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प्रयागराज: अखाड़ा परिषद ने बलवीर गिरि को बाघंबरी मठ का अध्यक्ष मानने से किया इनकार, बताई ये वजह

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सार

सुसाइड नोट में उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद बलवीर गिरि चर्चा में आ गए हैं। उत्तराखंड के रहने वाले बलवीर ने आनंद गिरि के साथ ही नरेंद्र गिरि से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए थे। अपनी कर्मठता और ईमानदारी के कारण वह गुरु के नजदीक होते चले गए।

बाघंबरी मठ में अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी को श्रद्धांजलि देने के बाद संतों से चर्चा करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बगल में बैठे महंत बलवीर गिरि।
– फोटो : सोशल मीडिया

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अखाड़ा परिषद ने बलवीर गिरि को बाघंबरी मठ का अध्यक्ष मानने से इनकार कर दिया है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरी ने कहा कि जब सुसाइड नोट ही फर्जी है तो बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी मानने का सवाल ही नहीं। बुधवार को हुई पंच परमेश्वर की बैठक स्थगित कर दी गई है। 

वहीं इससे पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने अपने सुसाइड नोट में बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सबको चौंका दिया था। मंगलवार को बलवीर गिरि ने महंत नरेंद्र गिरि के पास मिले सुसाइड नोट को अपने ही गुरु की हैंड राइटिंग बताई थी, लेकिन दूसरे दिन बुधवार को वह अपने इस बयान से मुकर गए और कहा कि यह पुलिस की जांच का विषय है कि यह लिखावट किसकी है। उनका कहना था कि इस मामले की जांच होनी चाहिए तभी सच सबके सामने आ सकेगा।

20 वर्ष पहले आया था नरेंद्र गिरि के संपर्क में 
जिस बलवीर गिरि को नरेंद्र गिरि ने अपना वारिस चुना वह उनके संपर्क में करीब 20 वर्ष पहले ही आ गए थे। उस वर्ष नरेंद्र गिरि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष भी नहीं थे। बलवीर गिरि 1998 में अखाड़े से जुड़े थे और हरिद्वार में आश्रम की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी। उनकी कार्यकुशलता और कार्य के प्रति निष्ठा ने नरेंद्र गिरी को उनका चहेता बना दिया। आनंद गिरि से विवाद हुआ तो महंत ने अपना पुराना वसीयत जिसमें आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनाने की बात का जिक्र था उसे निरस्त कर बलवीर को नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 

2019 के कुंभ में भी आए थे बलवीर
बलवीर गिरि 2019 के कुंभ में भी प्रयागराज आए थे। वह नरेंद्र गिरि के सहयोगी के तौर पर कार्य कर रहे थे और अखाड़ा परिषद की ओर से जिम्मेदारी मिली उसकी पूरी निष्ठा के साथ निर्वहन किया। यहां तक कि अखाड़े में आने वाले आय व्यय का हिसाब भी बलवीर के पास था। उनकी इसी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें हरिद्वार स्थित प्रसिद्ध मंदिर बिल्केश्वर महादेव मंदिर की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। उन्होंने नरेंद्र गिरि से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए थे। आनंद गिरि और बलवीर गिरि एक साथ ही नरेंद्र गिरि के शिष्य बने थे। 

उत्तराखंड के मूल निवासी हैं बलवीर
बलवीर मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं। वह 2005 में वो संत बने थे। बता दें कि आनंद गिरि के निष्कासन के बाद बलवीर ही नंबर दो की हैसियत रखते थे। सीएम योगी आदित्यनाथ के आने पर बलवीर ही उनके ठीक बगल में बैठे थे। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद और पंच परमेश्वर ने भी आज बलवीर गिरी को अपना आशीर्वाद दिया है। 

