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इन कारणों से होता है लंग कैंसर

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इन कारणों से होता है लंग कैंसर

वर्तमान में कोविड १९ के रोगियों में सर्दी, खांसी और छींक के साथ नाक का न बहना एक सामान्य लक्षण माने जाते हैं।इस प्रकार लंग्स कैंसर या फेफड़ों के रोगी में प्रायः कुछ ऐसे लक्षण होते या मिलते हैं की पहले उसे राजयक्ष्मा या टी बी जैसे लक्षणों से सामना करना पड़ता हैं।
वेगरोधात क्षयाच्चैव साहसदविषमशानात।
त्रिदोषों जायते यक्ष्मा गदो हेतु चतुष्ट्यात।
वेग -विधारण, क्षय, साहस तथा विषमाशन इन चार हेतुओं से त्रिदोषज यक्षमा नामक रोग की उतपत्ति होती हैं।
.इसमें पहले तीन लक्षण मिलते हैं — कंधे और पार्श्व में पीड़ा, हाथ पैरों में जलन और सम्पूर्ण शरीर में ज्वर की उपस्थिति ये प्रथम लक्षण होते हैं उसके बाद ६ लक्षण — भोजन में अरुचि, ज्वर, श्वास, कास,रक्तष्ठीवन,तथा स्वरभेद मिलते हैं और इसके बाद ११ लक्षण — वात के कारण —कंधे और पार्श्व में शूल एवं संकोच, पित्त के कारण –ज्वर, दाह,अतिसार और रक्तष्ठीवन,,कफ के कारण सिर का भारीपन, भोजन में अरुचि, कास और कंठ में पीड़ा या धसका ये लक्षण मिलते है। जब रोग लम्बे समय तक रहता हैं और रोगी को इससे लाभ होना होता हैं तब वह रोगी कैंसर के रूप में मिलता हैं।
अगर अपवाद के तौर पर देखें तो कैंसर जैसा जानलेवा रोग कब-किसे और अनजान वजहों के कारण हो जाएगा, आज के समय में इस बात को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन फिर भी कुछ ऐसे कारण हैं, जो लंग कैंसर के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार होते हैं…
कैंसर कई तरह का होता है और हर तरह का कैंसर कुछ खास स्थितियों के कारण पनपता है। लंग कैंसर यानी फेफड़ों में होनेवाले कैंसर के साथ भी यही बात उपयुक्त बैठती है।।
सबसे पहला कारण धुएं के छल्ले
पूरी दुनिया में लंग कैंसर का मुख्य कारण सिगरेट पीना है। अगर सिर्फ और सिर्फ अमेरिका जैसे विकसित देश की बात करें तो वहां भी हर साल लंग कैंसर के 80 से 90 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु हो जाती है। इनमें अधिकांश वो पेशंट ही शामिल होते हैं, जो स्मोकिंग की लत के चलते लंग कैंसर का शिकार हुए।
-स्मोकिंग के चलते जो लोग लंग कैंसर का शिकार होते हैं, इस बीमारी से उनके मरने की संभावना 15 से 30 प्रतिशत अधिक होती है, उन लोगों की तुलना में जिनमें किसी अन्य कारण से लंग कैंसर हुआ हो। सिगरेट पीने वाले लोग भी अलग-अलग कैटिगरी के होते हैं। कुछ चेन स्मोकर्स होते हैं और कुछ लोग दिन में एक से दो बार सिगरेट पीते हैं।
-इस स्थिति में लंग कैंसर की गंभीरता भी इस बात पर निर्भर करती है कि पेशंट किस कैटिगरी का स्मोकर रहा है। साथ ही कैंसर का पता लगने के बाद जो लोग स्मोकिंग पूरी तरह छोड़ देते हैं, उनमें रिकवरी की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि नॉन स्मोकर्स की तुलना में जान का खतरा इन लोगों को अभी भी अधिक बना रहता है।
पैसिव स्मोकिंग
दूसरे लोगों द्वारा की जा रही स्मोकिंग का असर भी हमारी सेहत पर पड़ता है। क्योंकि इस दौरान जब हम उनके पास खड़े होकर सांस ले रहे होते हैं तो यह धुआं हमारे शरीर में भी प्रवेश कर रहा होता है। इस तरह ना चाहते हुए हम भी स्मोकिंग कर रहे होते हैं। इस तरह की स्मोकिंग को पैसिव स्मोकिंग या सेकंडहैंड स्मोकिंग कहते हैं।
