिष्ठ संपादक ने कहा कि उन्हें इस बात का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपने कर्तव्य मार्ग पर अडिग रहे। उनके द्वारा आरटीआई लगाकर किए गए कई बदलावों में से एक होटलों से संबंधित बदलाव के विषय में बताया कि कैसे उन्होंने आरटीआई लगाकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा कंसेंट टू ऑपरेट और अन्य एनओसी के विषय में जानकारी चाही और जांच के बाद पूरे प्रदेश में लागू करवाया जो कि पर्यावरण के मुद्दे को लेकर व्यापक जनहित का मामला था। ऐसे ही कई महत्वपूर्ण बदलावों का वरिष्ठ संपादक ने जिक्र किया।

दस्तावेजों के स्थान पर लोक सूचना अधिकारी निरीक्षण के आदेश नहीं दे सकता – आत्मदीप

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कई वाकयों का हवाला देकर आरटीआई कानून के महत्व को पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण औजार के तौर पर बताया। उन्होंने एक आवेदक के प्रश्न का जवाब देते हुए बताया कि आरटीआई कानून में यदि दस्तावेज मांगे गए हैं तो दस्तावेज दिए जाने चाहिए एवं निरीक्षण मांगे गए हैं तो निरीक्षण करवाया जाना चाहिए। लोक सूचना अधिकारी मनमाने ढंग से दस्तावेज के स्थान पर निरीक्षण करवाए जाने हेतु पत्र जारी नहीं कर सकता।

  उन्होंने भोपाल से फिजियोथैरेपिस्ट एवं आरटीआई कार्यकर्ता प्रकाश अग्रवाल के कार्यों के विषय में भी विस्तार से चर्चा की और बताया कि कैसे बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने और भ्रष्टाचार उन्मूलन में उन्होंने आरटीआई को माध्यम बनाकर बड़े बदलाव किए। रेलवे से संबंधित एक मामले का जिक्र करते हुए कहा कि प्रकाश अग्रवाल ने रेलवे विभाग में आरटीआई लगाते हुए जानकारी चाही थी कि रेल टिकट जो कंफर्म नहीं होते हैं एवं वेटिंग रहते हैं उनके निरस्तीकरण के बाद जो शुल्क रेलवे विभाग के द्वारा लगाया जाता है उसका क्या आधार है? अर्थात उसमें कन्वेनेंस शुल्क, बैंक शुल्क आदि किस प्रकार से काटा जाता है? जिसके विषय में रेलवे विभाग ने उनके आरटीआई आवेदन को कई जगह घुमाया पर अंत में जब मामला आईआरसीटीसी के पास पहुंचा तो मात्र इतना जवाब प्राप्त हुआ कि रेलवे के नियमों के तहत ही कार्यवाही की जाती है और शुल्क काटा जाता है। इसके बाद भी जब वह संतुष्ट नहीं हुए और आयोग में द्वितीय अपील की तो मामले का निराकरण हुआ और जो भी अतिरिक्त शुल्क काटी जाती थी वह बंद की गई। प्रकाश अग्रवाल ने अपना तर्क दिया कि इस प्रकार मनमाने तरीके से आईआरसीटीसी और रेलवे के द्वारा शुल्क लिया जाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया अभियान के विरुद्ध है। डिजिटल इंडिया के तहत सभी सेवाएं कम से कम शुल्क और आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए लेकिन यहां पर उल्टा किया जा रहा है जिसके आधार पर सूचना आयोग ने निर्देश जारी किया और व्यवस्था में सुधार हुआ।

इसी प्रकार ऐसे कई मामलों की चर्चा 99 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में उपस्थित विशेषज्ञों के द्वारा की गई। कार्यक्रम में देश के विभिन्न कोनो से जुड़े आरटीआई आवेदकों सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं जनहित के मुद्दों को उठाने वाले अतिथिगणों ने अपनी-अपनी बातें रखीं और उपस्थित विशेषज्ञों से लाभ प्राप्त किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here