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बिना बिरजू महाराज के अधूरा लगा ‘कलंक’ का गाना घर मोरे परदेसिया

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खास बातें

  • डिजिटल रिव्यू: घर मोरे परदेसिया (गाना)
  • कलाकार: प्रीतम (संगीतकार), अमिताभ भट्टाचार्य (गीतकार), श्रेया घोषाल व वैशाली म्हादे (गायक)। माधुरी दीक्षित, आलिया भट्ट, वरुण धवन (अदाकार)। कोरियोग्राफर – रेमो डिसूजा
  • फिल्म: कलंक   

फागुन में ब्रज की होली की धूम है। होली अवध की भी मशहूर है। और, होली में सब माफ है। ये भी कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भी कोई बिरहन है। और, उनसे भी किसी के नैना मिल सकते हैं। ये कमाल भी अमिताभ भट्टाचार्य ही कर सकते हैं, बोल हैं ‘ना तो मइया की लोरी, ना तो फागुन की होरी, मुझे कुछ दूसरा ना भाए रे। जब से नैना ये जाके, एक धनुर्धर से लागे, तब से बिरहा मोहे सताए रे।‘

निर्देशक अभिषेक वर्मन की फिल्म कलंक का ट्रेलर जो छाप नहीं छोड़ पाया, उस पर थोड़ा पक्का रंग चढ़ाने की कोशिश की है कोरियोग्राफ रेमो डिसूजा ने। रेमो रैप, हिप हॉप, कंटेमपरेरी के मास्टर हैं। खालिस देसी संगीत पर गाना फिल्माना उनके लिए चुनौती ही रहा होगा, नहीं तो इतने शानदार गीत संगीत पर भला माधुरी को कौन नहीं नचाना चाहेगा।

लेकिन, झूले पर बलखाती माधुरी जमीन पर उतर कर भी थिरकती नहीं हैं, तो उसकी वजह हैं साथ में आलिया भट्ट का होना। और, कोरियोग्राफर बिरजू महाराज का ना होना। लिप सिंक आलिया के अभिनय की कमजोर कड़ी है। सरगम के आरोह अवरोह में इसीलिए उनका चेहरा कैमरे के अपोजिट रहता है।

उम्मीद थी कि अभिषेक दो हीरोइनों के इस गाने में देवदास में माधुरी-ऐश्वर्या या बाजीराव मस्तानी में दीपिका-प्रियंका की जुगलबंदी जैसा कुछ कमाल दिखाएंगे। लेकिन, हर कोई तो संजय लीला भंसाली नहीं हो सकता ना। दो अंतरों के बीच के म्यूजिक पर ही गाने में दिख रहे कलाकार की असल पहचान होती है। अभिषेक ने यहां खाली जगह भरने के लिए वरुण धवन को लगा दिया है।

गाना कमाल है। रावणहत्था और तबला तरंग लगाकर प्रीतम ने संगीत भी धमाल बनाया है। बस, माधुरी और आलिया की नृत्य जुगलबंदी हो जाती तो अभिषेक वर्मन सम्मान सहित परीक्षा जरूर पास कर जाते।

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