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भगवा गढ़ भेदना विपक्ष के लिए चुनौती : खाद कारखाना, कुशीनगर एयरपोर्ट, एम्स और पिपराइच चीनी मिल जैसे कई बड़े काम हुए

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सार

गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया व कुशीनगर जिले की 28 विधानसभा सीटों वाले गोरखपुर मंडल के लोग बाढ़ से हर साल होने वाली बर्बादी, गोरखपुर शहर में जलभराव व गड्ढे वाली सड़कों की समस्याओं के साथ कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या व वसूली का मुद्दा जरूर याद दिलाते हैं।

कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट
– फोटो : अमर उजाला।

पांच वर्ष पहले रामगढ़ ताल जलकुंभी से पटा था। आज यहां लकदक चौड़ी सड़कें और वाटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स हैं तो लाइट-साउंड की मस्ती के साथ नौकायन का लुत्फ उठाने का मौका भी। कुशीनगर एयरपोर्ट, गोरखपुर का खाद कारखाना व एम्स का सपना इसी साढ़े चार साल में हकीकत में बदला। गोरखपुर व आसपास के जिलों की कई सड़कें न सिर्फ  चौड़ी हुईं, बल्कि एयरफोर्स के एयरपोर्ट से पब्लिक उड़ान की शुरुआत भी हो गई है। प्रदेश की पहली आयुष यूनिवर्सिटी गोरखपुर के खाते में आई है, तो गोरक्षनाथ यूनिवर्सिटी ने भी संभावनाएं खोली हैं। पिपराइच में बंद चीनी मिल फिर चालू हो गई, तो गीडा में वर्षों बाद उद्योग लगाने के लिए भूमि आवंटन की शुरुआत भी हो गई है। पर, इस सबके बावजूद विधानसभा चुनाव की सारी चर्चाएं महंगाई, मुख्यमंत्री व प्रत्याशियों के टिकट पर जाकर ठहर जाती हैं।

गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया व कुशीनगर जिले की 28 विधानसभा सीटों वाले गोरखपुर मंडल के लोग बाढ़ से हर साल होने वाली बर्बादी, गोरखपुर शहर में जलभराव व गड्ढे वाली सड़कों की समस्याओं के साथ कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या व वसूली का मुद्दा जरूर याद दिलाते हैं। लोग मुख्यमंत्री की छोड़ी सीट पर लोकसभा उपचुनाव हराने का गुस्सा भी याद दिलाना नहीं भूलते। पर, इन सबके साथ वे सीटवार मुस्लिम-यादव की एकजुटता, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की जमीन बनाते नेताओं के बयान, निषाद, सैंथवार, ब्राह्मण, पाल व ठाकुर जैसे जातीय समीकरण, अंचल से मुख्यमंत्री होेने के फायदे के साथ ही मोदी, मंदिर और मुफ्त अनाज जैसे फैक्टर भी गिनाना नहीं भूलते।

2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर मंडल की 28 सीटों में से 23 पर भाजपा व कुशीनगर की रामकोला सुरक्षित सीट पर सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने कब्जा किया था। सिर्फ  कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से अजय कुमार लल्लू (मौजूदा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष),  चिल्लूपार से बसपा के विनय शंकर तिवारी, देवरिया के भाटपाररानी से सपा के आशुतोष उपाध्याय व महराजगंज जिले की नौतनवा सीट से निर्दल अमनमणि त्रिपाठी ही जीत पाए थे। इस चुनाव में सुभासपा सपा के साथ है। भाजपा में कई मौजूदा विधायकों के टिकट कटने की आशंका के बीच हर सीट पर तीन से पांच दावेदार उभर आए हैं। मुख्यमंत्री का गृह मंडल होने के नाते संगठन से सरकार तक की प्रतिष्ठा दांव पर है। सपा में भी कई सीटों पर 8-10 दावेदार हैं। 

निषाद फैक्टर भी अहम
गोरखपुर मंडल की ज्यादातर सीटों पर निषाद, मल्लाह व साहनी जैसी जातियों का अच्छा प्रभाव है। भाजपा ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को एमएलसी बना दिया है और उनके बेटे प्रवीण निषाद सांसद हैं। पर, सब कुछ अपने परिवार के लिए ही मांगने की वजह से बिरादरी में संजय के प्रति नाराजगी भी है। दूसरी ओर सपा के पास पूर्व मंत्री जमुना निषाद का परिवार व राम भुआल निषाद जैसे कद्दावर चेहरे हैं। ऐसे में कई सीटों पर 5 से 15 हजार वोट की हिस्सेदारी रखने वाले निषाद समाज का रुख विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा।

