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सीआरझेड क्षेत्र 2019 अधिसूचना के तहत तैयार किए गए, तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना के ड्राफ्ट नक्शे लिए सार्वजनिक सुनवाई के संबंध में दर्शन नायक द्वारा सुझाव/सिफारिशें

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सूरत, भारत सरकार के कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन अधिसूचना 2019 के तहत गुजरात सरकार द्वारा ड्राफ्ट कोस्टल ज़ोन प्रबंधन योजना के कच्चे नक्शे तैयार किए गए हैं। इन मानचित्रों के आधार पर इन मानचित्रों के संबंध में सुझाव/अभ्यावेदन देने हेतु दिनांक 29/12/2023 को वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय सूरत में एक जन सुनवाई का आयोजन किया गया है। इस संबंध में गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्यालय ने समूह ग्राम पंचायत कापसी और कूवड़ को लिखित रूप में जानकारी दी है कि मानचित्रों के अनुसार सर्वे संख्या के साथ श्रेणियों का वर्गीकरण किया गया है। इस संबंध में दर्शन नायक ने निम्नलिखित सुझाव और प्रस्तुतियाँ हैं जिन पर विचार करने का अनुरोध किया गया है।

जीपीसीबी द्वारा दी गई जानकारी क्रमांक 2376 के अनुसार मोजे पिंजरत, ओलपाड, जिला सूरत में सर्वे नं. 1947 में, 50 मीटर का मैंग्रोव बफर जोन निर्दिष्ट किया गया था। जो सीआरझेड-1/ए श्रेणी में आता है। 2023 के ड्राफ्ट सीजेडएमपी मानचित्रों में बफर जोन नहीं दिखाया गया है। ड्राफ्ट मानचित्रों पर 50 मीटर मैंग्रोव बफर जोन का सीमांकन किया जाना चाहिए और नाम के साथ चिह्नित किया जाना चाहिए।

जीपीसीबी द्वारा दी गई जानकारी क्रमांक 2387 के अनुसार मोजे पिंजरत, ओलपाड में सर्वे नं. 1947 में सीआरझेड-1/ए श्रेणी बताई गई है। लेकिन, 2023 के ड्राफ्ट मानचित्रों में सीआरजेड-1/ए का सीमांकन नहीं किया गया है। साथ ही सर्वे नं. 1947 सीआरजेड-1/ए श्रेणी को मानचित्रों पर हरे रंग में नहीं दिखाया गया है। और यह सर्वे नं. 1947 को ड्राफ्ट नक्शों में सीआरझेड-1बी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अतः ड्राफ्ट नक्शों में यह सर्वे नं. 1947 हरे रंग से सीमांकित किया जाए और सीआरजेड-1/ए श्रेणी के रूप में चिह्नित किया जाए और हरे रंग में दिखाया जाए यह हमारी मांग है ।

जीपीसीबी द्वारा दी गई जानकारी क्रमांक 2402 मोजे के अनुसार पिंजरत, ओलपाड में सर्वे नं. 1854 एक ज्वार भाठा का क्षेत्र है। और सक्रिय मडफ्लैट क्षेत्र भी इसी क्षेत्र में स्थित हैं। वहाँ मैंग्रोव भी हैं। और इस क्षेत्र के गरीब पगडिया मछुआरे केकड़े पकड़कर अपनी आजीविका कमाते हैं। इसलिए इस क्षेत्र की पारिस्थिति की बहुत अच्छी है। और बड़ी संख्या में आसपास के साथ-साथ गांव के गरीब-गुरबे लोग मछली पकड़ने आते हैं। इस प्रकार, सर्व नं. 1854 और उसके आसपास के क्षेत्र को गंभीर रूप से कमजोर तटीय क्षेत्र (सीवीसीए) के रूप में वर्गीकृत किया जाए और सीआरजेड-1बी श्रेणी से सीआरजेड-1/ए श्रेणी में स्थानांतरित किया जाए। साथ ही ड्राफ्ट नक्शों के अनुसार सर्वे नं. 1854 ज्वार रेखा से बिल्कुल सटा हुआ है। तो यह सर्वे नं. 1854 को सीआरजेड-1/ए श्रेणी में नहीं रखा गया तो भविष्य में किसी भी प्रकार का निर्माण होने पर अड़चन जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। और मानसून के मौसम में गांवों में बाढ़ आने की काफी संभावना रहती है। तो सर्वे नं. 1854 को सीआरजेड-1/ए श्रेणी के रूप में सीमांकित नाम और प्रतीकों सहित किया जाना चाहिए।

गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार मोजे: पिंजरात, ओलपाड, में सर्वे नं. 1854 में, पूरे क्रीक (खाडी) नेटवर्क की खोज की गई थी। जिसे गूगल अर्थ से आसानी से देखा जा सकता है। जो ड्राफ्ट मानचित्रों पर ऊपर नहीं दिखाए गए हैं। हमारी मांग है कि क्रीक नेटवर्क को मानचित्रों पर दिखाया जाए। ऊपर दिए गए मानचित्रों पर दिखाया गया क्रीक नेटवर्क बहुत छोटा दिखाता है। हमारी मांग है कि सटीक क्रीक नेटवर्क आगे भी दिखाया जाए।’ गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दी गई जानकारी क्रमांक 2511 मोजे के अनुसार पिंजरत, ओलपाड, में सर्वे नं. 1952 को नो-डेवलपमेंट जोन घोषित किया गया है। ड्राफ्ट मानचित्रों में नो-डेवलपमेंट जोन को पीले रंग में दिखाया गया है। लेकिन ड्राफ्ट नक्शों में कहीं भी सर्वे नं. 1952 को नो-डेवलपमेंट जोन के रूप में सीमांकित नहीं किया गया है। और पीले रंग में नहीं दिखाया गया है। तो सर्वे नं. 1952 को नो-डेवलपमेंट जोन (एनडीजेड) के रूप में चिह्नित किया जाएगा।

कई गांवों में नो-डेवलपमेंट जोन (एनडीजेड) को हटा दिया गया है, जिसका सीधा मतलब यह होगा कि क्षेत्र में विकास गतिविधियां होंगी, निर्माण होगा तो निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बना रहेगा। पुराने नक्शों के अनुसार एनडीजेड को उसी स्थिति में रखा जाए और मानचित्र पर पीले रंग में दिखाया जाए। यदि इन नो-डेवलपमेंट ज़ोन में सर्वे संख्या और क्षेत्रों को एनडीजेड में फिर से शामिल नहीं किया जाता है, तो इन क्षेत्रों में विकास कार्य होंगे और कंपनियों या कारखानों को विकसित किया जा सकता है तो समुद्री प्रदूषण बढ़ने की पूरी संभावना है। सूरत जिले के कई क्षेत्रों में मैंग्रोव पेचीस और मैंग्रोव बफर जोन मानचित्रों पर व्यवस्थित रूप से सीमांकित नहीं हैं। उसे भी सीमांकित किया गया है ताकि मैंग्रोव को संरक्षित किया जा सके।
सूरत जिले के कई गाँवों में खाड़ियाँगाँव तक जाती हैं और कई बड़ी खाड़ियाँ हैं जिन्हें नए ड्राफ्ट मानचित्रों पर ठीक से नहीं दिखाया गया है । और कई खाड़ियों को अवैध दबाव से पाट दिया गया है ताकि इन खाड़ियों को पुनर्जीवित करने के लिए मानचित्रों पर दिखाया जा सके।

वर्ष 2006 में भारी बारिश के कारण तापी नदी में बाढ़ आई थी। इस बाढ़ के कारणों का पता लगाने के लिए उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश सुज्ञाबेन भट्ट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। समिति ने तापी नदी के जिस क्षेत्र में तटबंध का निर्माण नहीं हुआ है, वहां से 500 मीटर की दूरी पर निर्माण की अनुमति न देने के लिए शासन को रिपोर्ट दी गई थी, जिस पर अमल अभी चल रहा है। इसे बरकरार रखा जाए और उसका पालन हो। सूरत जिले के हजीरा शहर के डभारी, दांडी, सुवाली, राजगरी, आभवा, डुमस, बुडिया, गभेनी, खजोद, दीपली सहित तटीय गांवों में समुद्री ज्वार का पानी दिन-ब-दिन अपनी सीमा बढ़ाता जा रहा है और अधिक से अधिक गांव की ओर आ रहा है। तो वर्तमान में सीआरजेड क्षेत्र को बढ़ाया जाना चाहिए। सीआरजेड-2019 की वर्तमान अधिसूचना के तहत तैयार किए गए ड्राफ्ट मानचित्र को देखने पर पता चलादा है की सीआरझेड का स्थान कम किया गया है।

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