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लखीमपुर खीरी बवाल: किसानों की अस्थि कलश यात्रा के दौरान सामने आई यह खुली ‘राजनैतिक चुनौती’

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सार

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता डॉक्टर अरुण शर्मा कहते हैं कि ऐसा संभव ही नहीं हो सकता कि इस पूरे मामले को राजनीतिक रंग न दिया जाए। क्योंकि इतना बड़ा मुद्दा गैर-राजनीतिक हो जाए, ऐसा देश की कोई भी विपक्षी राजनीतिक पार्टी नहीं होने देना चाहेगी। और लखीमपुर बवाल में तो बिल्कुल नहीं होने देना चाहेगी क्योंकि उत्तर प्रदेश समेत इसके पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव हैं…

लखीमपुर खीरी अंतिम अरदास कार्यक्रम
– फोटो : अमर उजाला (फाइल फोटो)

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लखीमपुर के तिकुनिया में हुए बवाल में मारे गए चार सिख किसानों के अस्थि कलश को पूरे देश में घुमाया जाएगा। खास बात यह है कि अस्थि कलश को देश के उन उत्तर भारत के राज्यों में भी घुमाया जाएगा, जहां अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं। लेकिन किसानों के यह अस्थि कलश किसी राजनैतिक दल के हाथ में न देकर किसान मोर्चा के कार्यकर्ताओं के हाथों में ही रहेंगे। किसान मोर्चा के नेताओं के मुताबिक अस्थि कलश घुमाने के पीछे मकसद भारतीय जनता पार्टी सरकार और उनके नेताओं के किए गए अत्याचार का विरोध करना है। अब ऐसे में इतने भारी विरोध-प्रदर्शन के दौरान राजनैतिक पार्टियों के लिए यह खुला चैलेंज है कि अस्थि कलश यात्रा के दौरान कौन राजनीतिक पार्टी इस को भुनाने में आगे रहती है। सभी विरोधी पार्टियों के लिए यह ओपन चैलेंज की तरह है पूरे मुद्दे को कौन किस तरह से राजनीतिक रूप से अपने पक्ष में भुना पाता है।

लखीमपुर की तिकुनिया में मंगलवार को आयोजित अंतिम अरदास समारोह में जिस तरीके से राजनीतिक पार्टी के लोगों को मंच पर जाने से रोक दिया गया, उससे एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि किसान मोर्चा किसी राजनीतिक पार्टी को इस पूरे मामले को हाईजैक करने नहीं देना चाह रहा है। लेकिन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी समेत तमाम विपक्षी पार्टियां किसानों और सिखों समेत सरकार से नाराज अन्य लोगों को अपने साथ जोड़कर राजनैतिक माइलेज लेने की पूरी जुगत में लगी हुई हैं। प्रियंका गांधी, जयंत चौधरी, दीपेंद्र हुड्डा, योगेंद्र यादव समेत किसी भी राजनैतिक शख्स को मंगलवार को मंच पर नहीं जाने दिया गया। तिकुनिया में मौजूद किसान मोर्चा से जुड़े बलवंत सिंह कहते हैं या उनके और उनके पूरे किसान समुदाय तथा सिख समुदाय के लिए बहुत बड़ी विपदा का समय है। हम इस विपदा को किसी भी तरह से राजनीतिक रूप से इस्तेमाल नहीं होने देना चाहते हैं। उनका कहना है यह अलग बात है कि संवेदनाओं के साथ अगर कोई भी व्यक्ति उनसे जुड़ता है या दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ा है तो वह सब का स्वागत करते हैं और सबके शुक्रगुजार हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का राजनीतिक इस्तेमाल करने के लिए किसी को वह अपने साथ नहीं जोड़ना चाहते हैं।

सत्तापक्ष को घेरने के लिए यह सबसे बड़ा मौका भी विपक्षी पार्टियां अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती हैं। यही वजह है कि किसान मोर्चा के लाख न चाहने के बाद भी सभी राजनीतिक पार्टियां इस मामले में बढ़-चढ़कर किसानों और मृतकों के परिजनों के साथ खड़ी हुई नजर आ रही हैं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और तृणमूल कांग्रेस समेत वामदलों के नेताओं ने जिस तरीके से इस मामले में लखीमपुर पहुंचकर सहानुभूति जताई वह स्पष्ट रूप से इस पूरे मामले में राजनैतिक हवा को अपने पक्ष में करने की फिराक में नजर आया। किसान संगठन के नेताओं का लगातार कहना है कि वह किसी भी राजनेता को इस पूरे मामले को हाईजैक करने नहीं देंगे।

उत्तराखंड और पंजाब चुनावों पर भी नजर

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता डॉक्टर अरुण शर्मा कहते हैं कि ऐसा संभव ही नहीं हो सकता कि इस पूरे मामले को राजनीतिक रंग न दिया जाए। क्योंकि इतना बड़ा मुद्दा गैर-राजनीतिक हो जाए, ऐसा देश की कोई भी विपक्षी राजनीतिक पार्टी नहीं होने देना चाहेगी। और लखीमपुर बवाल में तो बिल्कुल नहीं होने देना चाहेगी क्योंकि उत्तर प्रदेश समेत इसके पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव हैं। जहां पर सभी राजनैतिक विपक्षी पार्टियां सत्ता पक्ष के विरोध में इस पूरे मामले को आगे लेकर जाना चाहती हैं और जा भी रही हैं।

पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत सभी पंजाबी और सिख बाहुल्य प्रदेशों में लखीमपुर विवाद में मारे गए चारों किसानों के अस्थि कलश को ले जाया जा रहा है। और इन सभी जगहों पर अस्थि कलश के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी का विरोध किया जा रहा है। किसान मोर्चा किसी राजनीतिक पार्टी को इसमें शामिल नहीं होने देना चाहता है। बावजूद इसके सभी राजनीतिक दल इसमें शामिल होकर राजनीतिक नफा देख रहे हैं। कांग्रेस पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि जिन किसानों की लखीमपुर बवाल के दौरान मौत हुई, उनके अस्थि कलश पूरे देश के जिन राज्यों और जिलों में ले जाया जाएगा, वहां पर कांग्रेस के कार्यकर्ता उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा मिलेगा। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वह इस पूरे मामले में राजनीतिक नफा नुकसान नहीं देख रहे हैं बल्कि वह दबे-कुचले और जरूरतमंद लोगों के साथ खड़े होकर सत्ता पक्ष को यह बताना चाहते हैं कि इनके साथ अन्याय ठीक नहीं है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ल कहते हैं कि ऐसा संभव ही नहीं है कि इतने बड़े घटनाक्रम को कोई राजनैतिक पार्टी हाईजैक ना करना चाहे। खन्ना के मुताबिक कांग्रेस शुरुआत से ही इस पूरे मामले में बढ़-चढ़कर किसानों और मृतकों के साथ खड़ी नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी और बसपा के बड़े नेता भी इस पूरे मामले में मृतक किसानों से आकर मिले और उन्हें अपना समर्थन भी दिया। लेकिन जिस तरीके से प्रियंका गांधी और उनके नेता इस पूरे मामले में तिकुनिया से लेकर लखनऊ और बनारस से लेकर दिल्ली तक मुद्दे को आगे लेकर जा रहे हैं उससे एक बात तो स्पष्ट है कि कांग्रेस इस मामले में लीड लेती हुई दिख रही है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसका चुनाव में कितना असर होगा, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन कांग्रेस को इस पूरे मामले से एक बड़े विपक्ष की भूमिका के तौर पर सामने आने का मौका मिला है और वह उसको उसी तरीके से आगे भी बढ़ा रही है।

विस्तार

लखीमपुर के तिकुनिया में हुए बवाल में मारे गए चार सिख किसानों के अस्थि कलश को पूरे देश में घुमाया जाएगा। खास बात यह है कि अस्थि कलश को देश के उन उत्तर भारत के राज्यों में भी घुमाया जाएगा, जहां अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं। लेकिन किसानों के यह अस्थि कलश किसी राजनैतिक दल के हाथ में न देकर किसान मोर्चा के कार्यकर्ताओं के हाथों में ही रहेंगे। किसान मोर्चा के नेताओं के मुताबिक अस्थि कलश घुमाने के पीछे मकसद भारतीय जनता पार्टी सरकार और उनके नेताओं के किए गए अत्याचार का विरोध करना है। अब ऐसे में इतने भारी विरोध-प्रदर्शन के दौरान राजनैतिक पार्टियों के लिए यह खुला चैलेंज है कि अस्थि कलश यात्रा के दौरान कौन राजनीतिक पार्टी इस को भुनाने में आगे रहती है। सभी विरोधी पार्टियों के लिए यह ओपन चैलेंज की तरह है पूरे मुद्दे को कौन किस तरह से राजनीतिक रूप से अपने पक्ष में भुना पाता है।

लखीमपुर की तिकुनिया में मंगलवार को आयोजित अंतिम अरदास समारोह में जिस तरीके से राजनीतिक पार्टी के लोगों को मंच पर जाने से रोक दिया गया, उससे एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि किसान मोर्चा किसी राजनीतिक पार्टी को इस पूरे मामले को हाईजैक करने नहीं देना चाह रहा है। लेकिन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी समेत तमाम विपक्षी पार्टियां किसानों और सिखों समेत सरकार से नाराज अन्य लोगों को अपने साथ जोड़कर राजनैतिक माइलेज लेने की पूरी जुगत में लगी हुई हैं। प्रियंका गांधी, जयंत चौधरी, दीपेंद्र हुड्डा, योगेंद्र यादव समेत किसी भी राजनैतिक शख्स को मंगलवार को मंच पर नहीं जाने दिया गया। तिकुनिया में मौजूद किसान मोर्चा से जुड़े बलवंत सिंह कहते हैं या उनके और उनके पूरे किसान समुदाय तथा सिख समुदाय के लिए बहुत बड़ी विपदा का समय है। हम इस विपदा को किसी भी तरह से राजनीतिक रूप से इस्तेमाल नहीं होने देना चाहते हैं। उनका कहना है यह अलग बात है कि संवेदनाओं के साथ अगर कोई भी व्यक्ति उनसे जुड़ता है या दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ा है तो वह सब का स्वागत करते हैं और सबके शुक्रगुजार हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का राजनीतिक इस्तेमाल करने के लिए किसी को वह अपने साथ नहीं जोड़ना चाहते हैं।

सत्तापक्ष को घेरने के लिए यह सबसे बड़ा मौका भी विपक्षी पार्टियां अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती हैं। यही वजह है कि किसान मोर्चा के लाख न चाहने के बाद भी सभी राजनीतिक पार्टियां इस मामले में बढ़-चढ़कर किसानों और मृतकों के परिजनों के साथ खड़ी हुई नजर आ रही हैं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और तृणमूल कांग्रेस समेत वामदलों के नेताओं ने जिस तरीके से इस मामले में लखीमपुर पहुंचकर सहानुभूति जताई वह स्पष्ट रूप से इस पूरे मामले में राजनैतिक हवा को अपने पक्ष में करने की फिराक में नजर आया। किसान संगठन के नेताओं का लगातार कहना है कि वह किसी भी राजनेता को इस पूरे मामले को हाईजैक करने नहीं देंगे।

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