गुरुवार को हो सकती है औपचारिक घोषणा
गुरुवार को महंत नरेंद्र गिरी का अंतिम संस्कार होने के बाद बलवीर गिरी के नाम का औपचारिक एलान किया जाएगा. बलवीर आज लगातार उसी कमरे में बैठे हुए हैं, जिसमें महंत नरेंद्र गिरी का पार्थिव शरीर रखा हुआ था। गौरतलब है कि मंहत ने सुसाइड नोट में उन्होंने बलवीर गिरी के नाम पर वसीयत करने की भी बात लिखी। इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि प्रिय बलवीर मठ मंदिर की व्यवस्था का प्रयास वैसे ही करना, जैसे मैंने किया है, साथ ही आशुतोष गिरी, नितेश गिरि और मंदिर के सभी महात्माओं को बलवीर का सहयोग करने को कहा है। 

महामंडलेश्वर कैलाशानंद महाराज का दावा- नरेंद्र गिरि लिखते नहीं थे
इन सब के बीच निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद महाराज ने दावा किया है कि पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला है, उसमें महंत नरेंद्र गिरि की लिखावट नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं उन्हें 20 साल से जानता हूं, नरेंद्र गिरि जी लिखते नहीं थे। यदि उनका लिखा हुआ किसी के पास कुछ है तो वह दिखाए। मुझसे अधिक उन्हें कोई नहीं जानता। मैं 2003 से उनसे, इस मठ से जुड़ा हुआ था। हर परिस्थिति में मैंने उनका साथ दिया। वह हस्ताक्षर भी बहुत मुश्किल से करते थे।

 

विस्तार

अखाड़ा परिषद ने बलवीर गिरि को बाघंबरी मठ का अध्यक्ष मानने से इनकार कर दिया है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरी ने कहा कि जब सुसाइड नोट ही फर्जी है तो बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी मानने का सवाल ही नहीं। बुधवार को हुई पंच परमेश्वर की बैठक स्थगित कर दी गई है। 

वहीं इससे पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने अपने सुसाइड नोट में बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सबको चौंका दिया था। मंगलवार को बलवीर गिरि ने महंत नरेंद्र गिरि के पास मिले सुसाइड नोट को अपने ही गुरु की हैंड राइटिंग बताई थी, लेकिन दूसरे दिन बुधवार को वह अपने इस बयान से मुकर गए और कहा कि यह पुलिस की जांच का विषय है कि यह लिखावट किसकी है। उनका कहना था कि इस मामले की जांच होनी चाहिए तभी सच सबके सामने आ सकेगा।

20 वर्ष पहले आया था नरेंद्र गिरि के संपर्क में 

जिस बलवीर गिरि को नरेंद्र गिरि ने अपना वारिस चुना वह उनके संपर्क में करीब 20 वर्ष पहले ही आ गए थे। उस वर्ष नरेंद्र गिरि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष भी नहीं थे। बलवीर गिरि 1998 में अखाड़े से जुड़े थे और हरिद्वार में आश्रम की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी। उनकी कार्यकुशलता और कार्य के प्रति निष्ठा ने नरेंद्र गिरी को उनका चहेता बना दिया। आनंद गिरि से विवाद हुआ तो महंत ने अपना पुराना वसीयत जिसमें आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनाने की बात का जिक्र था उसे निरस्त कर बलवीर को नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 

2019 के कुंभ में भी आए थे बलवीर

बलवीर गिरि 2019 के कुंभ में भी प्रयागराज आए थे। वह नरेंद्र गिरि के सहयोगी के तौर पर कार्य कर रहे थे और अखाड़ा परिषद की ओर से जिम्मेदारी मिली उसकी पूरी निष्ठा के साथ निर्वहन किया। यहां तक कि अखाड़े में आने वाले आय व्यय का हिसाब भी बलवीर के पास था। उनकी इसी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें हरिद्वार स्थित प्रसिद्ध मंदिर बिल्केश्वर महादेव मंदिर की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। उन्होंने नरेंद्र गिरि से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए थे। आनंद गिरि और बलवीर गिरि एक साथ ही नरेंद्र गिरि के शिष्य बने थे। 

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