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क्या मार्केटों में कपड़ों की गठान के वजन का निश्चित माप नही होना चाहिए ?

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सूरत : क्या मार्केटों में कपड़ों की गठान के वजन का निश्चित माप नही होना चाहिए ?

श्रमिक मजदुरी बढ़ाते है तो व्यापारी पार्सल का वजन बढ़ा देते है, मजदूर  80-90 किलो का पार्सल उठाने के लिए मजबूर अधिक वजन वाले पार्सल मजदूरों और ट्रांसपोर्टरों के लिए बड़ी समस्या बन गए हैं। पिछले 3-4 वर्ष़ों में कपड़ा मार्केटों में औसत पार्सल का वजन 50-55 से बढ़कर 90-95 किलोग्राम हो गया है जिससे पार्सल उठाना मजदूरों के लिए और अधिक शारीरिक समस्या बन गया है। यह एक प्रकार से श्रमिकों के साथ शारीरिक शोषण ही तो है।  

क्षमता से अधिक भार उठाना श्रमिक के स्वास्थ के लिए खतरा

यदि श्रमिक अपनी क्षमता से अधिक भार ढो रहा है तो भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का बड़ा खतरा होगा। मगर शायद कपड़ा कारोबारियों को अपने व्यापारी की वृद्धि में परोक्ष मदद करने वाले इस श्रमिक-कारीगर वर्ग की कोई चिंता नहीं होती। माना जाता है कि जैसे ही पार्सल की लेबर रेट बढ़ती है व्यापारी 20-30 साडिय़ां पार्सल में अतिरिक्त डाल देते हैं।

पार्सल का रेट बढते ही व्यापारी पार्सल का वजन बढ़ा देते हैं 

टेक्सटाईल मार्केटों में लेबर यूनियन के शान खान ने मीडिया को बताया कि वर्तमान में कपड़ा बाजार में प्रति पार्सल श्रम दर रु. 40 से 100-120 रु तक है। अधिक मजदुरी पार्सल को कड़ोदरा तक पहुंचाने के लिए है जिसमें ज्यादा मेहनत लगती है। हालांकि, हर मार्केट की अलग-अलग दरें हैं। जब प्रति पार्सल श्रम की दर 10-20 रुपये बढ़ जाती है, तो कपड़ा बाजार में व्यापारी पार्सल का वजन अधिक साडिय़ां जोड़कर बढ़ा देते हैं।

55-60 किलों के पार्सल आज 90-95 किलो वजनी हो गए

शान खान बताते हैं कि तीन-चार साल पहले साड़ी के एक पार्सल का वजन 55 से 60 किलो हुआ करता था। जैसे ही पार्सलों की श्रम दरें बढ़ीं, वर्तमान में पार्सलों का वजन बढ़कर 90-95 किलोग्राम पहुंच चुका है। हमारी मांग है कि पार्सलों के वजन को लेकर सरकार ने जो भी दिशा-निर्देश दिए हैं, उनका पालन किया जाए। फैक्ट्रीज एक्ट के अनुसार एक नियम है कि मजदूर अपनी क्षमता से अधिक सामान नहीं उठा सकते। 

अनाज की बैग का वजन कम हुआ मगर मार्केटों मे पार्सलों का वजन बढ़ता गया

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अनाज के 100 किलो के बैग को भी घटाकर 25-50 किलो कर दिया गया ताकि मजदूरों पर शारीरिक बोझ न बढ़े। जबकी कपड़ा मार्केटों में पार्सलों के वजन को लेकर कोई निती नियम या कानुन नहीं है। टेक्सटाईल मार्केटों में व्यापारी पार्सलों का वजन बढ़ाकर मजदूर की आय पर भी बड़ा तगडा झटका दे रहे है। वास्तव में व्यापारियों द्वारा लागत गिनने के प्रलोभन से मजदूर वर्ग के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। दो रुपये बचाने के लालच में मानवाधिकार कानूनों का भी उल्लंघन हो रहा है। 

मजदूरों द्वारा उठाए जाने वाले वजन के संबंध में कानून बहुत जरूरी 

फैक्ट्रीज एक्ट के अनुसार वजन को लेकर एक नियम है। लेकिन दुकानों और प्रतिष्ठानों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। गुमास्ताधारा के तहत भी इस मामले पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है। चूंकि मजदूर वर्ग असंगठित क्षेत्र में आता है, इसलिए यहां श्रम कानूनों को लेकर कोई नियम लागू नहीं होता है। वास्तव में, इस संबंध में कानून बनाने की तत्काल आवश्यकता है, ऐसा श्रम कानून के विशेषज्ञों का मानना है।

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