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गुजरात सूचना आयोग द्वारा 12 आरटीआई आवेदकों को आवेदन करने पर बैन लगाने पर भड़के देश भर के आरटीआई कार्यकर्ता

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गुजरात सूचना आयोग का आरटीआई आवेदकों पर बैन सम्बन्धी तुगलकी फरमान गैरकानूनी असंवैधानिक – पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी

लोकहित के व्यापक मामले पर आयोजित हुआ 112 वां आरटीआई वेबीनार

गुजरात सूचना आयोग के दो ब्यूरोक्रेटिक बैकग्राउंड से जुड़े हुए सूचना आयुक्तों के द्वारा अभी हाल ही में 2020 से लेकर अब तक कुल 12 आरटीआई कार्यकर्ताओं को आरटीआई आवेदन लगाने, उनकी अपील सुनने और सूचना आयोग में उनकी सुनवाई करने पर बैन लगाने संबंधी मुद्दों को लेकर 112 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न कोनों से वरिष्ठ आरटीआई एक्टिविस्ट एवं पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने शिरकत की।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर गुजरात माहिती अधिकार पहल की संस्थापक और आरटीआई हेल्पलाइन की प्रायोजक सुश्री पंक्ति जोग सहित आरटीआई एक्टिविस्ट भास्कर प्रभु, राजस्थान से वरिष्ठ वकील एवं आरटीआई एक्टिविस्ट ताराचंद्र जांगिड़, पीएस जाट, उत्तराखंड से आरटीआई रिसोर्स पर्सन वीरेंद्र कुमार ठक्कर एवं छत्तीसगढ़ से देवेंद्र कुमार अग्रवाल सहित सैकड़ों की संख्या में आरटीआई एक्टिविस्ट सम्मिलित हुए और पूरे देश में विभिन्न सूचना आयोगों के द्वारा जारी किए जा रहे तुगलकी फरमानों पर आक्रोश जाहिर किया और इसके विरोध में खुलकर आंदोलन करने की चेतावनी दी है।

सूचना आयुक्तों के द्वारा आरटीआई आवेदक पर आवेदन पर बैन एक तरह का तुगलकी फरमान – पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी

उधर मामले में अपना पक्ष रखते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि सूचना आयुक्त सूचना के अधिकार कानून की मूल भावना से हटकर आदेश जारी कर रहे हैं जिनका न तो भारतीय संविधान और न ही आरटीआई कानून से ही कोई लेना देना है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस प्रकार के आदेश पूरी तरह से अवैधानिक हैं और संविधान की मूल भावना के विपरीत है और साथ में मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त द्वारा बताया गया कि देश के अंदर कोई भी कानून किसी भी व्यक्ति को आरटीआई आवेदन लगाने से नहीं रोक सकता है। यहां तक कि जेल में बंद और क्रिमिनल व्यक्ति को भी सूचना का अधिकार कानून का उपयोग कर अपने आप को निर्दोष साबित करने का पूरा अधिकार होता है। ऐसे में ब्यूरोक्रेटिक बैकग्राउंड से आने वाले ऐसे सूचना आयुक्त आरटीआई कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं और खुलेआम आरटीआई कानून का उल्लंघन कर रहे हैं जिन्हें आरटीआई कानून की एबीसीडी भी नहीं पता। ऐसे आदेशों के विरुद्ध आरटीआई कार्यकर्ताओं और आम जनता को सड़क पर उतरने की जरूरत है और सब कुछ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट पर ही नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने आदित्य बंदोपाध्याय और गिरीश रामचंद्र देशपांडे आदि जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा कि यह ऐसे आदेश हैं जिनका हवाला देकर आज अधिकतर जानकारी आम जनता से दूर रखी जा रही है और आरटीआई कानून का मजाक बनाया जा रहा है। इसलिए कोर्ट को अपना काम करने दें और उस पर ज्यादा उम्मीद न रखें और समस्त आरटीआई उपयोगकर्ताओं को एकजुट होकर पूरे देश में एक अभियान चलाना चाहिए और एक पब्लिक ओपिनियन बनाना पड़ेगा तभी आरटीआई कानून को बचाया जा सकता है अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब इस प्रकार तुगलकी फरमान जारी कर पूरे आरटीआई कानून का सत्यानाश कर दिया जाएगा।

गुजरात हाई कोर्ट द्वारा माहिती अधिकार पहल की पिटीशन खारिज कर लगाया गया जुर्माना – पंक्ति जोग

