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SMC कमिश्नर को 26 जून को उपस्थित रहने के लिए मानव अधिकार आयोग का समन

SMC कमिश्नर को 26 जून को उपस्थित रहने के लिए मानव अधिकार आयोग का समन
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टी.पी. 20 फाइनल होने के वर्षों बाद पुणे में प्राथमिक सुविधाएं न देने पर आयोग की समन

सूरत महानगरपालिका के क्षेत्र में नए इलाकों को शामिल किया जा रहा है। काफी समय से ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि नए इलाकों को शामिल करने के बाद सूरत महानगरपालिका द्वारा टैक्स तो लिया जाता है, लेकिन उस क्षेत्र में प्राथमिक सुविधाएं प्रदान नहीं की जातीं। इस मामले में एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा लंबे समय से महानगरपालिका में प्राथमिक सुविधाओं की कमी का मुद्दा उठाया गया, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। अंततः उन्होंने गुजरात राज्य मानव अधिकार आयोग में लिखित शिकायत दर्ज कराई।


सालों बाद भी प्राथमिक सुविधाओं का अभाव
सूरत महानगरपालिका में 2006 से शामिल पुणा गांव में इतने सालों बाद भी प्राथमिक सुविधाओं की कमी देखी जा रही है। स्थानीय लोग और वहां के नगरसेवकों द्वारा समय-समय पर कई तरह की शिकायतें और प्रस्तुतियाँ देने के बावजूद वहां के निवासी मूलभूत प्राथमिक सुविधाओं से वंचित हैं। 2019 में टी.पी. 20 प्रीलिम हो जाने के बाद भी वहां की सड़कें पर्याप्त चौड़ी नहीं हुई हैं, न ही शांति कुंज का कोई ठिकाना है और न ही सार्वजनिक शौचालयों का प्रबंध। इस मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप गोहेल ने कई बार शिकायत की, लेकिन समाधान नहीं मिलने पर 21/03/2025 को गुजरात राज्य सार्वजनिक सेवा आयोग में याचिका दाखिल की। इसके बाद आयोग ने सूरत नगर निगम के कमिश्नर को समन भेजा है और 26 जून को उपस्थित होने को कहा है।
बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई सुविधा नहीं मिल रही: कुलदीप गोहेल
इस मामले में पालिका के खिलाफ शिकायत करने वाले समाजसेवी कुलदीप गोहेल ने बताया कि पुणा गांव टी.पी. 20 में अभी भी कई प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। टी.पी. की सड़कें मानक अनुसार नहीं बनी हैं, बच्चों के खेलने के लिए अच्छा मैदान नहीं है। वड़ों के लिए शांति कुंज भी नहीं बनाया गया है। पब्लिक यूरिनल ब्लॉक की भी कमी है। पार्किंग के लिए आवंटित प्लॉटों को भी गलत तरीके से फूड कोर्ट वालों को किराए पर दे दिया गया है, जिससे सड़क पर पार्किंग करनी पड़ती है और ट्रैफिक में बाधा आती है। स्थानीय लोगों और नगरसेवकों ने कई बार शिकायतें कीं, लेकिन प्रशासन ने उनकी बात नहीं सुनी, इसलिए उन्हें मजबूरन मानव अधिकार आयोग तक जाना पड़ा।

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