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RTI में अब बेपरवाह अफसरों के खिलाफ FIR

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 सुरत, गुजरात,( क्रांति समय दैनिक समाचार) जनता को अपने अधिकारों से  लड़ने  के लिए मिले  सूचना अधिकार कानून में इन दिनों यह देखने में आ रहा हैकि इस  कानून को रोंदने एवं कुचलने का सिलसिला जारी है।  लेकिन देश में ऐसे भी  उर्जावान लोग है, जो निरंतर नवाचार एवं जीवटता से  सूचना अधिकार एक्ट को मजबूत और सशक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस कानून को बचाने तथा मजबूत करने के लिए  राष्ट्रीय स्तर पर एक मिशन खड़ा किया है।

क्या आप कभी सूचना के अधिकार कानून के आगे भी निकलकर विचार किये हैं? मानकर चलें की यदि आपको आरटीई फाइल करने के बाद जानकारी समयसीमा पर न मिले अथवा कोई जानकारी ही न मिले, अथवा अधूरी और भ्रामक जानकारी मिले, अथवा जो जानकारी दी जाय वह झूंठी और गलत हो तो आप क्या करेंगे? जाहिर है आप प्रथम अपील पर जायेंगे और और यदि प्रथम अपील में निराकरण नहीं होता तो आप सूचना योग में द्वितीय अपील में जायेंगे. लेकिन क्या आपने सोचना है की इस प्रक्रिया के साथ-साथ आप भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के विधान के तहत भी कार्यवाही की माग कर सकते हैं और जानकारी न देने और गलत भ्रामक जानकारी देने आरटीआई कानून का उल्लंघन करने के लिए लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी के उपर एफ आई आर भी दर्ज करवा सकते हैं.

इसी विषय को लेकर दिनांक 05 सितम्बर शिक्षक दिवस के दिन सुबह 11 बजे से दोपहर 02 बजे तक राष्ट्रीय सूचना के अधिकार वेबिनार का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गाँधी, पूर्व मप्र राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, आरटीआई एक्टिविस्ट और अधिवक्ता ताराचंद जांगिड़, आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश बेल्लूर और माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित हुए. कार्यक्रम का संचालन और प्रबंधन एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा और वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह द्वारा किया गया.

🔺 ताराचंद जांगिड़ ने बताया कैसे आईपीसी और सीआरपीसी का उपयोग कर पीआईओ के विरुद्ध दर्ज कराएँ एफआईआर

राजस्थान से आरटीआई एक्टिविस्ट और अधिवक्ता ताराचंद जांगिड़ ने पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन देकर बताया किस प्रकार से यदि लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी अपने कर्तव्यों की अवहेलना करें और समयसीमा पर और सही जानकारी न उपलब्ध कराएँ तो उनके ऊपर भारतीय दंड विधान और और दंड प्रक्रिया संहिता के तहत एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है.

🔺 प्रथम अपील तक का स्तर और असद्भावना से की गयी कार्यवाहियां और दंड विधान

ताराचंद जांगिड़ ने बताया की किन नियमों के उल्लंघन पर किन किन धाराओं में एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है.

लोक सूचना अधिकारी द्वारा कोई जवाब नहीं देना धारा-7(2) आरटीआई एक्ट का उल्लंघन है.
लोक सूचना अधिकारी द्वारा आरटीआई एक्ट की धारा-7(8) का उल्लंघन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए और 167 के तहत एफ आई आर होगी.
लोक सूचना अधिकारी द्वारा झूठी जानकारी देना जिसका प्रमाण आवेदक के पास मौजूद है उस स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 167, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज होगी.
प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय नहीं किये जाने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 188 के तहत एफ आई आर दर्ज कराई जा सकती है.
प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष लोक सूचना अधिकारी द्वारा सुनवाई के बाद सम्यक सूचना के भी गैरहाजिर रहने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 175, 176, 188, और 420 के तहत एफ आई आर दर्ज करवाई जा सकती है.
प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय करने के बाद भी सूचनाएं नहीं देने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 420 के तहत एफ आई आर दर्ज हो सकती है.
लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आवेदक को धमकाने की स्थिति में आईपीसी की धारा 506 के तहत एफ आई आर दर्ज करने का प्रावधान है.
लोक सूचना अधिकारी द्वारा शुल्क लेकर भी सूचना नहीं देने की स्थिति में आईपीसी की धारा 406 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज किये जाने का प्रावधान होगा.
पीईओ अथवा एफएओ द्वारा लिखित में ऐसे कथन करना जिसका झूठ होना पीईओ अथवा एफएओ को ज्ञात हो और इससे आवेदक को सदोष हानि हो उस स्थिति में आईपीसी की धारा 193, 420, 468, और 471 के तहत एफ आई आर दर्ज करवाई जा सकती है.

