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अपीलकर्ता और पीआईओ के बीच फिक्सिंग का मामला किया था उजागर – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

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वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी को समर्पित RTI पर 19 वें वेबीनार का हुआ आयोजन, पत्रकारिता में RTI का प्रयोग कैसे बढ़े और क्या प्रयोग हुए विषय पर आयोजित हुआ वेबीनार, सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में हुआ 19 वां आयोजन

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 को जन-जन तक पहुचाने के उद्देश से मध्य प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के संयोजन में आरटीआई और पत्रकारिता विषय पर 1 नवंबर 2020 दिन रविवार को सुबह 11:00 बजे से दोपहर लगभग 2:30 बजे तक 19 वें जूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन किया गया। इस जूम वेबीनार में विशिष्ट अतिथि के तौर पर इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के वरिष्ठ संपादक श्यामलाल यादव, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश सूचना आयुक्त आत्मदीप, माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु, वरिष्ठ स्तंभकार एवं पत्रकारिता जगत से जुड़े हुए जयराम शुक्ला, पत्रिका समूह के वरिष्ठ संपादक राजेंद्र गहरवार सहित अन्य पत्रकार, अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई कार्यकर्ता और जन सामान्य ने भाग लिया।

अपीलकर्ता और पीआईओ के बीच फिक्सिंग का मामला किया था उजागर – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

कार्यक्रम का संयोजन, प्रबंधन एवं विस्तार एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, अंबुज पांडे, पतृका से मृगेंद्र सिंह आदि के सहयोग से हुआ।

पहले की भांति 19 वें जूम मीटिंग वेबीनार में देश के विभिन्न कोनों से कार्यकर्तागण सम्मिलित हुए जिसमें उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटका, महाराष्ट्र आदि सम्मिलित हैं। 19 वें वेबीनार में ऑस्ट्रेलिया से प्रबोध बाली भी सम्मिलित हुए।

पहली बार देश ने जाना आरटीआई कानून कितना ताकतवर है – जयराम शुक्ला

अपना अनुभव साझा करते हुए वरिष्ठ स्तंभकार एवं पत्रकारिता जगत से जुड़े हुए चर्चित लेखक जयराम शुक्ला ने बताया कि आरटीआई एक बहुत ही सशक्त हथियार है इसका सदुपयोग कर पत्रकारिता जगत में क्रांति लाई जा सकती है। आरटीआई एक्टिविस्ट के विषय में चर्चा करते हुए श्री शुक्ला ने कहा की एक्टिविस्टों ने पत्रकारिता को पीछे छोड़ दिया है और आरटीआई अब एक्टिविस्टों के पीछे चलने लगी है। आजादी के बाद यदि कोई क्रांति आई है वह आरटीआई क्रांति है। श्री शुक्ला ने कहा जब मैं वकील था तब आरटीआई कानून आया और आते ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया और व्यापक भ्रष्टाचार उजागर होने लगी जिसके तारतम्य में अरविंद केजरीवाल ने इसका काफी उपयोग कर आज दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। सरकारों को लगने लगा कि आरटीआई के रूप में यह क्या बला आ गई है। सूचना का अधिकार वह माइक्रोस्कोप है जो हमारे अंदर क्या चल रहा है उसकी जानकारी देता है। शुक्ला ने बताया की सूचना आयुक्त का दर्जा एक चीफ सेक्रेटरी के समतुल्य होता है लेकिन जहां चीफ सेक्रेटरी को गाड़ी बंगला और सभी सुविधाएं मिली होती है वही सूचना आयुक्तों के पास कोई भी सुविधा नहीं होती है जो काफी चिंता का विषय है। वरिष्ठ स्तंभकार ने आगे कहा कि अक्सर यह देखा जा रहा है कि आजकल एक्टिविस्टों ने आरटीआई की दुकान खोल रखी है जिसमें हजारों हजार आरटीआई लगाते हैं लेकिन इससे आम जनता तक आरटीआई कानून नहीं पहुंच पा रहा है। इसलिए पत्रकारिता और आरटीआई दोनों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है और यह कानून आम जनता तक पहुंचाया जाए जिससे राम राज्य आ सकता है। बीते समय में आरटीआई कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर काफी हमले हुए हैं और अच्छे अधिकारियों के तबादले किए गए हैं जो काफी चिंता का विषय है और सरकार को इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है।

19 वें ज़ूम वेबीनार वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय प्रभास जोशी के 5 नवंबर जन्मदिन पर समर्पित – आत्मदीप

