राजनीतिक विशेषज्ञ एएन सिंह कहते हैं कि आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में विपक्षी पार्टी के सबसे बड़े नेता के तौर पर प्रियंका गांधी की जिस तरीके से एंट्री हुई है वह निश्चित तौर पर कांग्रेस को बहुत कुछ हासिल करने की राह पर ले जा सकता है। हालांकि शुक्ला का कहना है कि पार्टी बेशक मजबूत हो लेकिन उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे के नजरिये से इसे अभी भी बहुत असरदार नहीं माना जा रहा…
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2021 – फोटो : अमर उजाला (फाइल फोटो)
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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियां और उनके बड़े नेता सक्रिय हो गए हैं। सक्रियता चाहे सोशल मीडिया पर हो या जमीन पर, यह अब जबरदस्त तरीके से उत्तर प्रदेश के जिलों में नजर आने लगी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि कौन नेता या पार्टी ऐसी है जो जमीनी तौर पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। उत्तर प्रदेश की राजनीति को बहुत करीब से समझने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक बीते कुछ समय में अगर जमीनी सक्रियता पर नजर डालें तो विपक्षी दलों में सबसे ज्यादा सक्रियता कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं की नजर आई है। जबकि सबसे कम सक्रियता बहुजन समाज पार्टी की नजर आ रही है। हालांकि सोशल मीडिया में बहुजन समाज पार्टी के नेता लगातार अपनी दस्तक देते रहते हैं।
विपक्षी पार्टियां चुनावी जंग को कितनी तैयार
अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं तो आकलन इस बात का भी किया जा रहा है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी जमीनी स्तर पर सबसे ज्यादा अपनी पैठ बनाने की राह पर है। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से नजर रखने वाले राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ भास्कर कहते हैं कि 2017 में विधानसभा चुनाव के बाद जब भाजपा ने सत्ता संभाली तो विपक्ष के तौर पर समाजवादी पार्टी ही 47 सीटों के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर बनी। उसके बाद 19 सीटों के साथ बहुजन समाज पार्टी दूसरे नंबर पर और सात सीटों के साथ कांग्रेस तीसरे नंबर पर बतौर विपक्षी पार्टी रही। डॉक्टर भास्कर के मुताबिक सरकार बनने के बाद से ही समाजवादी पार्टी लगातार विपक्ष की भूमिका में जो उससे बन पड़ता था वह करती रही। लेकिन 2019 से कांग्रेस ने अपने संगठनात्मक फेरबदल के साथ ही आक्रामक भूमिका के तौर पर जमीन बनानी भी शुरू कर दी। हालांकि सात विधायकों वाली तीसरे नंबर की विपक्षी पार्टी होने के चलते पार्टी ने अपने नवनिर्वाचित अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को सामने रखकर धीरे-धीरे प्रियंका गांधी को आगे करना शुरू किया और प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर भी जगह बनानी शुरू कर दी।
बड़ा सवाल: प्रियंका की मेहनत कितना रंग लाएगी
राजनीतिक विशेषज्ञ एएन सिंह कहते हैं कि आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में विपक्षी पार्टी के सबसे बड़े नेता के तौर पर प्रियंका गांधी की जिस तरीके से एंट्री हुई है वह निश्चित तौर पर कांग्रेस को बहुत कुछ हासिल करने की राह पर ले जा सकता है। हालांकि शुक्ला का कहना है कि पार्टी बेशक मजबूत हो लेकिन उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे के नजरिये से इसे अभी भी बहुत असरदार नहीं माना जा रहा। क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सक्रियता तो दिख रही है लेकिन वह वोटों में कितनी तब्दील होगी इस बात को लेकर अभी भी संशय बरकरार है। हालांकि उनका कहना है 2019 में हुए सोनभद्र कांड के साथ ही प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में जबरदस्त तरीके से एंट्री की थी जो अभी भी बरकरार है। उनका कहना है हालांकि बीच-बीच में विपक्षी जरूर प्रियंका गांधी और कांग्रेस के नेताओं को पॉलिटिकल टूरिज्म या इवेंट पॉलिटिक्स के नाम से घेरते रहते हैं लेकिन प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी ने बीते कुछ समय में जिस तरीके से जमीन पर काम करना शुरू किया है वह बतौर विपक्षी पार्टी काफी कुछ हासिल करने की राह में है।
सपा ने भी विपक्ष की भूमिका मजबूती से निभाई
चूंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी है। राजनीतिक विश्लेषक अरुण सहाय कहते हैं ऐसे में बतौर विपक्ष की पार्टी के तौर पर जो किया जाना चाहिए वह समाजवादी पार्टी के नेता लगातार करते आ रहे हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार मैदान में उतर कर कई बड़े मामलों में प्रदर्शन करते रहे हैं। समाजवादी पार्टी की नेता पूजा शुक्ला कहती हैं कि 2017 में सहारनपुर में दलितों की हत्या के बाद में समाजवादी पार्टी ने जिस तरीके से आंदोलन खड़ा किया था वह एक मिसाल है। पूजा कहती है कि उन्नाव रेप कांड में भी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत उनकी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। लखीमपुर कांड में भी अखिलेश यादव मैदान में उतर कर पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे। समाजवादी पार्टी के नेताओं का तर्क है कि उनके नेता जमीन से जुड़े हुए हैं इसीलिए वह जमीन पर उतर कर आम आदमी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। समाजवादी पार्टी भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती है।
ज़मीन पर कम सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय बसपा बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में दूसरे नंबर की विपक्षी पार्टी है। बसपा के इस वक्त विधानसभा में 19 विधायक हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अन्य राजनीतिक दलों के प्रमुखों की तुलना में जनता के बीच में न के बराबर पहुंचती है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक 2017 में विधानसभा चुनावों के बाद सबसे ज्यादा बसपा के नेता 2019 के लोकसभा चुनावों में मैदान में निकले थे। इसमें मायावती भी शामिल थी। हालांकि बसपा ने बीते कुछ महीने में अपने सबसे कद्दावर नेताओं में शामिल सतीश चंद्र मिश्रा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में बढ़-चढ़कर आगे आने और जमीन पर उतरने के लिए पूरी तैयारियों का खाका खींचा और उन्हें प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के माध्यम से जमीन पर उतारा। राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर भास्कर कहते हैं बसपा में सिर्फ सतीश चंद्र मिश्रा ही एक ऐसे बड़े नेता हैं जो कुछ समय से जमीन पर उतर कर राजनीति में बसपा की सक्रियता को बढ़ा रहे हैं। हालांकि इससे अलग देश के किसी भी बड़े घटनाक्रम पर बसपा प्रमुख मायावती सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी त्वरित टिप्पणी जरूर देती रहती हैं।
विस्तार
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियां और उनके बड़े नेता सक्रिय हो गए हैं। सक्रियता चाहे सोशल मीडिया पर हो या जमीन पर, यह अब जबरदस्त तरीके से उत्तर प्रदेश के जिलों में नजर आने लगी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि कौन नेता या पार्टी ऐसी है जो जमीनी तौर पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। उत्तर प्रदेश की राजनीति को बहुत करीब से समझने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक बीते कुछ समय में अगर जमीनी सक्रियता पर नजर डालें तो विपक्षी दलों में सबसे ज्यादा सक्रियता कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं की नजर आई है। जबकि सबसे कम सक्रियता बहुजन समाज पार्टी की नजर आ रही है। हालांकि सोशल मीडिया में बहुजन समाज पार्टी के नेता लगातार अपनी दस्तक देते रहते हैं।
विपक्षी पार्टियां चुनावी जंग को कितनी तैयार
अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं तो आकलन इस बात का भी किया जा रहा है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी जमीनी स्तर पर सबसे ज्यादा अपनी पैठ बनाने की राह पर है। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से नजर रखने वाले राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ भास्कर कहते हैं कि 2017 में विधानसभा चुनाव के बाद जब भाजपा ने सत्ता संभाली तो विपक्ष के तौर पर समाजवादी पार्टी ही 47 सीटों के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर बनी। उसके बाद 19 सीटों के साथ बहुजन समाज पार्टी दूसरे नंबर पर और सात सीटों के साथ कांग्रेस तीसरे नंबर पर बतौर विपक्षी पार्टी रही। डॉक्टर भास्कर के मुताबिक सरकार बनने के बाद से ही समाजवादी पार्टी लगातार विपक्ष की भूमिका में जो उससे बन पड़ता था वह करती रही। लेकिन 2019 से कांग्रेस ने अपने संगठनात्मक फेरबदल के साथ ही आक्रामक भूमिका के तौर पर जमीन बनानी भी शुरू कर दी। हालांकि सात विधायकों वाली तीसरे नंबर की विपक्षी पार्टी होने के चलते पार्टी ने अपने नवनिर्वाचित अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को सामने रखकर धीरे-धीरे प्रियंका गांधी को आगे करना शुरू किया और प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर भी जगह बनानी शुरू कर दी।