🔺 आरटीआई एक्टिविस्ट राव धनवीर सिंह एक्ट के द्वारा दुरुपोयोग पर पीआईओ/एफएओ पर दर्ज करवाए गए आपराधिक अभियोग :

🔹 एफआईआर नंबर -124/2013 दिनांक 22.01.2013 पुलिश थाना कोटपुतली,जिला-जयपुर राजस्थान

इस एफ आई आर में राजस्थान पुलिस के लोक सूचनाधिकारी के पास उपलब्ध सूचना को भी यह कहकर देने से इनकार किया गया था कि सूचना उपलब्ध नहीं हैं. 6 माह बाद तीसरे आवेदन में वही सूचनाएं उपलब्ध करवा दी गयी थी नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई और प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है.

🔸 एफआईआर नंबर -738/2019 दिनांक 07.09.2019, पुलिस थाना-कोटपुतली,जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)

इस प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय के कर्मचारियों के साथ आपराधिक षड्यंत्र रचकर अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं में कांट-छांट करके, दस्तावेज में से सूचनाओं को मिटा कर आधी अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है.

🔹 एफआईआर नंबर -981/2013 दिनांक 10.011.2013, पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)

इस प्रकरण में राजस्थान पुलिस के लोक सूचनाधिकारी के पास उपलब्ध सूचना में से अधूरी सूचना उपलब्ध करवाई गयी थीं और आवेदक को देर रात फोन करके धमकाया गया था. नतीजा उक्त एफ आई आर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है.

🔸 एफआईआर नंबर 1006/2013 दिनांक 19.11.2013 पुलिस थाना-कोटपुतली, जिला-जयपुर ग्रामीण (राजस्थान)

इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के बजाय कूटरचित सूचनाएं तैयार करके आधी-अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई. प्रकरण वर्तमान में वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है.

🔹 एफआईआर नंबर -76/2015 दिनांक 23.02.2015, पुलिस थाना – मॉडल टाउन जिला रेवारी, हरियाणा

इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के छुपाया और बजाय सम्पूर्ण सूचनाओं के आधी अधूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयी थी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है.

🔸 एफआईआर नंबर 528/2015 दिनांक 15.09.2015, पुलिस थाना मॉडल टाउन, जिला रेवारी, हरियाणा

इस प्रकरण में पुलिस विभाग के लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में मौजूद मूल सूचनाओं के छुपाया और दुर्भावनापूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं करवाया और नाजायज अड़चन डालकर आवेदक को सदोष हानि कारित की गयी. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन है.

🔹 एफआईआर नंबर -397/2021 दिनांक 15.08.2021 पुलिस थाना- प्रागपुरा जिला-जयपुर ग्रामीण राजस्थान

इस प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी नें भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित चीनी एप कैमस्कैनर का इस्तेमाल करते हुए जो सूचनाए ई-मेल के माध्यम से उपलब्ध हुईं उनमें से अपने पूर्ववर्ती दस्तावेज में खुद के कार्यालय में हुई वित्तीय अनियमितताओं और विभागीय नियमों के विरुद्ध किये गए कृत्यों से खुद और अधीनस्थ कार्मिकों को बचाने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचकर कूटरचित पत्र (पहले वाले पत्र के पत्र क्रमांक डालकर) सूचनाएं उपलब्ध करवाई गयीं जो कि कूटरचित थीं. नतीजा उक्त एफआईआर दर्ज हुई प्रकरण वर्तमान में अनुसन्धान में है.