आरटीआई कानून से जुड़े प्रसंगों की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए मध्य प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि आरटीआई कानून के पहले जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी, निखिल भट्टाचार्य, निखिल डे, अरुणा राय आदि ने नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफार्मेशन एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन के द्वारा काफी प्रयास किए गए जिसके बाद वर्तमान आरटीआई कानून अपने स्वरूप में आया है। प्रभाष जोशी को एक महान पत्रकार और संपादक के रूप में याद करते हुए श्री आत्मदीप ने कहा कि उनका योगदान पत्रकारिता और आरटीआई कानून दोनों को लाने में काफी महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय है। इसलिए अगले 5 नवंबर को उनके जन्म दिवस के अवसर पर हमारा यह 19 वां राष्ट्रीय जूम मीटिंग वेबीनार उन्हीं को समर्पित किया जाता है।

आरटीआई के प्रति वर्तमान मीडिया का रवैया काफी दुर्भाग्यपूर्ण – आत्मदीप

आरटीआई कानून से जुड़ी हुई खबरों को प्रकाशित करने और आरटीआई कानून के प्रति जन जागरूकता फैलाने के अभाव को लेकर पूर्व सूचना आयुक्त ने मीडिया को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि आज मीडिया का रवैया काफी दुर्भाग्यपूर्ण है और टीआरपी के चक्कर में मीडिया आरटीआई कानून को भूलता जा रहा है जो कि न केवल आम जनता के लिए और एक्टिविस्ट के लिए एक जबरदस्त हथियार है जिसमें भ्रष्टाचार को उजागर कर आम जनता को किस प्रकार से शक्तिशाली बनाया जा सकता है इसमें राज छुपा हुआ है बल्कि आरटीआई कानून का प्रयोग कर जानकारी निकाल कर मीडिया के क्षेत्र में और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति लाई जा सकती है। लेकिन आज मीडिया आरटीआई से जुड़े हुए समाचार, सूचना आयुक्तों के निर्णय और इन खबरों को कोई विशेष प्राथमिकता नहीं देता है जिसके कारण कानून के प्रति समाज का रवैया भी काफी निराशाजनक होता जा रहा है।

अपने कार्यकाल में पत्रकारों के लिए आरटीआई पर वर्कशॉप किया – आत्मदीप

मध्य प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त ने अपने कार्यकाल को याद करते हुए कहा कि उन्होंने मीडिया जगत में आरटीआई कानून के प्रति अधिक जागरूकता कैसे बढ़े इस बात को लेकर वर्कशॉप का आयोजन किया। आत्मदीप ने बताया कि वह भोपाल और जयपुर में लगभग 35 वर्ष से अधिक समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं और ऐसे पत्रकार भी उन्हें मिले हैं जिनको यह भी जानकारी नहीं रहती थी कि सूचना आयुक्त कैसे बनते हैं और उनकी क्या शक्तियां होती हैं। श्री आत्मदीप ने कहा कि यदि मीडिया आरटीआई से जुड़ी हुई खबरें छापे तो निश्चित तौर पर सरकार पर दबाव बनेगा। अमूमन यदि आयोग ने किसी को फाइन लगा दिया तो यह जानकारी मात्रा आयोग, लोक सूचना अधिकारी और उस अपीलकर्ता तक ही सीमित रहती है लेकिन यदि यही खबर छप जाती है तो पूरे समाज में पता चलता है जिससे अन्य अधिकारी जब उस समाचार को देखते हैं तो उनमें आरटीआई के प्रति खौफ पैदा होता है जिससे काफी हद तक सुधार हो जाता है।

अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण भी भारत में आया आरटीआई कानून – आत्मदीप

इस बीच पूर्व सूचना आयुक्त ने बताया कि यद्यपि भारत में इस कानून को वर्तमान स्थिति में लाने के लिए कई कार्यकर्ताओं का अभूतपूर्व योगदान रहा है लेकिन इसके अतिरिक्त भी अंतरराष्ट्रीय दबाव भी काफी महत्वपूर्ण रहा है। विश्व बैंक एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा भारत को दिए जाने वाली सहायता के तौर पर उस राशि का किस प्रकार उपयोग किया जा रहा है इस विषय में पारदर्शिता लाने के लिए विदेशी संस्थाओं ने भारत पर दबाव बनाया कि यह सब जानकारी साझा की जाए कि उस फंडिंग का किस प्रकार से और कैसे कहां उपयोग हो रहा है जिसके दबाव में आकर भी भारत ने आरटीआई कानून प्रस्तावित किया।