गुजरात से वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता एवं माहिती अधिकार पहल की संयोजक आरटीआई एक्टिविस्ट पंक्ति जोग द्वारा बताया गया कि उन्होंने इन सभी मामलों को लेकर एक रिट पिटिशन हाई कोर्ट गुजरात में माहिती अधिकार पहल के माध्यम से लगाई थी लेकिन कोर्ट ने मामले को सुनने से ही इंकार कर दिया और पिटीशन को खारिज करते हुए उल्टा संगठन के ऊपर जुर्माना लगा दिया। हालांकि इसमें हाई कोर्ट से पीआईएल में जाने की अपील की गई थी लेकिन सुनवाई नहीं हुई। पंक्ति जोग ने बताया कि इस प्रकार के मामले आरटीआई कानून को कमजोर कर रहे हैं और हम सब को एकत्रित होकर न केवल गुजरात में बल्कि पूरे देश में एक अभियान चलाना पड़ेगा और इसके लिए सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं के सुझाव आमंत्रित हैं। इस मामले को और कैसे बेहतर ढंग से लड़ा जा सकता है सभी आरटीआई कार्यकर्ता अपने सुझाव अवश्य दें। उन्होंने बताया कि सूचना आयुक्तों का इस प्रकार तुगलकी फरमान जारी हुआ जिसमें 12 आरटीआई आवेदकों के आरटीआई आवेदन पर बैन लगा दिया गया है तब से उनका संगठन और आरटीआई एकता मंच नामक संगठन के द्वारा यह प्रयास किए जा रहे हैं कि किसी भी आरटीआई आवेदक के मामले की सुनवाई तुगलकी फरमान जारी करने वाले ऐसे सूचना आयुक्तों की कोर्ट में हो ही नहीं ।

धारा 4 की पालना किए बिना ऐसे तुगलकी फरमान अंग्रेजियत की याद दिलाते हैं – भास्कर प्रभु

उधर 75 वर्ष स्वतंत्रता प्राप्त किए हुए व्यतीत होने के बाद आज जब देश तिरंगा यात्रा में व्यस्त है ऐसे में गुजरात जैसे सूचना आयोग में जारी किए गए तुगलकी फरमान जिसमें आरटीआई आवेदकों को आरटीआई लगाने पर ही बैन कर दिया गया है अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाते हैं। ऐसा लगता है जैसे भारत में अंग्रेजों का राज्य वापस आ रहा है और व्यक्ति को उसके मूल संवैधानिक अधिकार से ही वंचित किया जाने लगा है। भास्कर प्रभु ने कहा कि हम सब को सबसे पहले यदि आरटीआई से जुड़ा हुआ मुद्दा है तो यह देखने की आवश्यकता है कि क्या वह मामला धारा 4 की श्रेणी में आता है और यदि आता है तो पहले वह जानकारी मुफ्त में वेब पोर्टल पर साझा की जानी चाहिए और उसके लिए कोई आरटीआई लगाए जाने की आवश्यकता ही नहीं है। साथ में भास्कर प्रभु ने यह भी कहा कि अक्सर हम आरटीआई आवेदक के बैकग्राउंड को लेकर फालतू के तर्क करते हैं लेकिन यह गलत है क्योंकि आरटीआई कोई क्रिमिनल भी लगा सकता है और कोई सामान्य व्यक्ति भी लगा सकता है। आरटीआई आवेदन करने की पहली कंडीशन यह होती है कि हमें भारतीय नागरिक होना चाहिए। अतः कोई भी भारतीय नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए आरटीआई आवेदन कर सकता है। इसलिए आरटीआई से संबंधित जब बात आए तो वहां आरटीआई के दायरे में ही रहकर स्थिति देखी जाए। यदि व्यक्ति असामाजिक है या क्रिमिनल है इसका आरटीआई से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि आरटीआई में जो बातें पूछी जाती हैं यदि वह जानकारी शासन प्रशासन द्वारा दिए जाने योग्य है तो वह जानकारी दी जानी चाहिए और व्यक्ति के सामाजिक बैकग्राउंड का कोई उल्लेख आरटीआई आवेदन या सूचना आयोगों द्वारा जारी किए जाने वाले आदेशों में नहीं होना चाहिए। आज देश के तमाम सूचना आयोगों में जो ट्रेंड चल रहा है वह पूरी तरह से चिंताजनक है और भारतीय संविधान की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत है जिसका पुरजोर विरोध किए जाने की जरूरत है।

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