बड़ा सवाल: प्रियंका की मेहनत कितना रंग लाएगी
राजनीतिक विशेषज्ञ एएन सिंह कहते हैं कि आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में विपक्षी पार्टी के सबसे बड़े नेता के तौर पर प्रियंका गांधी की जिस तरीके से एंट्री हुई है वह निश्चित तौर पर कांग्रेस को बहुत कुछ हासिल करने की राह पर ले जा सकता है। हालांकि शुक्ला का कहना है कि पार्टी बेशक मजबूत हो लेकिन उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे के नजरिये से इसे अभी भी बहुत असरदार नहीं माना जा रहा। क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सक्रियता तो दिख रही है लेकिन वह वोटों में कितनी तब्दील होगी इस बात को लेकर अभी भी संशय बरकरार है। हालांकि उनका कहना है 2019 में हुए सोनभद्र कांड के साथ ही प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में जबरदस्त तरीके से एंट्री की थी जो अभी भी बरकरार है। उनका कहना है हालांकि बीच-बीच में विपक्षी जरूर प्रियंका गांधी और कांग्रेस के नेताओं को पॉलिटिकल टूरिज्म या इवेंट पॉलिटिक्स के नाम से घेरते रहते हैं लेकिन प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी ने बीते कुछ समय में जिस तरीके से जमीन पर काम करना शुरू किया है वह बतौर विपक्षी पार्टी काफी कुछ हासिल करने की राह में है।
सपा ने भी विपक्ष की भूमिका मजबूती से निभाई
चूंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी है। राजनीतिक विश्लेषक अरुण सहाय कहते हैं ऐसे में बतौर विपक्ष की पार्टी के तौर पर जो किया जाना चाहिए वह समाजवादी पार्टी के नेता लगातार करते आ रहे हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार मैदान में उतर कर कई बड़े मामलों में प्रदर्शन करते रहे हैं। समाजवादी पार्टी की नेता पूजा शुक्ला कहती हैं कि 2017 में सहारनपुर में दलितों की हत्या के बाद में समाजवादी पार्टी ने जिस तरीके से आंदोलन खड़ा किया था वह एक मिसाल है। पूजा कहती है कि उन्नाव रेप कांड में भी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत उनकी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। लखीमपुर कांड में भी अखिलेश यादव मैदान में उतर कर पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे। समाजवादी पार्टी के नेताओं का तर्क है कि उनके नेता जमीन से जुड़े हुए हैं इसीलिए वह जमीन पर उतर कर आम आदमी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। समाजवादी पार्टी भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती है।
ज़मीन पर कम सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय बसपा
बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में दूसरे नंबर की विपक्षी पार्टी है। बसपा के इस वक्त विधानसभा में 19 विधायक हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अन्य राजनीतिक दलों के प्रमुखों की तुलना में जनता के बीच में न के बराबर पहुंचती है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक 2017 में विधानसभा चुनावों के बाद सबसे ज्यादा बसपा के नेता 2019 के लोकसभा चुनावों में मैदान में निकले थे। इसमें मायावती भी शामिल थी। हालांकि बसपा ने बीते कुछ महीने में अपने सबसे कद्दावर नेताओं में शामिल सतीश चंद्र मिश्रा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में बढ़-चढ़कर आगे आने और जमीन पर उतरने के लिए पूरी तैयारियों का खाका खींचा और उन्हें प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के माध्यम से जमीन पर उतारा। राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर भास्कर कहते हैं बसपा में सिर्फ सतीश चंद्र मिश्रा ही एक ऐसे बड़े नेता हैं जो कुछ समय से जमीन पर उतर कर राजनीति में बसपा की सक्रियता को बढ़ा रहे हैं। हालांकि इससे अलग देश के किसी भी बड़े घटनाक्रम पर बसपा प्रमुख मायावती सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी त्वरित टिप्पणी जरूर देती रहती हैं।