आरटीआई पर हर स्कूल में एक करिकुलम होना आवश्यक – सूचना आयूक्त राहुल सिंह

इस बीच मध्य प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्त एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष राहुल सिंह ने बताया कि सूचना के अधिकार को और भी अधिक सशक्त बनाने के लिए और जन जन तक पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि हर स्कूल में टेक्स्ट बुक में सूचना के अधिकार कानून को लेकर एक करिकुलम होना चाहिए जिससे निकलने वाले बच्चों को कानून के बारे में पहले से ही ज्ञान हो। इस विषय में सरकारों को ध्यान देकर काम करने की आवश्यकता है जिससे कानून की मंशा के अनुरूप आरटीआई अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर पाए।

10 हज़ार से अधिक आरटीआई लगाकर कई भ्रष्टाचार का किया खुलासा – वरिष्ठ संपादक श्यामलाल यादव

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुए दैनिक इंडियन एक्सप्रेस इंग्लिश न्यूज़ पेपर के वरिष्ठ संपादक श्यामलाल यादव ने बताया कि उन्होंने अब तक के अपने जीवन काल में 10 हज़ार से अधिक आरटीआई आवेदन लगाकर विभिन्न विभागों, प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय मंत्रालय, राष्ट्रपति भवन, और देश की बड़ी बैंकिंग संस्थाओं, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग आदि से जानकारियां प्राप्त की है जिनमें व्यापक स्तर पर छुपी हुई जानकारी सामने आई है जिससे पारदर्शिता लाने में और सरकार पर दबाव बनाने में काफी मदद मिली है। पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से अपनी बात समझाते हुए श्री यादव ने बताया कि उन्होंने पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स में आरटीआई लगाकर पीएम केयर्स फंड के विषय में जानकारी प्राप्त की जिसमें पता चला कि उनके द्वारा कई सौ करोड़ की राशि उस फंड में दान की गई है। इसी विषय पर श्री यादव ने बताया कि रेलवे विभाग में आरटीआई लगाकर पता चला था कि 146 करोड रुपए की राशि रेलवे कर्मचारियों की सैलरी से निकालकर पीएम केयर्स फंड में दी गई थी। इसी विषय पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के भी कर्मचारियों की लगभग 409 करोड रुपए की सैलरी काटकर पीएम केयर्स फंड में दिए जाने का मामला प्रकाश में आया है।

श्यामलाल यादव ने बताया यह सब कार्य काफी मेहनत वाला था लेकिन सैकड़ों आरटीआई लगाकर यह जानकारियां सामने आ पाई है।

पीएम मोदी विदेश यात्रा पर प्रमुख रूप से तीन फंडों पर डोनेट करने का आग्रह किए – श्यामलाल यादव

अपनी बात रखते हुए और विचार व्यक्त करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ संपादक ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जब भी विदेश यात्रा पर जाते थे तब वह एन आर आई और विदेश में रहने वाले भारतीयों से मुख्य रूप से तीन फंडों में राशि दान करने की बात कहते थे और वह क्लीन गंगा फंड,स्वच्छ भारत फंड, एवं भारत के वीर फंड सम्मिलित है। लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि जितनी राशि पीएम केयर्स फंड में ट्रांसफर की गई है उसका यदि देखा जाए तो दशमलव कुछ प्रतिशत भी राशि इन तीनों खंडों में मिलाकर डोनेट नहीं की गई है। देश प्रेम की बात जब आती है तो सवाल यह उठता है कि भारत के वीर जैसे फंड में कितनी राशि ट्रांसफर की गई तो यह बात सामने आई कि कुल मिलाकर 5 लाख एनआरएआई ही भारत के वीर फण्ड में ट्रांसफर किये हुए हैं। इसी प्रकार क्लीन गंगा मिशन में भी विदेश से मात्र 2 प्रतिशत राशि ट्रांसफर की गई जबकि 86 प्रतिशत भारत के गवर्नमेंट बॉडी और अन्य लोगों के द्वारा ट्रांसफर की गई।