🔺 अधिवक्ता ताराचंद जांगिड़ द्वारा आर टी एक्ट के दुरूपयोग एवं सदोष हानि बाबत दर्ज करवाए गए आपराधिक अभियोग :

🔹 केस नंबर – 774/2020 दिनांक 29.06.2020 न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चुरू राजस्थान

इस मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी के बाद भी लोक सूचनाधिकारी नें कोई सूचना उपलब्ध नहीं करवाई. सम्पूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित होने से अनुसन्धान आवश्यक नहीं है लिहाजा सीधे प्रसंज्ञान की प्रार्थना के साथ न्यायालय में परिवाद दायर किया गया. मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है

🔸 केस नंबर 775/2020 दिनांक 29.06.2020 न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चुरू राजस्थान

इस मामले में लोक सूचनाधिकारी नें अपने कार्यालय में जिस सूचना का होना उपलब्ध होने से इनकार कहकर आवेदन का निस्तारण किया वह सूचना सहज ऑनलाइन सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थीं. जाहिर है कि उक्त अधिकारी नें झूठा जवाब दिया. सम्पूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित होने से अनुसन्धान आवश्यक नहीं है लिहाजा सीधे प्रसंज्ञान की प्रार्थना के साथ न्यायालय में परिवाद दायर किया गया. मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है.

🔺 द्वितीय अपील तक का स्तर और असद्भावना से की गयी कार्यवाहियां और दंड विधान

पीआईओ/एफएओ का अपील में नोटिस मिलने पर भी सुनवाई में बिना कोई सूचना के गैरहाजिर रहने की स्थिति में आईपीसी की धारा 175, 176, 188 और 420 के तहत एफआईआर की कार्यवाही.
पीआईओ और एफएओ का नोटिस मिलने पर भी निर्धारित निर्देशों की मियाद में आयोग/अपीलार्थी को अपील का प्रतिउत्तर नहीं देने की स्थिति में आईपीसी की धारा 166ए, 188 और 420 के तहत एफआईआर की कार्यवाही.
पीआईओ/एफएओ का अपील का प्रतिउत्तर अधूरा /झूठा/तथ्यों के विपरीत होने की स्थिति में आईपीसी की धारा 166ए, 167, 193, 420, 468, और 471 के तहत एफआईआर की कार्यवाही.
पीआईओ/एफएओ का धारा-20(1) के नोटिस मिलने पर भी सुनवाई में बिना कोई सूचना के गैर हाजिर रहने की स्थिति में आईपीसी की धारा 175, 176, 188 और 420 के तहत सहपठित धारा-12 के तहत एफआईआर की कार्यवाही की जा सकती है.

🔹 दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-195(1)(क)(1)/(3),(ख)(1)/(2) सहपठित धारा-340

जब सूचना आयोग के समक्ष लम्बित किसी अपील में प्रत्यर्थी/प्रथम अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी होने के बाद वह प्रतिउत्तर में दस्तावेजी साक्ष्यों के विरुद्ध झूठा अंकन करते हुए जवाब प्रेषित करे को माननीय आयोग को धारा-195(1)(क)(1)/(3), (ख)(1)/(2) सहपठित धारा-340 दंड प्रक्रिया संहिता के विधान के तहत आवेदन देकर ऐसे अपराध के लिए अभियोजन चलाने को आवेदन पेश किया जा सकता है. सूचना आयोग द्वारा ऐसे किसी भी आवेदन पर विचार करना न्यायसंगत है.

🔺 लिमिटेसन एक्ट 1963 धारा-5 :

   जहाँ देरी का कोई युक्तियुक्त कारण  लोक सूचना अधिकारी/ प्रथम अपीलीय अधिकारी   के जवाब में नहीं हो वहां ऐसा कोई दस्तावेज शून्य हैसियत रखने से पत्रावली में शामिल नहीं माना जा सकता है.

