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हजारों करोड़ एनपीए, मगर ब्याज की चिंता: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली(एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को कोरोना के मद्देनजर कर्ज अदायगी के स्थगन की अवधि का ब्याज वसूलने के निर्णय पर फिर से विचार करने के लिए कहा है। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि यह बेहद निंदनीय है कि हजारों करोड़ रुपये एनपीए (डूबे हुए कर्ज ) में चले जाते हैं, लेकिन आप लोगों से ब्याज ले रहे हैं। पीठ ने कहा कि हम इस बात से अवगत हैं कि अगर ब्याज न वसूला गया तो परेशानी होगी लेकिन यह महामारी की सामान्य स्थिति नहीं है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने वित्त मंत्रालय और आरबीआई को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का निर्देश देते हुए सुनवाई अगस्त के पहले हफ्ते के लिए टाल दी।
सरकार लोगों को राहत दे
शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) से भी पूछा है कि क्या इस मसले पर नई दिशा-निर्देश जारी करने की गुंजाइश है ? पीठ ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा, अगर कर्ज अदायगी की सुविधा देने की घोषणा की गई थी तो इसका लाभ लोगों को तो मिलना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ब्याज में छूट से परेशानी इस बात को लेकर है कि कुछ लोगों ने तो अल्प अवधि के लिए लोन ले रखा है, जबकि कुछ लोगों ने हजारों करोड़ रुपये के लोन ले रखे हैं। उन्होंने कहा, बैंकों को भी अपने जमाकर्ताओं को ब्याज देना होता है। उन्होंने फिर से दोहराया कि कर्ज अदायगी को कुछ समय अवधि के लिए निलंबित किया गया है। जिस पर पीठ ने सवाल किया कि विपरीत परिस्थितियों में ब्याज लेने का क्या मतलब है।
बैंकिंग सिस्टम में वित्तीय स्थिरता के आसार
पीठ ने कहा कि अगर कर्ज अदायगी को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है तो अथॉरिटी को यह देखने की जरूरत है कि इसका वास्तविक लाभ लोगों को मिल रहा है या नहीं? इस पर मेहता ने कहा कि सरकार और आरबीआई को 133 करोड़ जमाकर्ताओं की चिंता है। अगर ब्याज न लिया गया तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ब्याज माफी से बैंकिंग सिस्टम में वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी और जमाकर्ताओं के हितों को चोट पहुंचेगी। मालूम हो कि 27 मार्च को आरबीआई ने सर्कुलर जारी कर ईएमआई में तीन महीने के लिए छूट दी थी और बाद में यह छूट और तीन महीने और बढ़ा दी गई थी।

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