रिसर्च आर्टिकल छापने की दुकानें खुली है – श्यामलाल यादव

भारत के कुछ जर्नल्स की बात करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ संपादक ने कहा कि आरटीआई के माध्यम से ही यह भी खुलासा हुआ कि भारत में किस प्रकार गुणवत्ताविहीन और कॉपी पेस्ट कर आर्टिकल छपवाने की परंपरा चल रही है जिससे न केवल रिसर्च की गुणवत्ता गिर रही है बल्कि समाज में इसका एक गलत संदेश भी जा रहा है। इसी विषय पर एक जर्नल्स की बात सामने रखते हुए श्यामलाल यादव ने बताया कि यह भी खुलासा हुआ था जिसे इंडियन एक्सप्रेस में काफी प्रमुखता से छापा गया था और फिर सरकार ने इस विषय पर कदम भी उठाए थे।

अरविंद केजरीवाल को उन पार्टियों ने सपोर्ट किया जो आरटीआई कानून को कमजोर करना चाहती थी – श्यामलाल यादव

आरटीआई कानून के उपयोग को लेकर निश्चित तौर पर दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अच्छा खासा नाम कमाया था और आरटीआई ही एक ऐसा कानून था जिसके बाद पूरा देश अरविंद केजरीवाल को जानने लगा और निश्चित तौर पर उसका फायदा उठाकर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और आज दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए हैं। लेकिन जब सवाल यह आता है कि स्वयं मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने आरटीआई कानून को मजबूत बनाने के लिए क्या कुछ किया तो इस पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है। बताया गया कि अरविंद केजरीवाल को जिन राजनीतिक दलों ने सपोर्ट किया वह स्वयं ही नहीं चाहते थे कि आरटीआई कानून मजबूत बने और इस कानून से उन पार्टियों के काले कारनामे और करप्शन बाहर आ सके।

कोल ब्लॉक पर आरटीआई से हुआ था बड़ा खुलासा – राजेंद्र गहरवार

अपने पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुभव साझा करते हुए पत्रिका समूह के वरिष्ठ संपादक राजेंद्र सिंह गहरवार ने बताया कि आरटीआई कानून एक बहुत सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाई जा सकती है लेकिन इसके सही उपयोग की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि अखबार में स्टूडेंट थीसिस की समाचार छापने के लिए भेजते थे लेकिन कभी कोई थीसिस नहीं भेजा कि आखिर थीसिस में लिखा क्या है। सूचना आयुक्त राहुल सिंह के काम की सराहना करते हुए राजेंद्र गहरवार ने बताया कि एक 10 रुपये की आरटीआई में किस प्रकार रातों-रात पीएचई विभाग ने स्वतंत्रता के 72 साल बाद दो नलकूप कर दिए थे जो उन गरीबों के लिए अपने आपने बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। पूर्व सूचना आयुक्त शैलेश गांधी एवं आत्मदीप को धन्यवाद देते हुए उनके कार्यों की सराहना की। श्री गहरवार ने भी कहा कि आरटीआई लगाते समय मूल बातों का ध्यान रखना चाहिए और वृहद स्वरूप में जानकारी नहीं माननी चाहिए। कंक्रीट और स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। श्री गहरवार ने कहा की आरटीआई कानून के पहले हर कोई सांसद और विधायक का मुंह ताकता था कि उन के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा में प्रश्न लगाकर जानकारी मिलेगी और उसे छापा जाएगा लेकिन आज एक आम व्यक्ति किस प्रकार 10 रु की आरटीआई में जानकारी प्राप्त कर लेता है और फिर उसे मीडिया में छापा जाता है। आरटीआई को जनहित के तौर पर उपयोग करने पर बल देते हुए पत्रिका समूह के वरिष्ठ संपादक ने कहा की मीडिया में आरटीआई की खबर को प्रमुखता से छापा जाना चाहिए जिससे आरटीआई के प्रति जन जागरण फैले और देश में पारदर्शिता लाने में मदद मिल सके।

सूचना आयोग 45 दिन के भीतर अपीलीय प्रकरण का करे निपटारा – शैलेश गांधी

आरटीआई किस प्रकार से आम नागरिक की पहुंच से दूर है इस पर जोर देते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि आज आरटीआई कानून कुछ विशेष लोगों के लिए ही सीमित रह गया है जबकि इस कानून की मंशा यह थी कि किस प्रकार से समाज के अंतिम छोर में बैठे हुए व्यक्ति को पारदर्शिता और योजना का लाभ मिल पाए और उसे सशक्त बनाया जाए। लेकिन आयोग के द्वारा द्वितीय अपीलीय प्रकरणों के समय पर निपटान न किए जाने के चलते आम व्यक्ति के लिए आरटीआई कानून एक टेढ़ी खीर बन कर रह गया है और मात्र कुछ एक्टिविस्टों तक ही सीमित रह गया है जो काफी दुखद है और लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए कर्नाटका और कोलकाता हाईकोर्ट के निर्णय को ध्यान में रखते हुए सभी सूचना आयोगों को अपीलीय प्रकरणों का निपटारा समय सीमा में और 45 दिन के भीतर किया जाना चाहिए।