पूरे नहीं हुए चीनी मिलों के वादे : लल्लू
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व कुशीनगर के तमकुहीराज से विधायक अजय कुमार ‘लल्लू’ कहते हैं, कुशीनगर के तमकुहीराज, खड्डा व महराजगंज से लेकर गोरखपुर तक महीनों बाढ़ से जूझता रहा। फसलें बर्बाद हो गईं। कभी देवरिया व कुशीनगर जिले में 14 चीनी मिलें हुआ करती थीं। इनमें 13 बंद हैं। मोदी से लेकर योगी तक ने इन्हें चलाने का वादा किया था। गोरखपुर में मेट्रो, लाइट मेट्रो से लेकर रैपिड रेल तक की बातें हुईं, लेकिन जमीन पर ये कहीं नजर नहीं आ रही हैं। मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किया जा रहा है, लेकिन वहां संसाधन नहीं हैं।

सपा की पूर्व विधायक ने इरादे पर उठाया सवाल
देवरिया जिले के रामपुर कारखाना से समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक गजाला लारी कहती हैं कि महंगाई चरम पर है। किसानों का धान बिक नहीं पा रहा है। गन्ना किसानों का भुगतान बकाया है। गोरखपुर के इर्द-गिर्द छोड़ दीजिए तो मंडल में गड्ढामुक्ति का दावा पूरी तरह से खोखला है। जिस काम का हमने शिलान्यास किया, पूरा कराया, उसका इन्होंने उद्घाटन कर अपना पट लगा दिया। हमारे शिलान्यास का पट तक हटा दिया।

फिलहाल सपा दे सकती है चुनौती
गोरखपुर मंडल में फिलहाल मुख्य लड़ाई भाजपा गठबंधन और सपा गठबंधन के बीच नजर आ रही है। भाजपा ने पिछले चुनाव में कुछ सीटें सहयोगी दल सुभासपा व अपना दल के लिए छोड़ी थीं तो सपा   ने सहयोगी कांग्रेस के लिए। इस बार भी भाजपा व सपा सहयोगी दलों के साथ आने की तैयारी कर रहे हैं। ज्यादातर सीटों पर बसपा के प्रभारी फाइनल नहीं होने से इस पार्टी के समर्थकों का रुख साफ नहीं है। वास्तविक तस्वीर प्रत्याशी फाइनल होने के बाद स्पष्ट होगी।

 नौकरशाही बेकाबू
गोरखपुर जिले में करीब 40 वर्ष तक प्रधान रहे राम सहाय सिंह सैंथवार अपने नजरिए को अलग तरीके से रखते हैं। वह कहते हैं, योगी ईमानदार हैं, लेकिन नौकरशाही बेकाबू है। इसका भी गलत असर पड़ा है। वहीं, महराजगंज के लक्ष्मीपुर निवासी सोनू चौधरी कहते हैं कि जंगलों को जाने वाली सड़कें हजारों लोगों के आने-जाने का माध्यम हैं, लेकिन इस ओर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया। वनवासी समुदाय को सरकारी सुविधाएं तो मिलने लगी हैं, लेकिन पिछड़ापन दूर करने के लिए कुछ और ठोस करने की जरूरत है। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की महंगाई सत्ताधारी दल की चुनौती बढ़ा सकती है।

बड़ा सवाल : योगी किस सीट से लड़ेंगे चुनाव
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी विधान परिषद के सदस्य हैं। 2022 के चुनाव में भी भाजपा ने उन्हें सीएम प्रोजेक्ट किया है। योगी के   लिए गोरखपुर से लेकर अयोध्या तक की सीटों पर चुनाव लड़ने की अटकलें हैं।

