धूल-धुआं और बढ़ते प्रदूषण के चलते लोग सांस के रोगी बन रहे हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के वक्ष एवं क्षय रोग विभाग ने 78 मरीजों पर स्टडी की है, जिसमें यह जानकारी सामने आई है।
वातावरण में छाई धुंध – फोटो : अमर उजाला
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धूल-धुआं और प्रदूषण लोगों के फेफड़ों को कमजोर कर रहा है। बढ़ते प्रदूषण के चलते लोग सांस के रोगी बन रहे हैं। आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के वक्ष एवं क्षय रोग की स्टडी के अनुसार प्रदूषण से सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के सात फीसदी मरीज मिले। बीते 10 साल में प्रदूषण से सांस रोगियों का यह औसत सबसे ज्यादा है।
ये हैं बीमारी के कारण एसएन के वक्ष एवं क्षय रोग विभाग के स्टडी करने वाले वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. जीवी सिंह ने बताया कि वर्ष 2019 से 2021 तक ओपीडी में आने वाले 78 मरीजों पर स्टडी की गई। इनकी उम्र 42 से 86 साल के बीच रही। इनमें 61 फीसदी पुरुष और 39 फीसदी महिलाएं थीं। इनमें से सात फीसदी मरीजों में सांस की बीमारी की वजह प्रदूषण पाया गया।
ये मरीज कारखाने, निर्माण कार्य से जुड़े कार्य करने वाले, सड़क किनारे व निर्माण कार्य वाले क्षेत्र में रहने वाले निवासी और दुकानदार रहे। जबकि 51 फीसदी को टीबी की बीमारी, 42 प्रतिशत को घर के प्रदूषण (डस्ट माइट, लकड़ी के चूल्हे-कोयले का धुआं) के कारण बीमारी पनपी।
उन्होंने बताया कि इन दो साल में खासतौर से अक्तूबर-नवंबर और बाकी के दिनों के हालात की तुलना के लिए सांस-फेफड़ों की जांच की गई। अक्तूबर-नवंबर में स्मॉग के चलते मरीजों की हालत धूम्रपान करने वालों से भी ज्यादा गंभीर मिली। इनके फेफड़े की कार्यक्षमता घट गई थी।
खांसी-बलगम की शिकायत पर आए थे डॉ. जीवी सिंह ने बताया कि स्टडी में जो सात फीसदी नए मरीज मिले उनको जाड़ा शुरू होने पर खांसी-बलगम ज्यादा आ रहा था। सीने में जकड़न की भी दिक्कत थी। दवाएं लेने पर फौरी तौर पर आराम मिलता और फिर से परेशानी होने लगती। चलने-फिरने में भी सांस फूल रही थी। मेहनत का थोड़ा सा कार्य करने पर भी थकान, कमजोरी हो रही थी।
कुल मरीज : 78 बाहर का धूल-धुआं : 7 फीसदी टीबी की बीमारी : 51 फीसदी घर में धूल-धुंआ : 42 फीसदी
फेफड़ों को ऐसे रख सकते हैं स्वस्थ – धूम्रपान न करें, तनाव न पालें, टहलें। – लंबी सांस लेने का नियमित व्यायाम करें – गहरी सांस लें और तीन सेकंड तक रोकें। – हवा को बाहर निकालने के लिए पेट की मांसपेशियों का उपयोग न करें। – प्रदूषण से बचने को थ्री लेयर मास्क का उपयोग करें। (जैसा कि डॉ. संतोष कुमार, विभागाध्यक्ष वक्ष एवं क्षय रोग एसएन मेडिकल कॉलेज ने बताया)
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धूल-धुआं और प्रदूषण लोगों के फेफड़ों को कमजोर कर रहा है। बढ़ते प्रदूषण के चलते लोग सांस के रोगी बन रहे हैं। आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के वक्ष एवं क्षय रोग की स्टडी के अनुसार प्रदूषण से सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के सात फीसदी मरीज मिले। बीते 10 साल में प्रदूषण से सांस रोगियों का यह औसत सबसे ज्यादा है।
ये हैं बीमारी के कारण
एसएन के वक्ष एवं क्षय रोग विभाग के स्टडी करने वाले वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. जीवी सिंह ने बताया कि वर्ष 2019 से 2021 तक ओपीडी में आने वाले 78 मरीजों पर स्टडी की गई। इनकी उम्र 42 से 86 साल के बीच रही। इनमें 61 फीसदी पुरुष और 39 फीसदी महिलाएं थीं। इनमें से सात फीसदी मरीजों में सांस की बीमारी की वजह प्रदूषण पाया गया।
ये मरीज कारखाने, निर्माण कार्य से जुड़े कार्य करने वाले, सड़क किनारे व निर्माण कार्य वाले क्षेत्र में रहने वाले निवासी और दुकानदार रहे। जबकि 51 फीसदी को टीबी की बीमारी, 42 प्रतिशत को घर के प्रदूषण (डस्ट माइट, लकड़ी के चूल्हे-कोयले का धुआं) के कारण बीमारी पनपी।