कई बार सूचना आयोग अपीलीय प्रकरणों के निपटारे को लेकर आउट ऑफ टर्न जाकर मामलों का निपटान कर रहे हैं जिससे पुराने अपीलीय प्रकरण पेंडिंग पड़े रहते हैं लेकिन यह प्रथा अच्छी नहीं है और सभी क्रम से ही चलना चाहिए।

प्रकरण के महत्व को देखते हुए होती है सुनवाई – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

शैलेश गांधी के प्रश्न का उत्तर देते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि जहां तक सवाल मध्य प्रदेश सूचना आयोग में उनके द्वारा की जाने वाली सुनवाइयों का है तो उसमें स्पष्ट तौर पर कहना चाहेंगे कि हमारा उद्देश्य यह है कि सबसे पहले 2016 और 2017 के प्रकरणों का निपटारा किया जाए और उसी के तारतम्य में आगे के प्रकरणों को भी निपटान किया जाए। पर कभी-कभी कई प्रकरण ऐसे सामने आते हैं इसमे अपीलार्थी द्वारा मांग की जाती है कि उनके प्रकरणों की आवश्यकता अनुरूप जल्दी सुनवाई हो। अतः उन प्रकरणों को भी ध्यान में देना पड़ता है। साथ में कुछ प्रकरण ऐसे होते हैं जो भले ही अभी हाल ही के हों लेकिन व्यापक जनहित के जुड़े होते हैं इसलिए ऐसे मुद्दों को लेकर जल्दी कार्यवाही की जाती है।

मध्य प्रदेश सूचना आयोग में इस समय वालंटियर इंटर्नशिप के माध्यम से अपनी सेवा दे रहे हैं जिससे प्रकरणों का बहुत जल्दी निपटारा हो रहा है और सभी प्रकरणों को फेसबुक लाइव के माध्यम से सुनवाई की जा रही है।

धारा 4 के तहत अधिक से अधिक जानकारी हो सार्वजनिक – भास्कर प्रभु

आरटीआई एक्टिविस्ट कौन है और उनके समाज में क्या रोल है 19 वें आरटीआई और पत्रकारिता विषय पर ज़ूम मीटिंग वेबीनार में प्रमुख रूप से चर्चा का बिंदु रहा। इस विषय में उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों ने अपने अपने मंतव्य और विचार रखें। किसी ने आरटीआई एक्टिविस्ट को ब्लैक मेलिंग करने के लिए बताया तो किसी ने समाज का सुधारक बताया तो किसी ने आरटीआई क्रांति लाने में सहयोगी बताया। इसी विषय पर माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु ने कहा कि यदि कोई जानकारी आयोग और सरकार आरटीआई की धारा 4 के तहत सार्वजनिक करती है और वेब पोर्टल में साझा की जाती है तो किसी भी व्यक्ति को कम से कम आरटीआई लगाने की आवश्यकता पड़ेगी। इस प्रकार स्वाभाविक तौर पर आरटीआई एक्टिविस्ट की संख्या कम हो जाएगी लेकिन क्योंकि आयोग और सरकार ही जानकारी साझा नहीं करवाती है इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा आरटीआई लगाना पड़ता है और इससे विभिन्न प्रकार की बातें सामने आती हैं।

आरटीआई को मजबूत बनाने पत्रकारों का काम महत्वपूर्ण – भास्कर प्रभु

आरटीआई और पत्रकारिता को लेकर भास्कर प्रभु ने कहा कि पत्रकारों का कार्य काफी महत्वपूर्ण है और आरटीआई से संबंधित समाचारों को मीडिया जगत में प्रमुखता से छापा जाना चाहिए जिससे लोग आरटीआई कानून के बारे में ज्यादा जागरूक हों। पत्रकारों को भी यह चाहिए कि सरकार और आयोग पर अपने प्रकाशन के माध्यम से दबाव बनाएं और यह खबर बार-बार प्रकाशित करें कि सरकार और सूचना आयोग ज्यादा से ज्यादा जानकारी आरटीआई की धारा 4 के तहत सार्वजनिक करें जिससे आम जनता को कम से कम आरटीआई लगाना पड़े।

