विशाल रजक/ भरत रजक तेन्दूखेड़ा/दमोह,
दमोह सागर एवं छतरपुर जिलों की आठ विधानसभाओं में फैली दमोह संसदीय सीट काफी अहम मानी जाती है बुंदेलखंड के इस लोकसभा क्षेत्र में 30 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का ही परचम लहरा रहा है विकास के मामले में यह इलाका आज भी काफी पिछड़ा हुआ है दूर-दराज के इलाकों की बात तो छोड़िये रानी दमयंती की नगरी में भी समस्याओं का अंबार है बावजूद इसके यहां जातिगत समीकरणों का ऐसा सैलाब आता है कि उसमें पानी की समस्या जैसे मुद्दे तक डूब जाते हैं औद्योगिक शून्यता स्वास्थ्य सेवाओं शिक्षा के साधनों की कमी ऐसी समस्याएं हैं जो कभी भी यहां चुनावी समर में मुद्दा नहीं बन पाए।यह नगर विकास से कोसों दूर है ले देकर एकमात्र सीमेंट फैक्ट्री है जिससे नरसिंहगढ़ के स्थानीय लोगों को थोड़ा बहुत रोजगार मिल जाता है इसके बाद भी यहां कोई विकास की चर्चा करने ही तैयार नहीं।जाति का प्रभाव इस कदर हावी है कि यहां पिछले 25 वर्षों से जाति के आधार पर ही सांसद चुने जाते हैं इस बार पुनः भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने वर्तमान सांसद प्रहलाद पटेल को चुनावी समर में उतारा गया है इसके जवाब में कांग्रेस ने प्रताप सिंह लोधी पर दांव खेला है दोनों ही प्रत्याशियों के लोधी जाति से होने के कारण मुकाबला कांटे होने की पूरी संभावना है
जातिगत समीकरण
अब तक जातीय समीकरण ही इस सीट पर हार -जीत की इबादत लिखता आया है दमोह क्षेत्र में लोधी मतदाता है और कुर्मी मतदाताओं की संख्या लाखों में है सबसे अधिक दलित आदिवासी मतदाता है देवरी जबेरा बंडा और बड़ामलहरा तो पथरिया रहली और गढ़ाकोटा में कुर्मी वोटर निर्णायक स्थिति में है यहां कारण है कि रामकृष्ण कुसमरिया चार बार यहां से सांसद रहे और उसके बाद यहां लोधी जाति के प्रत्याशी सांसद चुने गए कुर्मी मतदाताओं को पिछले विधानसभा चुनाव से पहले तक भाजपा समर्थन माना जाता था कितुं पूर्व सांसद रामकृष्ण कुसमरिया द्वारा भारतीय जनता पार्टी को टाटा बाय -बाय कहकर कांग्रेस का दामन थाम लिए जाने से अब माना जा रहा है कि ये मतदाता भारतीय जनता पार्टी से विमुख हो सकते हैं
कार्यकर्ता और जनता दोनों उदासीन
भारतीय जनता पार्टी के मैदानी कार्यकर्ताओं में आक्रोश देखा जा रहा है भाजपा के छोटे नेताओं में निष्क्रियता है यहाँ 6 मई को मतदान होना है इसके बावजूद कार्यकर्ताओं में जरा भी सक्रियता नहीं दिखाई दे रही है प्रचार प्रसार का हाल यह है कि आमतौर पर मुख्य मार्गों तथा उनके आसपास दिखाई देने वाले पार्टी के झंडे तक नदारद है कांग्रेस की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है पार्टी में अंदरूनी या बाहरी बिखराव तो नहीं है किंतु कार्यकर्ताओं में वह उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है जो अपने प्रत्याशी को विजय की दहलीज पार करवा दें ग्रामीण अभी खेती के कार्यो में व्यस्त हैं जिससे गांवों की चौपालें सूनी पड़ी हुई है और वहां होने वाली राजनैतिक गरमा गरम चर्चाओं की जगह सन्नाटा पसरा रहता है कस्बा तथा अर्धशहरी क्षैत्रों में राजनैतिक चर्चाओं के केंद्र रहने वाले चाय पान के ठेले भी अभी नीरस पड़े हुए हैं
विधानसभा चुनाव की क्षेत्रवार स्थिति
पिछले विधानसभा चुनाव परिणामों पर दुष्टि डाली जाए तो इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर कांग्रेस का कब्जा है जबकि एक पर बसपा के उम्मीदवार ने फतह हासिल की है और मात्र 3 सीटें भारतीय जनता पार्टी के पास है वोटों का गणित देखा जाए तो पलड़ा भारतीय जनता पार्टी की ओर झुका हुआ है कांग्रेस चार सीटें जीतने के बाद भी कुल वोटों की संख्या में भाजपा से पीछे है लोकसभा की सभी आठों सीटों पर भाजपा को कांग्रेस की तुलना में 15 हजार मत अधिक प्राप्त हुए हैं इस दूष्टि से देखा जाए तो कांग्रेस को काफी मेहनत करनी होगी जिससे कि यह अंतर पाटा जा सके। कांग्रेस का अपना तर्क है कि जबेरा विधानसभा क्षेत्र में विद्रोही उम्मीदवारों के कारण उनका वोट घट गया लेकिन इस चुनाव में अब स्थिति वैसी नहीं है यहां आदित्य सॉलोमन ने निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में 20 हजार वोट हासिल किए थे यह कांग्रेस का पराम्परागत वोट था आदित्य सॉलोमन के कांग्रेस ज्वाइन कर लिए जाने के बाद अब स्थिति बदल जाएगी ऐसा राजनैतिक पंडितों का मानना है