जब सूचना आयोग के समक्ष लम्बित किसी अपील में प्रत्यर्थी/ प्रथम अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी होने के बाद भी वह नोटिस के निर्देशों के अनुरूप निर्धारित समयावधि में प्रतिउत्तर प्रेषित/पेश करने में नाकाम रहता है तो सूचना आयोग को धारा-5 परिसीमा अधिनियम के विधान पर बहस सुननी चाहिए और जहाँ देरी का कोई युक्तियुक्त कारण जवाब में नहीं हो वहां ऐसा कोई दस्तावेज शून्य हैसियत रखने से पत्रावली में शामिल नहीं माना जा सकता है.

🔺 शैलेश गाँधी ने कहा जानकारी न मिलने पर आरटीआई से आगे आईपीसी और सीआरपीसी से जोड़ने से आरटीआई एक्ट को मिलेगा नया आयाम

कार्यक्रम में पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गाँधी ने बताया की यह उनके लिए भी बिलकुल नया प्रयोग था और जो कार्य राव धनवीर और ताराचंद कर रहे हैं यह आरटीआई एक्ट के आगे देखने की कला है. सरकार पर टिप्पणी करते हुए श्री गाँधी ने कहा की पुलिश की स्थिति काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. भारत की पुलिश भारतवासियों की न होकर अंग्रेजों की पुलिश है इसलिए मात्र 5 से लेकर 10 प्रतिशत तक ही एफआरआई दर्ज होते हैं. इस में नेताओं से लेकर सरकार और प्रशासन सम्मिलित रहते हैं जिससे ज्यादा अपराध घटित होना न पाया जाय. वीरेश बेल्लूर ने बताया की कर्नाटक में ज्यादातर एफआईआर की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध रहती है और हिस्ट्रीशीटर के विषय में जानकारी सार्वजनिक करने को लेकर भी आयुक्त अलग अलग विचार रखते हैं. स्टेशन हाउस ऑफिस की डायरी की कॉपी तो आरटीआई के तहत उपलब्ध होती है लेकिन केस डायरी तब तक उपलब्ध नहीं होती जब तक की कोर्ट में चालान पेश न हो. भास्कर प्रभु ने बताया की महाराष्ट में आरटीआई कानून को लेकर बुरी स्थिति है. अभी जब प्रथम अपीलीय अधिकारी लोक सूचना अधिकारियों को जानकारी देने के लिए निर्देशित कर देते हैं तब आयोग कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा है. कुछ सूचना आयुक्त ऐसे हैं जो ख देते हैं की इसमें प्रथम अपीलीय अधिकारी ने आदेशित कर दिया है इसलिए द्वितीय अपील ख़ारिज कर देते हैं. मप्र राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप द्वारा ऐसे सूचना आयुक्तों को आड़े हांथों लिया गया जो प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश के बाद सूचना उपलब्ध नहीं करवा रहे. उन्होंने कहा की सूचना आयुक्त का कर्तव्य है की वह आवेदक को सूचना उपलब्ध कराएँ.

कार्यक्रम में पूरे भारत से कई आरटीआई कार्यकर्ता जुड़े जिन्होंने अपने अपने प्रश्न रखे और जबाब पाए. इनमे से परेश, वीरेंद्र कुमार सिंह, अंकित कुमार, राज तिवारी, जयपाल सिंह खींची, गोविन्द देश्वारी, मेघनाथ सिंह, एन एम् गोगोरिया, जिग्नेश बंकर, नीरज गुप्ता, जय नंदन महतो, ओम बंजारा, सुरेन्द्र जैन, अशोक, महावीर पारीख, वनिता शेट्टी, पवन दुबे, शिवेंद्र मिश्रा, सुरेश मौर्या, हेमराज लोढ़ी, राकेश सोमानी, देवेन्द्र अग्रवाल,कैलाश सनोलिया आदि प्रमुख रूप से सम्मिलित हुए.

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