मात्र ज्यादा आरटीआई आवेदन लगाने से आरटीआई एक्टिविस्ट नहीं बनते – भास्कर प्रभु

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो 10 या 20 हज़ार या और अधिक आरटीआई लगाते हैं और अपने आप को आरटीआई कार्यकर्ता कहते हैं लेकिन कोई भी एक्टिविस्ट ऐसे नहीं बनता है क्योंकि कार्यालय में रहकर पेपर लिख देने से और आरटीआई लगाने से कोई आरटीआई एक्टिविस्ट नहीं बनता है। इसके लिए जनता के बीच में जाकर आरटीआई कानून के प्रति जागरूकता फैलाना, जन को इस आंदोलन में सम्मिलित करना, यह सब आरटीआई एक्टिविस्ट के लक्षण और गुण होते हैं इसलिए हर किसी को आरटीआई एक्टिविस्ट कहना उचित नहीं होगा।

सभी सूचना आयोग राहुल सिंह की तरह लाइव स्ट्रीमिंग कर करें सुनवाई – भास्कर प्रभु

मध्य प्रदेश के वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के कार्य की प्रशंसा करते हुए माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु ने बताया कि राहुल सिंह के द्वारा फेसबुक लाइव और अन्य माध्यमों से लाइव स्ट्रीमिंग की जा रही है और सुनवाईयों को ऑनलाइन किया जा रहा है जो आरटीआई कानून और साथ में लोकतंत्र दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। श्री प्रभु ने कहा कि उन्होंने इस विषय में लगभग 20 सूचना आयोग को पत्र लिखकर राहुल सिंह की ही तरह लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से सुनवाईयों को सार्वजनिक करने और लाइव करने के लिए लिखा है लेकिन इस विषय पर उन सूचना आयोगों के जवाब काफी निराशाजनक आए हैं जो यह बात सिद्ध करते हैं कि सभी सूचना आयोग आरटीआई कानून को मजबूत बनाने और साथ में लाइव स्ट्रीमिंग करने के पक्ष में नहीं है जो काफी चिंता का विषय है और लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।

अपीलकर्ता और पीआईओ के बीच फिक्सिंग का मामला किया था उजागर – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप के द्वारा ध्यानाकर्षण करवाते हुए वर्तमान सूचना आयुक्त राहुल सिंह की तरफ इशारा किया गया और उनके द्वारा अभी हाल ही में एक फिक्सिंग मामले में दिए गए निर्णय के विषय में बोलने के लिए कहा गया। इस पर सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि अभी हाल ही में उन्होंने अपने एक निर्णय में एक अपीलकर्ता एवं साथ में लोक सूचना अधिकारी के बीच फिक्सिंग का मामला उजागर किया था जिसमें पहले तो अपीलकर्ता के द्वारा कहा गया कि उन्हें जानकारी प्राप्त नहीं हुई है पर पुनः 1 सप्ताह के बाद हलफनामा देकर बताया गया कि वह जानकारी से संतुष्ट हैं और लोक सूचना अधिकारी के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं चाहते हैं। इस बात पर एक्शन लेते हुए राहुल सिंह ने जब पूरे मामले को समझा तो यह बात सामने आई कि अपीलकर्ता और पीआईओ के बीच फिक्सिंग हो गई थी जिसमें लोक सूचना अधिकारी को अपीलकर्ता के द्वारा हलफनामा देकर बरी कर दिया गया था जिस पर आयोग ने आपत्ति दर्ज की और कहा कि आयोग के पास धारा 20 की शक्तियां होती हैं जिसके तहत एक बार दोषी पाए जाने पर लोक सूचना अधिकारी के ऊपर कार्यवाही निश्चित होती है। अतः दंड से नहीं बचा जा सकता। इसी के साथ राहुल सिंह ने यह भी आदेशित किया कि वह अपीलकर्ता भविष्य में किसी भी मामले को जब तक 100 रू के स्टांप पेपर में लिखकर नहीं देगा तो उसकी अपील स्वीकार नहीं की जाएगी। जिससे निश्चित तौर पर सूचना के अधिकार कानून को काफी बल मिला है और इस प्रकार आरटीआई कानून का गलत दुरुपयोग करने वाले लोग भी सचेत होंगे।

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