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बदल रहीं परंपराएं: मेरठ में बेटी ने किया पिता का पिडंदान, तो पत्नी ने किया पति का श्राद्ध

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मेरठ
Published by: Dimple Sirohi
Updated Sat, 25 Sep 2021 04:04 PM IST

सार

अक्सर पुत्र या पौत्र ही श्राद्ध व तर्पण करते हैं, लेकिन मेरठ में इस परंपरा को तोड़कर बेटियां पिता का पिंडदान और महिलाएं भी अपने पतियों का श्राद्ध कर रही हैं। 
 

पिंडदान-प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : istock

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श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्वक किया गया संस्कार होता है। पूर्वजों के लिए सोलह दिन तक श्राद्ध पक्ष का आयोजन होता है। पुत्र या पौत्र ही श्राद्ध और तर्पण करते हैं। लेकिन महिलाएं और बेटियां भी श्राद्ध कर रही हैं। पित्रों को तृप्त करने के लिए लिए शास्त्रोक्त कर्म किए जा रहे हैं।

ऐसे घर, जहां कोविड के बाद कोई पुत्र नहीं हैं, ऐसे घरों में महिलाएं श्राद्ध कर रही हैं। धर्म सिंधु और मनु स्मृति में महिलाओं को भी पिंडदान का अधिकार हैं। आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य पितरों का श्राद्ध तर्पण कर सकती हैं। 

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वाल्मीकि रामायण में भी माता सीता के द्वारा महाराज दशरथ के पिंडदान का उल्लेख मिलता है। वनवास के समय भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया पहुंचे। श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री का प्रबंध करने के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए। तब सीता जी ने पिंडदान किया था।

पत्नी ने किया पति का श्राद्ध

सैनिक विहार निवासी शिक्षिका के पति और ससुर की कोविड के दौरान मृत्यु हो गई थी। परिवार में कोई संतान नहीं होने के कारण शिक्षिका ने श्राद्ध किया। पति और ससुर की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रों के अनुसार कर्म कर रही हैं।

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पिता का किया पिंडदान
गंगानगर निवासी तीन युवतियों के पिता मवाना स्थित सरकारी कार्यालय में कार्यरत थे। कोविड के चलते उनकी मृत्यु हो गई थी। बड़ी बेटी ने पिता की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किया।

विस्तार

श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्वक किया गया संस्कार होता है। पूर्वजों के लिए सोलह दिन तक श्राद्ध पक्ष का आयोजन होता है। पुत्र या पौत्र ही श्राद्ध और तर्पण करते हैं। लेकिन महिलाएं और बेटियां भी श्राद्ध कर रही हैं। पित्रों को तृप्त करने के लिए लिए शास्त्रोक्त कर्म किए जा रहे हैं।

ऐसे घर, जहां कोविड के बाद कोई पुत्र नहीं हैं, ऐसे घरों में महिलाएं श्राद्ध कर रही हैं। धर्म सिंधु और मनु स्मृति में महिलाओं को भी पिंडदान का अधिकार हैं। आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य पितरों का श्राद्ध तर्पण कर सकती हैं। 

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वाल्मीकि रामायण में भी माता सीता के द्वारा महाराज दशरथ के पिंडदान का उल्लेख मिलता है। वनवास के समय भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया पहुंचे। श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री का प्रबंध करने के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए। तब सीता जी ने पिंडदान किया था।

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