सत्ता का विकेन्द्रीकरण करते हुए गांव के विकास की जिम्मेदारी पंचायतें को दी गई लेकिन सरपंच और सचिवें ने पंचायत का विकास करने के बजाय अपना विकास किया है। यही वजह है कि करोड़ें रूपए पंचायत के खाते में आने के बाद भी स्थिति पहले से बदतर हो गई है। घटिया निर्माण कार्यों पर लगातार सवाल उठ रहे हैं उधर सड़कें बनते ही बिखर रही हैं। सरपंच का कार्यकाल साढ़े चार साल से ज्यादा गुजर चुका है इस लिहाज से पूरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभान्वित हितग्राहियें सहित करीब ढाई करोड़ की राशि पंचायत को मिली मगर पंचायत की हालत बेहतर होने के बजाय और खराब हो गई है। कस्बा का मुख्य मार्ग दलदल में तब्दील हो चुका है। 14वें वित्त के माध्यम से हर 6 माह में पंचायत को लाखें रूपए मिलते हैं लेकिन इस राशि को डकारने में सरपंच और सचिव कोई कोताही नहीं बरतते। एक दर्जन सीसी सड़कें बनने के साथ ही ध्वस्त हो चुकी हैं। वार्ड नं. 15, 16, 8 और 13 में बनाई गई सड़कें कबकी खत्म हो चुकी हैं। इन वार्डों के पंच प्रियंका पटैरिया और संपत बुनकर ने जनपद पंचायत सीईओ से इस मामले में शिकायत भी की थी। मस्जिद के पास की पुलिया खराब पड़ी है। करीब 6 हजार जनसंख्या वाले गुलगंज की हालत पहले से भी खराब हो गई है। सरपंच ज्ञानवती यादव आज भी चहार दीवारी में रहती हैं उनके पति बबलू यादव सरपंची करने में लगे हैं। सवाल यह है कि जब लाखें रूपए विकास कार्यों के लिए आए तो फिर सरपंच को पंचायत की दशा बिगाड़ने का हक किसने दिया।