देशभर के थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है।
जस्टिस विक्रम नाथ की अगुवाई वाली बेंच ने अखबार की एक रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है।
कस्टोडियल डेथ: थानों में CCTV की कमी पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान, खुद की PIL पर सुनवाई शुरू
नई दिल्ली: देशभर के पुलिस स्टेशनों में CCTV कैमरों की कमी की पोल खोलने वाली एक अखबार की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले पर संज्ञान लिया है। उन्होंने बताया कि साल 2025 में पिछले 7-8 महीनों में केवल राजस्थान में ही पुलिस हिरासत में 11 मौतें दर्ज की गई हैं। इसकी वजह से ही शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर तत्काल संज्ञान लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी को लेकर स्वत संज्ञान जनहित याचिका पंजीकृत करने का निर्देश दिया है। अदालत ने 2018 में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने पुलिस हिरासत में हुई मौतों की खबरों के बाद यह कदम उठाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेकर पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी को लेकर एक स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पंजीकृत करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने 2018 में मानवाधिकारों का हनन रोकने के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, ..हम ‘पुलिस थानों में चालू हालत वाले सीसीटीवी कैमरों की कमी’ शीर्षक से एक स्वत: संज्ञान जनहित याचिका दर्ज करने का निर्देश दे रहे हैं क्योंकि ऐसी खबरें आई हैं कि इस वर्ष के पिछले सात-आठ महीनों में पुलिस हिरासत में लगभग 11 मौतें हुई हैं।

केंद्र सरकार को भी दिया था निर्देश
शीर्ष अदालत केंद्र सरकार को भी सीबीआई, ईडी और एनआईए सहित जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे एवं रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन, सभी प्रवेश और निकास के स्थानों, मुख्य द्वार, लॉक-अप, गलियारों, लाबी और रिसेप्शन के साथ-साथ लाक-अप रूम के बाहर के क्षेत्रों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं ताकि कोई भी हिस्सा कवरेज से बाहर न रहे। शीर्ष अदालत ने था कि सीसीटीवी सिस्टम, नाइट विजन से लैस होने चाहिए और इसमें आडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज भी होनी चाहिए। केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए ऐसे सिस्टम खरीदना अनिवार्य होगा.
डेटा कम से कम एक साल सेफ रहे
अदालत ने साफ कहा था कि थाने का कोई भी हिस्सा निगरानी से बाहर नहीं होना चाहिए। लॉकअप से लेकर मेन गेट, कॉरिडोर, इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर के कमरे, ड्यूटी रूम और थाने का पूरा कैंपस सीसीटीवी कवरेज में होना चाहिए। साथ ही, सीबीआई, ईडी, एनआईए, एनसीबी और डीआरआई जैसे केंद्रीय जांच एजेंसियों के दफ्तरों में भी कैमरे लगाने के आदेश दिए गए थे। इनका डेटा कम से कम एक साल सेफ रहे।

2020 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक महत्वपूर्ण फैसले में देश के सभी पुलिस स्टेशनों में नाइट विजन और ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा वाले सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था। इस फैसले में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को पुलिस परिसर के सभी महत्वपूर्ण स्थानों, जैसे हवालात और पूछताछ कक्षों में, कार्यात्मक सीसीटीवी कवरेज सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि फुटेज को कम से कम 18 महीनों तक सुरक्षित रखा जाए और हिरासत में हुई हिंसा या मौतों से संबंधित जांच के दौरान इसे उपलब्ध कराया जाए।
आदेश के बावजूद पालन न होना
इन स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, कई पुलिस स्टेशनों में अभी भी काम करने वाले सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं, या फिर फुटेज गायब हो जाती हैं। इस कारण अक्सर जांच में बाधा आती है और जवाबदेही तय नहीं हो पाती। पुलिस विभाग अक्सर हिरासत में हुई हिंसा के मामलों में तकनीकी खराबी या फुटेज उपलब्ध न होने का बहाना बनाते हैं। सुप्रीम कोर्ट की इस स्वतः संज्ञान कार्रवाई से पता चलता है कि इन आदेशों का पालन करने में अभी भी बहुत कमी है।
सीसीटीवी फुटेज मांगने का अधिकार
कोर्ट ने सीसीटीवी सिस्टम की खरीद, स्थापना और रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए बनी राज्य और केंद्रीय निगरानी समितियों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि गंभीर चोटों या हिरासत में हुई मौतों के मामलों में पीड़ित या उनके परिवार मानवाधिकार आयोगों या अदालतों से संपर्क कर सकते हैं, जिनके पास जांच और सबूत के लिए सीसीटीवी फुटेज मांगने का अधिकार है।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने एक मीडिया रिपोर्ट का संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया था कि साल 2025 में जनवरी से अगस्त के बीच राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 लोगों की मौत हो चुकी है. इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि ऐसे मामलों में अक्सर पुलिस सीसीटीवी फुटेज देने से बचती है. इसके पीछे पुलिस की तरफ से कई तरह के कारण बताए जाते हैं, जैसे कि “तकनीकी खराबी”, “फुटेज स्टोरेज की कमी”, “जांच जारी है” या “कानूनी प्रतिबंध”. कई मामलों में तो पुलिस ने फुटेज देने से सीधे इनकार कर दिया या जानबूझकर देरी की.
सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्देश
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों को लेकर सख्त रुख अपनाया है. अदालत ने पहले ही पारदर्शिता बनाए रखने और हिरासत में होने वाली ज्यादतियों को रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हर पुलिस थाने में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं. अदालत ने यह भी साफ किया था कि थाने का कोई भी हिस्सा, जिसमें रिमांड रूम भी शामिल है, कैमरे की निगरानी से बाहर नहीं होना चाहिए. आदेश के अनुसार, सीसीटीवी फुटेज को डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर या नेटवर्क वीडियो रिकॉर्डर में 18 महीने तक सुरक्षित रखना जरूरी है. हर थाने के एसएचओ को सीसीटीवी फुटेज के रखरखाव और रिकॉर्डिंग की जिम्मेदारी दी गई थी.
‘अंतिम मौका’ के बाद भी नहीं सुधरे हालात
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2023 में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए “आखिरी मौका” दिया था. यह निर्देश तीन महीने के भीतर पूरा करने को कहा गया था. हालांकि, राजस्थान में सामने आए इन मामलों से यह साफ है कि इन निर्देशों का पालन पूरी तरह से नहीं किया गया है. कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन की समीक्षा के लिए बनाई गई केंद्रीय और राज्य स्तरीय कमेटियां भी ठीक से काम नहीं कर रही हैं.
चेतावनी के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि सीसीटीवी नाइट विजन वाला हो और उसमें विडियो और ऑडियो दोनों रिकॉर्डिंग की सुविधा हो। डाटा कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखा जाए। बिजली और इंटरनेट की कमी वाले इलाकों में सोलर या विंड एनर्जी जैसी व्यवस्था करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी।
3 साल बाद भी स्थिति जस की तस है
हालांकि, आदेश जारी होने के तीन साल बाद भी स्थिति जस की तस है। कई थानों में कैमरे लगे ही नहीं और जहां लगे है, वहां बड़ी संख्या में वे खराब पड़े है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2023 में दोबारा सख्ती दिखाई थी और केंद्र और राज्य सरकारों को चेतावनी दी थी कि आदेश पर अमल नहीं हुआ तो संबंधित गृह सचिव और मुख्य सचिव के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। चेतावनी के बाद भी हालात नहीं बदले। सलाहकार समिति ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि अब तक आदेश का पालन नहीं किया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट जयवंत भैरविया ने बताया कि पहली बात ताे पुलिस सीसीटीवी देती नहीं है। थानों में ऐसी जगह रिमांड रूम होते हैं, जहां कैमरे की नजर नहीं जाती है।
सीटीवी को लेकर सूचना आयोग व काेर्ट के बड़े फैसले
सुप्रीम कोर्ट का आदेश : परमवीर सैनी बनाम बलजीत प्रकरण मेंं कोर्ट ने कहा था कि पुलिस थाने में कैमरे लगें और 18 महीने तक फुटेज रखना जरूरी है। हिरासत में हो रही मौत और क्रूरता को लेकर सीसीटीवी हर किसी को देना जरूरी है। यह फैसला 2020 में आया था।
सूचना आयोग के फैसले : आरूषि जैन बनाम एडि.एसपी सुखेर थाना के मामले को लेकर आयोग ने कहा था कि सीसीटीवी पुलिस थाने या सरकारी कार्यालय के बाहर गोपनीयता के लिए नहीं हैं। बल्कि पारदर्शिता, निष्पक्षता के लिए है। इसलिए सीसीटीवी फुटेज देना जरूरी है।
आरटीआई मामले में अगर किसी स्थानीय अधिकारी ने सीसीटीवी फुटेज नहीं दिए हैं तो आगे अपील की जा सकती है।
इन मामलों में पुलिस द्वारा सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध न कराना संदेह पैदा करता है. अदालत ने इस मामले में सभी संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है.