गोरखपुर 
(कुल 9 सीटें)
गोरखपुर शहर

 भाजपा के डॉ. आरएमडी अग्रवाल 2002 से विधायक हैं। पहला चुनाव हिंदू महासभा से जीतेे। अब भाजपा में।
जातीय समीकरण : ब्राह्मण करीब 50 हजार, कायस्थ व निषाद 35-35 हजार, वैश्य 30 हजार, कुर्मी 28 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, यादव 20 हजार, एससी-एसटी 48 हजार और मुस्लिम 45 हजार।
कैम्पियरगंज
पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह 1991 से लगातार विधायक हैं। बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 2017 में इस सीट से भाजपा से जीते।
जातिगत समीकरण : निषाद करीब 45 हजार, एससी-एसटी 44 हजार, कायस्थ 40हजार, ब्राह्मण 38हजार, क्षत्रिय व यादव 35-35 हजार, वैश्य व कुर्मी 25-25 हजार और मुस्लिम 35 हजार।
गोरखपुर ग्रामीण
पूर्व विधायक अंबिका सिंह के बेटे बिपिन सिंह विधायक हैं। 2012 के चुनाव में भाजपा से विजय बहादुर यादव चुनाव जीते थे, लेकिन बाद में वे सपा में चले गए।
जातिगत समीकरण : निषाद करीब 60 हजार, वैश्य-कुर्मी 40-40 हजार, मुस्लिम 40 हजार, ब्राह्मण 30 हजार, यादव 25 हजार, क्षत्रिय व मौर्य 15-15 हजार, व  एससी-एसटी 75 हजार।

पिपराइच

भाजपा के महेंद्र पाल सिंह विधायक हैं। 
जातिगत समीकरण : कुर्मी करीब 45 हजार, वैश्य 40 हजार, सैंथवार व निषाद 35-35 हजार, ब्राह्मण 32 हजार, यादव 30 हजार, क्षत्रिय 20 हजार, एससी-एसटी 48 हजार और मुस्लिम 35 हजार।
सहजनवां
भाजपा के शीतल प्रसाद पांडेय विधायक हैं। भाजपा के तारकेश्वर प्रसाद शुक्ला यहां से दो बार विधायक रहे।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 1.20 लाख, यादव 80 हजार, एससी 60 हजार, सैंथवार-निषाद 40-40 हजार, मुसलमान 11 हजार।
चौरी-चौरा
भाजपा से संगीता यादव विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण व वैश्य 30-30 हजार, कायस्थ 25 हजार, निषाद 35 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, यादव 35 हजार, एससी-एससी 50 हजार,  कुर्मी 40 हजार और मुस्लिम 30 हजार।
चिल्लूपार
बाहुबली हरिशंकर तिवारी के छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी बसपा से विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 1.05 लाख, एससी-एसटी 80 हजार, ओबीसी व अन्य जातियां 2.30 लाख और मुस्लिम 20 हजार।

खजनी (सु.)

संत प्रसाद दूसरी बार भाजपा से विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 40 हजार, वैश्य 35 हजार, मौर्य-कुर्मी 58 हजार, निषाद 40 हजार, क्षत्रिय 20 हजार, यादव 40 हजार, एससी-एसटी 85 हजार और मुस्लिम 30 हजार।
बांसगांव (सु.)
भाजपा के डॉ. विमलेश पासवान विधायक हैं। डॉ. विमलेश के बड़े भाई कमलेश पासवान तीसरी बार भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण 30 हजार, कुर्मी व क्षत्रिय 35-35 हजार ,कायस्थ, यादव व निषाद 25-25 हजार, एससी-एसटी 61 हजार और मुस्लिम 30 हजार।

