सिडनी (एजेंसी)। कोरोनाकाल से जूझ रही दुनिया में बीते 24 घंटे में भूकंप के हलाडोल से 60 से अधिक झटके महसूस किए गए। भूकंप की जानकारी देने वाली वेबसाइट के अनुसार 14 जून को दुनिया में 50 जगह भूकंप आया, जिनकी तीव्रता 5.4 से लेकर 2.5 तक मापी गई। जिन देशों में भूकंप आया उनमें इंडोनेशिया, हवाई, पुर्तो रिको, म्यांमार, जमैका, अलास्का, तुर्की, भारत, जापान, ईरान, फिलीपींस प्रमुख है। हालांकि इनमें से कई देशों में एक से ज्यादा बार झटके आए हैं। इसके लावा इनमें से ज्यादातर देश ज्वालामुखी क्षेत्र में पड़ते हैं जिसके चलते ये भूकंप के भी रेड जोन में माने जाते हैं। एक अन्य वेबसाइट के मुताबिक बीते 2 महीनों से दुनिया के रेड और ऑरेंज जोन में हलचल बढ़ी है और इसका नतीजा लगातार भूकंप के तौर पर सामने आ रहा है। जानकारी के मुताबिक दुनिया के करीब 23 देशों में 14 जून को भूकंप के झटके दर्ज किए गए और 13 जून को भी करीब 20 देशों में भूकंप के झटके दर्ज किए गए थे। 15 जून की सुबह ही तुर्की में 5.7 तीव्रता का एक भूकंप दर्ज किया गया है। भारतीय राज्य गुजरात के कच्छ में 14 जून को आए भूकंप में 10 सेकंड तक झटके महसूस किए गए। राजकोट में तीन आफ्टर शॉक भी महसूस किए गए। सौराष्ट्र में 4.8 तीव्रता के साथ करीब 7 सेकंड तक झटके आए।
अहमदाबाद में 3.4 तीव्रता के झटके करीब 5 सेकंड तक महसूस किए गए। जामनगर, सुरेंद्रनगर और जूनागढ़ में भी झटके महसूस किए गए। गौरतलब है कि भारत में बीते 2 महीनों में लगातार 9 से ज्यादा बार भूकंप के झटके महसूस किए गए। 14 जून को गुजरात में भी 5.5 तीव्रता वाला भूकंप आया, जबकि दिल्ली-एनसीआर के इलाके में भी 8 बार भूकंप आ चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की माने तो सिर्फ 14 जून को दुनिया भर में 50 से ज्यादा भूकंप आए हैं। ज्ञात हो कि पृथ्वी के अंदर 7 प्लेट्स हैं जो लगातार घूम रही हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वह जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने से प्लेट्स के कोने मुड़ते हैं। जब ज्यादा प्रेशर बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं। नीचे की एनर्जी बाहर आने का रास्ता खोजती है। इसी से भूकंप पैदा होता है।
चेन्नई के न्यूक्लियर और अर्थ साइंटिस्ट डॉ. केएल सुंदर कृष्णा ने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी किसी तरह पिछले साल 26 दिसंबर को हुए एक सूर्य ग्रहण से जुड़ी हुई है। डॉ. केएल सुंदर कृष्ण ने बताया कि उनका मानना है कि 26 दिसंबर को हुए ग्रहण ने सौर मंडल में ग्रह विन्यास को बदल दिया।’ उन्होंने कहा कि ‘उत्परिवर्तन पहली बार चीन में देखा गया था, लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है। यह उत्परिवर्तन एक प्रयोग या जानबूझकर किए गए प्रयास का परिणाम हो सकता है। उनका मानना है कि आगामी सूर्य ग्रहण एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है और कोरोना वायरस को निष्क्रिय बना सकता है। उन्होंने दावा किया है कि ‘यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और इसलिए इसे लेकर लोगों को ज्यादा घबराने की कोई जरूरत नहीं है। सूर्य का प्रकाश और सूर्य ग्रहण इस घातक वायरस के लिए एक प्राकृतिक उपचार साबित होंगे।’ आगे विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा, ‘उन्होंने विदेशी अवशोषित सामग्री के साथ न्यूक्लियेटिंग (नाभिक गठन) शुरू कर दिया हो सकता है, जो कि ऊपरी वायुमंडल में जैव-परमाणु, जैव-परमाणु संपर्क का एक नाभिक हो सकता है। बायोमोलेक्यूलर स्ट्रक्चर (प्रोटीन) का उत्परिवर्तन इस वायरस का एक संभावित स्रोत हो सकता है।’