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चोर्यासी विधानसभा पर भाजपा का उम्मीदवार घोषित संदीप देसाई को टिकट – झंखना पटेल के समर्थक ने किया विरोध

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सूरत की चौर्यासी विधानसभा सीट पर भारी खींचतान के बाद भाजपा ने आखिरकार जिला अध्यक्ष संदीप देसाई को टिकट दिया है। जातिगत समीकरण के हिसाब से संदीप देसाई चौर्यासी सीटों पर फिट नहीं बैठते लेकिन इस सीट पर बीजेपी के सिंबल पर आसानी से जीत हासिल की जा सकती है। पार्टी में बिनविवादित झंखना पटेल पोलिटिकल गोडफाधर के अभाव से स्व. पिता राजा पटेल की मौजुदा सीट पर टिकट रिपिट नही हो पायी।

झंखना पटेल बीजेपी के अंदरूनी अहंकार का शिकार हो गई.

सूरत शहर के अधिकांश विधायक दोहराए गए हैं। विधानसभा की चौर्यासी विधायक झंखना पटेल का काम पांच साल के दौरान कोई खास नही रहा। लेकि न उन्हें लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ। कोरोना काल में वे अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए अधिक मददगार रहे। शहर में हर्ष संघवी के अलावा सिर्फ झंखना पटेल ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के मजदूर वर्ग के लिए भोजन की पहुंच के लिए एक अच्छी व्यवस्था बनाई। इस क्षेत्र में सेवा गतिविधियों में शामिल लोग थे उन्हीं के समन्वय से समुह रसोई भी शुरू की गई थी।

झंखना पटेल को राजनीति विरासत में मिली

सूरत की चौर्यासी सीट पर विधायक झंखना पटेल की सीट कट गई है। कोली पटेलों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। झंखना पटेल के पिता स्वर्गीय राजू पटेल भारतीय जनता पार्टी के विधायक थे। कोली पटेल समाज में उनका काफी दबदबा था। झंखना पटेल ने भी पिता की मृत्यु के बाद इस सीट पर जीत हासिल की। चौर्यासी सीटों पर कोली पटेल समुदाय बीजेपी के पक्ष में वोट करता रहा है। झंखना पटेल भी अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य की तुलना में राजनीति में अधिक सक्रिय थीं क्योंकि उनके पिता एक विधायक थे।

कौन हैं संदीप देसाई?

संदीप देसाई एपीएमसी के पूर्व अध्यक्ष रमन जानी का हाथ पकड़कर आगे बढ़े। धीरे-धीरे सहकारिता के क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने लगा। उन्होंने एपीएमसी और सुमुल डेयरी में भी सहकारी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। वर्तमान में सूरत जिला भाजपा के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने भाजपा संगठन में अपने आदमियों को खड़ा भी किया। चर्चा है कि अहंकार के कारण झंखना पटेल और सांसद के बीच अनबन हो गई थी।

संदीप देसाई जातिगत समीकरण में फिट नहीं

चौर्यासी सीटों पर सबसे ज्यादा वोटर कोली पटेल और परप्रांतियो के हैं। जिसमें उत्तर भारतीयों की संख्या भी सबसे अधिक है। अगर कोली पटेल को इस सीट से टिकट नहीं दिया जाता है तो किसी उत्तर भारतीय को यह टिकट दिया जाता है। लेकिन संदीप देसाई वैसे भी इस सीट पर जातिगत समीकरण में फिट नहीं बैठते, भले ही सूरत जिला भाजपा अध्यक्ष और स्थानीय सांसद से अच्छे संबंधों के चलते ही उनका नाम संसदीय बोर्ड में रखा गया था। हालांकि, आखिरी वक्त में स्थिति ऐसी थी कि झंखाना पटेल इस स्थिति में थी कि जो भी उनके सामने रखा जाता, उनका कार्ड काट दिया जाता। जिसका सीधा फायदा संदीप देसाई को हुआ।

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