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वनाधिकार और आरटीआई विषय पर आयोजित हुआ 117 वां वेबिनार, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत ने वेबीनार को किया संबोधित

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कार्यक्रम में सूचना आयुक्त शैलेश गांधी और आत्मदीप भी रहे उपस्थित

सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल ने अपने जमीनी अनुभव किए साझा

वनाधिकार पारदर्शिता और आरटीआई को लेकर 117 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का आयोजन दिनांक 18 सितंबर 2022 को सुबह 11:00 से दोपहर 1:30 के बीच में किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल ने अपने अनुभव और विचार साझा किए।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत

वनाधिकार से आदिवासियों को मिला उनका वास्तविक अधिकार – पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत

कार्यक्रम में सर्वप्रथम संबोधित करते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के विभिन्न पदों पर अपनी सेवा देने वाले ओम प्रकाश रावत ने बताया कि जब वह मध्यप्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के पद पर कार्य कर रहे थे उस समय मध्यप्रदेश की सरकार ने आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि भारतीय वन अधिनियम अंग्रेजों के समय पर लाया गया कानून था जिसके बाद आदिवासियों का काफी शोषण भी हुआ। लेकिन उसके साथ साथ वन क्षेत्र का संरक्षण एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा भी भारतीय वन अधिनियम के अंतर्गत सुनिश्चित हुई थी। श्री रावत ने बताया अंग्रेजों के कानून के कारण जंगली भूभाग में अपना जीवन यापन करने वाले और वन संपदा के आधार पर अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले लोगों के अधिकारों का हनन भी होने लगा क्योंकि वह शिक्षित नहीं होते थे और शिक्षा और जागरूकता के अभाव में नियम कानून उन्हें समझ में नहीं आता था जिसकी वजह से उनके ऊपर कई बार झूठे मामले भी दर्ज कर दिए जाते थे जिसके बोझ तले उनका जीवन बर्बाद हो जाता था। इसके बाद इस दिशा में सुधार हुआ और अब जब स्वतंत्र भारत में मानवाधिकार संरक्षण की बात होने लगी उस दिशा में वनाधिकार कानून लाए गए और उनको लागू कराने और इंप्लीमेंटेशन के द्वारा आदिवासियों और जंगलों में निवास करने वाले लोगों को उनके अधिकार दिलाए गए। ओम प्रकाश रावत ने बताया कि वनाधिकार कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें उस गांव और कबीले के लोगों के अधिकार और कानून वही कबीले और गांव के दो तिहाई लोग ही सुनिश्चित करते थे जो ग्राम सभा में विधिवत प्रस्तावित होकर सबडिवीजन और डिस्ट्रिक्ट लेवल पर कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत किए जाते थे। इन सबसे कम्युनिकेशन का स्तर बेहतर हुआ और जो अशिक्षित और ग्रामीण आदिवासी अपनी बात खड़ी हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले अफसरों के समक्ष नहीं रख पाते थे वह अब अपनी बातें अपने गांव टोले में ही रख कर अपने लिए नियम कायदा बनाते थे यह कानून ग्राम स्वराज का सबसे महत्वपूर्ण कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत ने वन अधिकार कानून और आरटीआई से जुड़े हुए कई मुद्दों पर प्रकाश डाला और बताया कि वास्तव में आरटीआई और पारदर्शिता का कानून एक महत्वपूर्ण कानून है जिसने आमजन को शक्ति प्रदान की है। श्री रावत ने कहा कि आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए यह आवश्यक है कि वह आदिवासियों के अधिकारों और वनाधिकार कानून से संबंधित वह समस्त अभिलेख और दस्तावेज निकलवाने में आरटीआई दायर करें जिससे यह समस्त जानकारी केंद्रीय स्तर पर जिला मुख्यालय अथवा राज्य सरकार के पोर्टल पर उपलब्ध हो सके जहां से इसे आसानी से प्राप्त किया जा सके। क्योंकि यदि पारदर्शिता बढ़ती है तो सभी को यह पता चलेगा कि कहां किस स्थान पर कितनी जमीन है और उसका अधिकार किसको प्राप्त है साथ में वन संपदा के विषय में भी जानकारी मिलेगी। आज सबसे बड़ी समस्या यही है कि यह सब जानकारी आमजन को साझा नहीं की जा रही है।

आदिवासियों के लिए 20 वर्ष तक कार्य किया और ब्यूरोक्रेसी से बहुत कम सहयोग प्राप्त हुआ – सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल

कार्यक्रम में अगले वक्ता के तौर पर सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल ने अपने अनुभव साझा किए और उन्होंने कहा कि हमने छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा आदि जगह पर आदिवासियों के बीच में 20 वर्ष से अधिक कार्य किया है और जमीन से जुड़े हुए मुद्दों को उच्च स्तर तक उठाया है। उन्होंने कहा ऐसे कई बार आया है जहां पर आदिवासियों के साथ सरकार और पूंजीपतियों ने काफी जुल्म किया और उनके अधिकारों का हनन किया जिसे उनके टीम के सदस्यों ने उच्चतम स्तर तक उठाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत जैसे अधिकारी बहुत कम मिले हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को प्रमोट किया हो। उन्होंने कहा कि अधिकतर ऐसे ब्यूरोक्रेट्स मिलते थे जो डेमोरलाइज करने का कार्य करते थे और हतोत्साहित करने के साथ-साथ झूठे मामलों में फंसाने और अनैतिक दबाव देने का प्रयास करते थे जिसकी वजह से उनके अभियान में काफी समस्या पैदा हो रही थी। उन्होंने कहा की इस बाबत कार्य करते समय उनके ऊपर कई बार हमले भी किए गए और सरकारी तंत्र द्वारा उन्हें नक्सल भी घोषित करने का प्रयास किया गया लेकिन वह अपने काम में रुके नहीं और अंत तक लगे रहे जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी प्राप्त हुई है।

 कार्यक्रम में पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया की वनाधिकार और आदिवासियों के अधिकार से संबंधित मामलों पर सूचना आयोग में पैरवी की और काफी जानकारियां पब्लिक डोमेन में साझा करवाने में मदद की है। सूचना आयुक्तों ने उपस्थित आरटीआई कार्यकर्ताओं को भी इस विषय पर कार्य करने के लिए प्रेरित किया। इस बीच उपस्थित पार्टिसिपेंट्स ने आरटीआई से संबंधित दर्जनों प्रश्न पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी से पूछे जिसका उन्होंने जवाब दिया।

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