Home उत्तर प्रदेश गुरु का भरोसा…गोल्ड मेडल की फोटो निकाली और लिख दिया अवनि 

गुरु का भरोसा…गोल्ड मेडल की फोटो निकाली और लिख दिया अवनि 

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सार

पैरालंपिक में निशानेबाजी में गोल्ड मेडल जीतने वाली अवनि के कोच चंद्रशेखर ने बताई उनकी खूबियां
 

अवनि लेखरा को निशानेबाजी का प्रशिक्षण देते बदायूं के मूल निवासी कोच चंद्रशेखर। संवाद
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, बरेली

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मूलत: बदायूं के दातागंज के रहने वाले चंद्रशेखर 
बोले- नई तकनीक को सीखने में बेजोड़ है अवनि

बदायूं। निशानेबाज अवनि लेखरा ने पैरालंपिक में स्वर्ण जीतने से पहले अपने गुरु का भरोसा जीता। उनके कोच चंद्रशेखर कहते हैं कि उन्हें अपनी शिष्या पर यकीन था। तभी वह जब एयरपोर्ट से उसे विदा करके लौटे तो नेट से पैरालंपिक के गोल्ड मेडल की फोटो निकाली और उस पर अवनि का नाम लिखकर उनके पिता को भेज दिया। उन्होंने बताया कि नई तकनीक को सीखने में अवनि का कोई जवाब नहीं। 
अवनि को चार साल में गढ़कर विश्व की सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज बनाने वाले चंद्रशेखर मूलत: बदायूं के ही रहने वाले हैं। अब वह जयपुर में रहते हैं और वहां के एसएमएस स्टेडियम में निशानेबाजी के कोच हैं। मंगलवार को अमर उजाला से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने अवनि के हौसले की दाद दी। बताया कि वर्ष 2016 से वह अवनि को लगातार प्रशिक्षण दे रहे हैं। शासन से उन्हीं का नाम बतौर कोच टोक्यो जाने के लिए चयनित हुआ था। पर स्वास्थ्य कारणों से वह नहीं जा सके। तब सूमा शिरूर को उसके कोच के रूप में भेजा गया।
चंद्रशेखर के मुताबिक अवनि को सिखाने के साल भर में उन्होंने उसकी इच्छाशक्ति और क्षमता भांप ली। इसके बाद तीन साल से वह केवल उसी पर मेहनत कर रहे थे। उन्होंने किसी नए खिलाड़ी को अपने प्रशिक्षण के लिए पंजीकृत ही नहीं किया। दिन-रात मेहनत में उन्होंने पाया कि अवनि की निशानेबाजी तकनीक पर मजबूत पकड़ और बेहतर समझ है। नए प्रयोग करने में हिचकिचाती नहीं। उन्होंने उसके पिता से कह दिया था कि बेटी का गोल्ड पक्का है। 

दुर्घटना में दिव्यांगता की शिकार हुई थी अवनि

कोच चंद्रशेखर बताते हैं कि अवनि का परिवार 2012 में एक हादसे का शिकार हुआ था। तब वह महज 11 साल की था। हादसे में परिवार के दूसरे लोगों को भी चोटें आईं पर अवनि के शरीर का धड़ से नीचे का हिस्सा बेकार हो गया। बावजूद इसके उसने हिम्मत नहीं हारी और आज नतीजा सामने है। 

कोच चंद्रशेखर का बदायूं से नाता

चंद्रशेखर ने बताया कि वह मूल रूप से दातागंज क्षेत्र के गांव अंधरऊ के निवासी हैं। वहां उनकी करीब छह बीघा जमीन अब भी है। उनकी प्राथमिक शिक्षा बदायूं के मीराजी चौकी स्थित शिशु मंदिर में हुई थी जबकि आगे की पढ़ाई हरमिलाप सनातन धर्म स्कूल से की। डिग्री कॉलेज में एडमिशन के लिए वह बुआ के पास राजस्थान चले गए तो वहीं बस गए। पिता महेंद्र कुमार ने वर्ष 1974 में दातागंज से एमएलए का चुनाव लड़ा था। वह लोकतंत्र रक्षा सेनानी भी रहे हैं। उनके दादा धर्मपाल विद्या अलंकार गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापकों में थे। 

