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ऑस्ट्रेलिया के पीएम के साथ वचुर्अल शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे पीएम मोदी

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नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत और ऑस्ट्रेलिया 2009 से रणनीतिक साझेदार हैं। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध विकसित हुए हैं और दोनों मजबूत राजनीतिक, आर्थिक और सामुदायिक संबंधों को साझा करते हैं। ऐसे में भारत और आस्ट्रेलिया द्वारा चीन से जुड़े मुद्दों पर जी-7 देशों की विस्तारित बैठक में भाग लेने के अमेरिका के निमंत्रण को स्वीकार करने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन एक वचुर्अल शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं और दोनों देशों के द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।
इस चर्चा में इंडो-पैसिफिक पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया जाएगा, क्योंकि वैश्विक महामारी और प्रमुख शक्तियां चीन को कई मुद्दों पर घेरना चाहती हैं। दोनों नेताओं में कोविड-19 पर वैश्विक प्रतिक्रिया पर चर्चा की उम्मीद है। ऑस्ट्रेलिया कोरोना वायरस के मूल की जांच करने के लिए मुखर रहा है। दोनों देशों ने हाल ही में दक्षिण चीन सागर में स्थिति के बारे में चिंता जाहिर की और क्षेत्र में नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित किया। हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि अगर ऑस्ट्रेलियाई बैठक में हांगकांग मुद्दे को उठाता है या नहीं। ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के साथ हांगकांग में चीन के नए सुरक्षा कानून की निंदा की। भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जिसने इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। यह पहली बार होगा जब भारत के प्रधानमंत्री एक विदेशी नेता के साथ ‘द्विपक्षीय’ ऑनलाइन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस वर्चुअल मुलाकात का फोकस दोनों देशों के बीच निवेश और व्यापार को बढ़ावा देने की संभावनाओं का पता लगाने पर होगा। सूत्रों ने कहा कि कई समझौता ज्ञापन एमओयू और घोषणाएं प्रस्तावित हैं। मॉरिसन को जनवरी और फिर मई में भारत आना था। जनवरी में वह आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग के कारण नहीं आ सके और मई में कोरोना महामारी के कारण उनका दौरा नहीं हो सका। अब, इसके मद्देनजर दोनों नेताओं ने वचुर्अल बैठक का फैसला किया है। यह बैठक इस वक्त दुनिया में मौजूद शीत युद्ध जैसे हालात के कारण महत्वपूर्ण मानी जा रही है। चीन में छह महीने पहले कोरोना वायरस के उभार और उसके बाद इसके विश्वव्यापी प्रकोप, विशेषकर अमेरिका में तबाही के बाद अमेरिका और चीन की तनातनी ने विश्व को एक नए शीत युद्ध के मुहाने पर ला दिया है। चीन की कम्युनिस्ट पाटीर् अपनी विचारधारा के अनुरूप अंतरार्ष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देना चाहती है और इस प्रक्रिया में अमेरिकानीत मौजूदा विश्व व्यवस्था को चुनौती दे रही है। चीन की इस आक्रामकता से निपटने में अमेरिका को जी-7 की भूमिका खास लग रही है। इस समूह में अमेरिका, कनाडा, यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं। अमेरिका का मानना है कि चीन से निपटने के लिए इन सबके साथ-साथ भारत, आस्ट्रेलिया, रूस और दक्षिण कोरिया का भी साथ जरूरी है। नई दिल्ली स्थित अधिकारियों का कहना है कि दो लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत और आस्ट्रेलिया क्षेत्रीय व वैश्विक मामलों में एक-दूसरे के रुख को समझते हैं। एक अधिकारी ने कहा, “हम एक खुले, समावेशी व समृद्ध हिंद-प्रशांत पर समान सोच रखते हैं। इस वजह से कई क्षेत्रों में हमारे हित समान हो जाते हैं। हमारे संबंध न केवल द्विपक्षीय स्तर पर बल्कि बहुराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी मजबूत हैं। भारत और आस्ट्रेलिया 2009 में अपने रिश्ते को ‘रणनीतिक साझेदार’ के स्तर पर ले गए। 2014 में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के दौरों से रिश्ता और मजबूत हुआ। बीते पांच साल में दोनों देशों के संबंध बहुत मजबूत हुए हैं। गेटवे हाउस फेलो समीर पाटिल ने कहा, 2014 से दोनों देशों ने अपने रक्षा सहयोग को बढ़ाया है। इसमें वार्षिक रणनीतिक संवाद, दोनों देशों की सेनाओं के बीच नियमित साझा गतिविधियां और आतंकवाद रोधी मुद्दों पर खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान शामिल है।

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