देवरिया सदर :  भाजपा के डॉ. सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी विधायक हैं। भाजपा विधायक जन्मेजय    सिंह के निधन से सीट खाली हुई थी।
जातिगत समीकरण : वैश्य करीब 41 हजार, ब्राह्मण 39 हजार, क्षत्रिय 27 हजार, यादव व निषाद 20-20 हजार, अनुसूचित जाति 41 हजार और मुस्लिम 22 हजार।
पथरदेवा : कैबिनेट मंत्री सूर्यप्रताप शाही यहां से विधायक हैं। 2012 में सीट अस्तित्व में आई।
जातिगत समीकरण : सैंथवार करीब 37 हजार, वैश्य 32 हजार, यादव 25 हजार, ब्राह्मण 19 हजार, क्षत्रिय 13 हजार, एससी-एसटी 63 हजार, मुस्लिम 60 हजार।
भाटपाररानी : सपा के डॉ. आशुतोष उपाध्याय विधायक हैं। इनके पिता स्व. कामेश्वर उपाध्याय तीन बार मंत्री रहे।
जातिगत समीकरण: कुशवाहा करीब 48 हजार, यादव 42 हजार, वैश्य 36 हजार, ब्राह्मण 28 हजार, क्षत्रिय 21 हजार, एससी व मुसलमान 36-36 हजार।
रुद्रपुर : राज्यमंत्री जयप्रकाश निषाद यहां से विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : निषाद करीब 42 हजार, यादव 39 हजार, क्षत्रिय 29 हजार, सैंथवार 23 हजार, ब्राह्मण 21 हजार, एससी 28 हजार, मुस्लिम 22 हजार।
रामपुर कारखाना : भाजपा के कमलेश शुक्ल विधायक हैं। यह सीट 2012 में अस्तित्व में आई। 
जातिगत समीकरण : यादव करीब 42 हजार, ब्राह्मण 38 हजार, कुशवाहा 32 हजार, सैंथवार 30 हजार, क्षत्रिय 14 हजार, एससी-एसटी 52 हजार और मुस्लिम 30 हजार।
बरहज : भाजपा के सुरेश तिवारी विधायक हैं। तिवारी 2007 में रुद्रपुर  सीट से बसपा के टिकट पर जीते थे।
जातिगत समीकरण : यादव करीब 41 हजार, ब्राह्मण 40 हजार, वैश्य 32 हजार, क्षत्रिय 30 हजार,  एससी 42 हजार और मुस्लिम 16 हजार।
सलेमपुर (सु.) : भाजपा के काली प्रसाद विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : यादव करीब 41 हजार, ब्राह्मण 38 हजार, वैश्य 28हजार, क्षत्रिय 22 हजार, कुशवाहा 24 हजार, एससी 46 हजार और मुस्लिम 39 हजार।

महराजगंज सदर : भाजपा के जयमंगल कन्नौजिया विधायक हैं।
जातिगत समीकरण: यादव करीब 65 हजार, वैश्य 56 हजार, ब्राह्मण 48 हजार, क्षत्रिय 45 हजार, एससी 97 हजार और मुस्लिम 44 हजार।
नौतनवा : पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी निर्दलीय विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 85 हजार, यादव 50 हजार, वैश्य 46 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, एससी 70 हजार, मुस्लिम 65 हजार।
सिसवा : भाजपा के प्रेम सागर पटेल ने सपा के शिवेंद्र सिंह उर्फ शिव बाबू को 68,186 मतों के अंतर से हराया।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 88 हजार, कुर्मी 75 हजार, वैश्य 48 हजार, यादव 30 हजार, क्षत्रिय 15 हजार, अनुसूचित जाति 60 हजार और मुस्लिम 20 हजार।
फरेंदा : भाजपा के बजरंग बहादुर सिंह तीसरी बार यहां से विधायक हैं। विधायक रहते ठेकेदारी करने के आरोप में 2015 में बजरंग को सदस्यता गंवानी पड़ी थी।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 68 हजार, कुर्मी 50 हजार, यादव 45 हजार, वैश्य 42 हजार, क्षत्रिय 23 हजार, अनुसूचित जाति 45 हजार और मुस्लिम 25 हजार।
पनियरा : 2017 के पहले यह सीट श्यामदेउरवां के नाम से जानी जाती थी। भाजपा के ज्ञानेंद्र सिंह यहां से विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : सैंथवार 70 हजार, निषाद 60 हजार, यादव 42 हजार, ब्राह्मण व वैश्य 40-40 हजार, क्षत्रिय 20 हजार, अनुसूचित जाति 55 हजार और मुस्लिम 33 हजार।
खड्डा : पहले सीट का नाम नेबुआ नौरंगिया था। यह एससी के लिए आरक्षित थी। वर्ष 2012 में अनारक्षित हुई और नाम भी बदल गया। भाजपा के जटाशंकर त्रिपाठी विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : कुशवाहा करीब 57 हजार, यादव 53 हजार, ब्राह्मण 48 हजार, कुर्मी 38 हजार, वैश्य 29 हजार, निषाद 28 हजार, एससी 67 हजार और मुस्लिम 65 हजार।
पडरौना : श्रममंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य इस सीट से लगातार तीसरी बार विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 52 हजार, यादव 48 हजार, सैंथवार 46 हजार, कुशवाहा 44 हजार, वैश्य 41 हजार, कुर्मी 37 हजार, एससी 76 हजार और मुस्लिम 84 हजार।
तमकुहीराज : विधानसभा क्षेत्र 2012 में वजूद में आया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू यहां से लगातार दूसरी बार विधायक हैं।   
जातिगत समीकरण : यादव करीब 48 हजार, ब्राह्मण 41 हजार, भूमिहार 36 हजार, कुर्मी 29 हजार, निषाद 27 हजार व मुस्लिम 55 हजार।
फाजिलनगर : भाजपा के गंगा सिंह कुशवाहा लगातार दूसरी बार विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : यादव व कुशवाहा करीब 56-56 हजार, ब्राह्मण 48 हजार, वैश्य 39 हजार, कुर्मी 38 हजार, एससी 77 हजार, अन्य जातियां  और मुस्लिम 98 हजार।
कुशीनगर : 2012 में वजूद में आई इस सीट को पहले कसया के नाम से जाना जाता था। भाजपा के रजनीकांत मणि त्रिपाठी विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 77 हजार, यादव 59 हजार, सैंथवार 35 हजार, वैश्य 30 हजार, गोंड 27 हजार, कुर्मी 26 हजार, एससी 59 हजार और मुस्लिम 85 हजार।
हाटा : भाजपा के पवन केडिया यहां से विधायक हैं। वर्ष 2012 से पहले यह सीट एससी के लिए आरक्षित थी।
जातिगत समीकरण : सैंथवार करीब 96 हजार, ब्राह्मण 63 हजार, वैश्य. 33 हजार, यादव 32 हजार, कुर्मी 26 हजार, एससी 65 हजार और मुस्लिम 59 हजार।
रामकोला (सु.) : सुभासपा के रामानंद बौद्ध यहां के विधायक हैं। उन्होंने सपा के पूर्णमासी देहाती को हराया था।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण 59 हजार, यादव 57 हजार, राजपूत 39 हजार, वैश्य 37 हजार, कुर्मी 31 हजार, गोंड 27 हजार, एससी 61 हजार और मुस्लिम 71 हजार।

