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मास्क से हो सकता है आंखों में कोरोना का संक्रमण, देर तक लगाने से घुटता है दम, एहतियात जरूरी

नई दिल्‍ली (एजेंसी)। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में जिन सुरक्षा उपायों को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा, फेस मास्क उनमें प्रमुख है। प्रशासन ने घर से बाहर निकलने वालों के लिए मास्क का प्रयोग बाध्यकारी कर रखा है। मास्क न पहनने वालों पर जुर्माना भी लगाया जा रहा है। इससे इतर अधिकतर लोग मास्क के प्रयोग को लेकर जागरूक भी हुए हैं। बाजार में साधारण से लेकर डिजाइनर मास्क तक उपलब्ध हैं। ऐसा लगता है कि लगातार जागरूक किए जाने से आम-ओ-खास ने मास्क की दीर्घकालिक अनिवार्यता को मानसिक स्तर पर स्वीकार कर लिया है यद्यपि लॉकडाउन के दो महीने पूरे होते-होते मास्क के लगातार इस्तेमाल से कई जटिलताएं भी सामने आ रही हैं।
इस आशय की एक स्टडी ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है जिसमें मास्क के लगातार इस्तेमाल से पैदा हो रहीं जटिलताओं को स्वीकार करते हुए लोगों को एहतियात बरतने की सलाह दी गई है। स्थानीय चिकित्सा विज्ञानी, खासकर श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियों के विशेषज्ञों ने भी मास्क का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करने की सलाह दी है।
मास्क लगाने से नाक-मुंह कवर रहते हैं। ऐसे में कई बार एक्स हेल्ड एयर (बाहर सांस फेंकना) के वक्त हवा आंख में पहुंच जाती है। इससे आंख में इरिटेशन होने लगता है। व्यक्ति अपना हाथ बारबार आंख के पास ले जाता है। इससे आंख के जरिये संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। इसके अलावा मरीजों के बाहर सांस फेंकने पर हवा भी संक्रमित होती है। यह आंख में पहुंचने पर और नुकसानदायक हो जाती है।
घातक मास्क लगाने से व्यक्ति में सुरक्षा का भान हावी हो जाता है। उसमें फॉल्स सेंस ऑफ सिक्योरिटी विकसित हो जाती है। वह मास्क लगाकर खुद को सुरक्षित मान लेता है। परिणामस्वरूप शारीरिक दूरी और हैंडवाश के प्रति लापरवाही बढ़ती है। खिलाड़ी मैदान में खेलते वक्त कई लेयर के मास्क पहनने से बचें। सामान्य मास्क का प्रयोग करें। कई लेयर व मोटा मास्क पहनने से शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाएगी। ऐसे में उनकी सांस जल्दी फूलने लगेगी। वहीं खेल व प्रैक्टिस समाप्त होने पर मैदान में एकांत बैठकर मास्क खोलकर गहरी सांसे लेकर खुद को सामान्य करें। दूसरा मास्क पहनकर घर जाएं।
सीओपीडी रोगियों के लिए अधिक देर तक मास्क लगाना मुश्किल हो जाता है। वह असहज महसूस होने पर कपड़े से मुंह को ढक सकते हैं। मास्क टाइट बंधा होने से कॉर्बन डाई ऑक्साइड सामान्य तरह से बाहर नहीं जा पाती है। शरीर में कॉर्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा ज्यादा होने लगती है। इसे बाहर निकालने के लिए मरीज जल्दी-जल्दी सांस लेते है। ऐसे में उसके सांस का टाइडल वॉल्यूम बढ़ जाता है। एन-95 मास्क डॉक्टर आठ-नौ घंटे ड्यूटी के दौरान लगाते हैं। यह चुनौतीपूर्ण है। यह मास्क वायरस से 95 फीसदी तक सुरक्षा करता है। वहीं सामान्य व्यक्ति भी इसका उपयोग खूब कर रहे हैं। उनमें दम घुटने की समस्याएं हो सकती हैं। सर्जिकल मास्क की अवधि छह घंटे होती है। इसे लगाने पर बारबार हाथ से न छुएं। छह घंटे बाद उसे बदलकर दूसरा मास्क लगाएं।

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