-एक अनुमान के मुताबिक, लगभग हर चौथा इंसान सेकंडहैंड स्मोकिंग कर रहा होता है। दुख की बात यह है कि इनमें बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं, जिनके शरीर पर इस तरह की स्मोकिंग का और भी बुरा असर पड़ता है।
रेडॉन गैस का उत्सर्जन
रेडॉन एक प्राकृतिक गैस होती है, जो रॉक्स और डर्ट के कारण उत्पन्न होती है। इस गैस के साथ दिक्कत यह है कि पहाड़ियों और धूल के कारण बनने वाली इस गैस की कोई स्मेल या टेस्ट नहीं होता। साथ ही इसे देखा भी नहीं जा सकता!
– इस वजह से पहाड़ी और पठारी एरिया में रहनेवाले लोगों के घरों में आमतौर पर इस तरह की गैस भरी होती है, जो फेफड़ों में कैंसर की वजह बन जाती है।
कुछ अन्य कारण
-जो लोग सिलिका, डीजल, आर्सेनिक या दूसरी कैमिकल इंडस्ट्रीज में काम करते हैं, उनमें लंग कैंसर होने की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है। यहां तक कि इन इंडस्ट्रीज में काम करनेवाले लोगों में लंग कैंसर का रिस्क स्मोकिंग करनेवाले लोगों से भी कहीं अधिक होता है।
व्यक्तिगत कारण
लंग कैंसर के कुछ व्यक्तिगत कारण भी होते हैं। इनमें फैमिली हिस्ट्री भी शामिल होती है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति स्मोकिंग करता है और उसका लंग कैंसर गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है तो इस बात की पूरी संभावना होती है कि उसके फेफड़ों में एक और कैंसर विकसित हो जाए।
-अगर परिवार में माता-पिता या भाई-बहन में से किसी को लंग कैंसर होता है तो उसमें भी इस कैंसर के पनपने की संभावना कहीं अधिक होती है। ऐसा रेडॉन गैस के कारण भी हो सकता है। क्योंकि जब पूरा परिवार एक ही छत के नीचे रहते हैं और किसी एक के शरीर पर घर के वातावरण का नकारात्मक असर पड़ रहा होता है तो पूरी संभावना होती है कि परिवार के अन्य सदस्यों में भी देर-सबेर इस तरह के लक्षण उभकर सामने आ सकते हैं।
रेडिएशन और खान-पान भी हैं कारण
कैंसर के वे मरीज जो रेडिएशन थेरपी करा रहे होते हैं, उनमें भी लंग कैंसर के विकसित होने का खतरा कहीं अधिक होता है। क्योंकि रेडिएशन के चलते भी लंग्स में कैंसर सेल्स पनप सकती हैं।
खान-पान और कैंसर – जिन लोगों के पीने के पानी में आर्सेनिक आ रहा होता है, उनमें लंग कैंसर बढ़ने की संभावना होती है। ऐसा आमतौर पर तब अधिक देखने को मिलता था, जब लोग अपने प्राइवेट कुओं से पीने का पानी भरा करते थे।
उपरोक्त आधार पर यह निश्चित हुआ की यक्ष्मा के बाद कैंसर आदि असाध्य रोगों के बनाने की संभावना होती हैं।आजकल सिगरेट, बीड़ी और अन्य तम्बाखू जन्य सामग्री के उपयोग का चलन बढ़ता जा रहा हैं, दूसरा कामुकता के कारण शीघ धातुक्षय होने से भी कमजोरी होने के कारण भी एक सहायक कारण हैं।
इसका सबसे अच्छा बचाव का तरीका सादा जीवन, सात्विक खानपान, व्यसनों का त्याग।एक बाद ध्यान देने की हैं की त्याग और छोड़ने में अंतर होता हैं।त्यागना जीवन भर के लिए होता हैं और छोड़ना कुछ समय के लिए।
जैसे ही तकलीफ शुरू हो तत्काल इलाज़ कराये, कारण कैंसर में एक दिन का विलम्ब मौत के नजदीक जाना होता हैं।इसके साथ अत्यधिक खर्च के बाद भी ज़िंदा होने की कोई गारंटी नहीं जिस कारण परिवार आर्थिक रूप से परेशानी उठाते हैं। जितना पैसा इलाज़ में उसे कम बचाव में लगाएं और जीवन भर सुख से रहे, इसके साथ शासन का भी बहुत खर्च होता हैं और एक योग्य व्यक्ति की कमी होती हैं, उसमे न जाने कौन सी प्रतिभा छिपी हो जो देश समाज और परिवार को कुछ दे सके।

 (लेखक/ईएमएस -डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)

 

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