क्रांति समय, सूरत, रविवारीय कार्यक्रम में महावीर समवसरण का विशाल एवं भव्य पंडाल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था. जन-जन के आध्यात्मिक उत्थान के लिए निरंतर ज्ञान की गंगा बहाने वाले जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें आचार्य एवं अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवेश से जैन शासन का संपूर्ण महावीर समवसरण जयनाद से गूंज उठा.
अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयरो आगम के माध्यम से मंगल उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य जीवन जीता है. सामान्यतः मनुष्य में निर्भय रहने की भावना या आकांक्षा होती है. प्रश्न यह है कि मनुष्य किससे डरता है? इसका उत्तर यह है कि मनुष्य के भय का मूल दुःख है. कोई भी आदमी दर्द नहीं चाहता. उसे बीमारी, अपमान, चोरी, डकैती और कभी-कभी अपने जीवन की सुरक्षा का डर रहता है. मनुष्य मुख्यतः दुःख से डरता है. आगम में कहा गया है कि मनुष्य सहित प्रत्येक प्राणी भयमुक्त जीवन जीना चाहता है. वस्तुतः अभय अहिंसा का मूलमंत्र है. मनुष्य को स्वयं भी अभय बनने और दूसरों को भी अभय देने का प्रयास करना चाहिए.
दुनिया में सबसे खुश आदमी वह है जिसने डर पर विजय पा ली है. मनुष्य को न तो स्वयं डरना चाहिए और न ही दूसरों को डराने का प्रयास करना चाहिए. अगर जीवन में सफल होना है तो ईंट का जवाब पत्थर से नहीं फूल से देना चाहिए. बीमारी, पीड़ा या मृत्यु का सामना होने पर भी व्यक्ति को समता और शांति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए. प्राणियों की रक्षा करना अर्थात् अभयदान देना ही दान का सर्वोत्तम रूप है. आगम का कहना है कि यदि सभी प्राणी अभय चाहते हैं तो मनुष्य को प्राणियों के प्रति किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए.
आचार्यश्री ने ‘परस्परोपग्रहोजीवनम्’ की चर्चा करते हुए कहा कि यह पारिवारिक एवं सामुदायिक जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र बन सकता है. मनुष्य को एक-दूसरे का सहयोग करने का प्रयास करना चाहिए. मनुष्य को आपसी सहयोग की भावना से जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए.
पूज्य आचार्यश्री ने आगे कहा कि वर्तमान विश्व में अनेक देशों के बीच युद्ध हो रहे हैं. युद्ध किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है. समस्या के स्थायी समाधान के लिए आपसी संवाद होना चाहिए. एक बार संवाद करें, यदि सफल न हो तो दोबारा संवाद करें. तीसरी बार बातचीत करें. यदि चर्चा जारी रहेगी तो कभी कभी सफलता की आवश्यकता होगी.
मंगल उपदेश के बाद अनेक तपस्वियों ने उनकी तपस्या स्वीकार की. ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन के दूसरे दिन आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के बाद मुनि कुमारश्रमणजी ने दुख में भी सुख ढूंढने की प्रेरणा दी. जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुत कुमारजी ने ‘बेटी तेरापंथ की’ प्रकल्प के संबंध में अपनी अभिव्यक्ति दी. फिर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि चातुर्मास के दौरान कई संगठनों की बैठकें आयोजित की जाती हैं. ‘बेटी तेरापंथ की’ की यह नई प्रेरणा जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा से मिली है. जैसा कि मैंने कहा कि दामाद बेटियों के साथ आएं, यह बेहतर है. बेटी और दामाद के बाद दोहित्र और दोहित्री भी जुड़े हुए हैं. यह सम्मेलन का दूसरा और आखिरी दिन है. आपकी बेटी और दामाद समृद्ध हों और धार्मिक रूप से खुश रहें. आत्मिक सुख एवं शांति की अनुभूति होनी चाहिए. आप जहां भी रहें धार्मिक-आध्यात्मिक सेवाएं प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए, परिवारों में शांति हो, कलह की संभावना न हो, नशे से परहेज हो.
‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन में शामिल हुई कच्छ-भुज की बेटियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपने गीत प्रस्तुत किये.