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न्यायपालिका की सहायता लेने में आम जन की हिचकिचाहट दूर करें – राष्ट्रपति

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सार

उन्होंने कहा कि अभी भी लोग न्यायपालिका की मदद लेने में हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, समान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय लेने की व्यवस्था हो और खासकर महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय मिले, यह हम सबकी जिम्मेदारी है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
– फोटो : प्रयागराज

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संगमनगरी पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में राष्ट्रीय विधि विश्व विद्यालय के अलावा मल्टी लेबल पार्किंग और अधिवक्ता चेंबर बिल्डिंग की आधारशिला न्याय व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने का संदेश दिया। यहां उन्होंने न्याय क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ ही न्यायपालिका के प्रति लोगों में विश्वास और पैदा करने के लिए मौजूदा स्थिति में बदलाव लाने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि अभी भी लोग न्यायपालिका की मदद लेने में हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, समान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय लेने की व्यवस्था हो और खासकर महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय मिले, यह हम सबकी जिम्मेदारी है। यह तभी संभव होगा, जब न्याय व्यवस्था से जुड़े सभी स्टेट होल्डर्स अपनी सोच और कार्य संस्कृति में आवश्यक बदलाव लाएंगे और संवेदनशील भी बनेंगे।

दोपहर 12:22 बजे हाईकोर्ट परिसर पहुंचे राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय समेत 640 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की रिमोट दबाकर आधारशिला रखी। इस मौके पर उन्होंने न्याय प्रणाली को और मजबूत बनाने के लिए न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर देते हुए आधी आबादी की बल दिया। उन्होंने कहा कि सामान्यतया महिलाओं में न्याय की प्रवृत्ति का अंश अधिकतम होता है। भले ही इसके कुछ अपवाद भी होते हों, लेकिन उनमें सबको न्याय देने की प्रवृत्ति होती है।

उनमें न्याय दिलाने की मानसिकता व संस्कार होते हैं। मायका हो, ससुराल हो, पति या संतान हो, कामकाजी महिलाएं सबके बीच संतुलन बनाते हुए भी अपने काम में उत्कृष्टता का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। सही मायने में न्याय की अवधारणा पर आधारित समाज की स्थापना तभी संभव हो सकेगी, जब न्याय के क्षेत्र में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़े। राष्ट्रपति ने चिंता जताई कि उच्चतम और उच्च न्यायालयों को मिलाकर देश में महिला न्यायाधीशों की संख्या 12 प्रतिशत से भी कम है। अगर हमें संविधान के समावेशी आदर्शों को प्राप्त करना है तो, सफलता तभी मिलेगी जब देश की न्याय व्यवस्था में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।

ऐसे में न्यायपालिका में भी महिलाओं की संख्या को बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा कि देश के इस विशालतम उच्च न्यायालय में महिला वकीलों, न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि होनी चाहिए। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के तीनों अंगों मुझे विधायिका, कार्यपालिका, विधायिका से जुड़कर कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ हैै। न्याय पाने के लिए गरीब लोगों के संघर्ष को मैंने नजदीक  से देखा है। न्यायपालिका से के लिए न्याय पालिका से सभी को उम्मीदें तो होती हैं, लेकिन फिर भी सामान्यतया लोग न्यायपालिका की मदद लेने से हिचकिचाते हैं।

न्यायपालिका के प्रति लोगों के विश्वास को और बढ़ाने के अधिक लिए इस स्थिति को बदलना जरूरी है। सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, समान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय लेने की व्यवस्था हो और खासकर महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय प्रक्रिया में भी न्याय मिले,यह हम सबकी जिम्मेदारी है। यह तभी संभव होगा, जब न्याय व्यवस्था से जुड़े सभी स्टेट होल्डर्स अपनी सोच और कार्य संस्कृति में आवश्यक बदलाव लाएंगे और संवेदनशील भी बनेंगे। इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह उपस्थित थे।

सुप्रीम कोर्ट में चार महिला न्यायाधीशों की संख्या अबतक के इतिहास में सबसे अधिक
प्रयागराज। राष्ट्रपति ने याद दिलाया कि पिछले महीने न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी का नया  इतिहास रचा गया है। सर्वोच्च न्यायालय में तीन महिला न्यायधीशों समेत नौ की स्वीकृति प्रदान की है। कुल 33 न्यायाधीशों में चार महिला न्यायधीशों की उपस्थिति न्यायपालिका के इतिहास में सबसे अधिक संख्या है। इन में एक महिला चीफ जस्टिस बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता के रूप में उन्होंने खुद देखा है कि अधिकांश अधिवक्ताओं, उनके सहायकों और वादकारियों को सुविधाओं के अभाव में किस तरह अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

लंबित मामलों में तेजी लाना जरूरी
प्रयागराज। जनसाधारण में न्यायपालिका के प्रति विश्वास और उत्साह को बढ़ाने के लिए लंबित मामलों के निबटारे में तेजी लाने से लेकर सवार्डिनेट ज्यूडिशियरी की दक्षता बढ़ाने तक कई पहलुओं पर अनगिनत प्रयास करते रहना समय की मांग है। सवार्डिनेट ज्यूडिशियरी के लिए पर्याप्त सुविधाएं बढ़ाने,जजों की नियुक्ति के साथ ही बजट प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त संसाधन बढ़ाने से हमारी न्याय प्रक्रिया को और मजबूत आधार मिलेगा।

विस्तार

संगमनगरी पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में राष्ट्रीय विधि विश्व विद्यालय के अलावा मल्टी लेबल पार्किंग और अधिवक्ता चेंबर बिल्डिंग की आधारशिला न्याय व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने का संदेश दिया। यहां उन्होंने न्याय क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ ही न्यायपालिका के प्रति लोगों में विश्वास और पैदा करने के लिए मौजूदा स्थिति में बदलाव लाने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि अभी भी लोग न्यायपालिका की मदद लेने में हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, समान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय लेने की व्यवस्था हो और खासकर महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय मिले, यह हम सबकी जिम्मेदारी है। यह तभी संभव होगा, जब न्याय व्यवस्था से जुड़े सभी स्टेट होल्डर्स अपनी सोच और कार्य संस्कृति में आवश्यक बदलाव लाएंगे और संवेदनशील भी बनेंगे।

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