विस्तार

मूलत: बदायूं के दातागंज के रहने वाले चंद्रशेखर 

बोले- नई तकनीक को सीखने में बेजोड़ है अवनि

बदायूं। निशानेबाज अवनि लेखरा ने पैरालंपिक में स्वर्ण जीतने से पहले अपने गुरु का भरोसा जीता। उनके कोच चंद्रशेखर कहते हैं कि उन्हें अपनी शिष्या पर यकीन था। तभी वह जब एयरपोर्ट से उसे विदा करके लौटे तो नेट से पैरालंपिक के गोल्ड मेडल की फोटो निकाली और उस पर अवनि का नाम लिखकर उनके पिता को भेज दिया। उन्होंने बताया कि नई तकनीक को सीखने में अवनि का कोई जवाब नहीं। 

अवनि को चार साल में गढ़कर विश्व की सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज बनाने वाले चंद्रशेखर मूलत: बदायूं के ही रहने वाले हैं। अब वह जयपुर में रहते हैं और वहां के एसएमएस स्टेडियम में निशानेबाजी के कोच हैं। मंगलवार को अमर उजाला से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने अवनि के हौसले की दाद दी। बताया कि वर्ष 2016 से वह अवनि को लगातार प्रशिक्षण दे रहे हैं। शासन से उन्हीं का नाम बतौर कोच टोक्यो जाने के लिए चयनित हुआ था। पर स्वास्थ्य कारणों से वह नहीं जा सके। तब सूमा शिरूर को उसके कोच के रूप में भेजा गया।

चंद्रशेखर के मुताबिक अवनि को सिखाने के साल भर में उन्होंने उसकी इच्छाशक्ति और क्षमता भांप ली। इसके बाद तीन साल से वह केवल उसी पर मेहनत कर रहे थे। उन्होंने किसी नए खिलाड़ी को अपने प्रशिक्षण के लिए पंजीकृत ही नहीं किया। दिन-रात मेहनत में उन्होंने पाया कि अवनि की निशानेबाजी तकनीक पर मजबूत पकड़ और बेहतर समझ है। नए प्रयोग करने में हिचकिचाती नहीं। उन्होंने उसके पिता से कह दिया था कि बेटी का गोल्ड पक्का है। 

दुर्घटना में दिव्यांगता की शिकार हुई थी अवनि

कोच चंद्रशेखर बताते हैं कि अवनि का परिवार 2012 में एक हादसे का शिकार हुआ था। तब वह महज 11 साल की था। हादसे में परिवार के दूसरे लोगों को भी चोटें आईं पर अवनि के शरीर का धड़ से नीचे का हिस्सा बेकार हो गया। बावजूद इसके उसने हिम्मत नहीं हारी और आज नतीजा सामने है। 

कोच चंद्रशेखर का बदायूं से नाता

चंद्रशेखर ने बताया कि वह मूल रूप से दातागंज क्षेत्र के गांव अंधरऊ के निवासी हैं। वहां उनकी करीब छह बीघा जमीन अब भी है। उनकी प्राथमिक शिक्षा बदायूं के मीराजी चौकी स्थित शिशु मंदिर में हुई थी जबकि आगे की पढ़ाई हरमिलाप सनातन धर्म स्कूल से की। डिग्री कॉलेज में एडमिशन के लिए वह बुआ के पास राजस्थान चले गए तो वहीं बस गए। पिता महेंद्र कुमार ने वर्ष 1974 में दातागंज से एमएलए का चुनाव लड़ा था। वह लोकतंत्र रक्षा सेनानी भी रहे हैं। उनके दादा धर्मपाल विद्या अलंकार गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापकों में थे। 

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