 

विस्तार

पांच वर्ष पहले रामगढ़ ताल जलकुंभी से पटा था। आज यहां लकदक चौड़ी सड़कें और वाटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स हैं तो लाइट-साउंड की मस्ती के साथ नौकायन का लुत्फ उठाने का मौका भी। कुशीनगर एयरपोर्ट, गोरखपुर का खाद कारखाना व एम्स का सपना इसी साढ़े चार साल में हकीकत में बदला। गोरखपुर व आसपास के जिलों की कई सड़कें न सिर्फ  चौड़ी हुईं, बल्कि एयरफोर्स के एयरपोर्ट से पब्लिक उड़ान की शुरुआत भी हो गई है। प्रदेश की पहली आयुष यूनिवर्सिटी गोरखपुर के खाते में आई है, तो गोरक्षनाथ यूनिवर्सिटी ने भी संभावनाएं खोली हैं। पिपराइच में बंद चीनी मिल फिर चालू हो गई, तो गीडा में वर्षों बाद उद्योग लगाने के लिए भूमि आवंटन की शुरुआत भी हो गई है। पर, इस सबके बावजूद विधानसभा चुनाव की सारी चर्चाएं महंगाई, मुख्यमंत्री व प्रत्याशियों के टिकट पर जाकर ठहर जाती हैं।


गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया व कुशीनगर जिले की 28 विधानसभा सीटों वाले गोरखपुर मंडल के लोग बाढ़ से हर साल होने वाली बर्बादी, गोरखपुर शहर में जलभराव व गड्ढे वाली सड़कों की समस्याओं के साथ कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या व वसूली का मुद्दा जरूर याद दिलाते हैं। लोग मुख्यमंत्री की छोड़ी सीट पर लोकसभा उपचुनाव हराने का गुस्सा भी याद दिलाना नहीं भूलते। पर, इन सबके साथ वे सीटवार मुस्लिम-यादव की एकजुटता, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की जमीन बनाते नेताओं के बयान, निषाद, सैंथवार, ब्राह्मण, पाल व ठाकुर जैसे जातीय समीकरण, अंचल से मुख्यमंत्री होेने के फायदे के साथ ही मोदी, मंदिर और मुफ्त अनाज जैसे फैक्टर भी गिनाना नहीं भूलते।


2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर मंडल की 28 सीटों में से 23 पर भाजपा व कुशीनगर की रामकोला सुरक्षित सीट पर सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने कब्जा किया था। सिर्फ  कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से अजय कुमार लल्लू (मौजूदा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष),  चिल्लूपार से बसपा के विनय शंकर तिवारी, देवरिया के भाटपाररानी से सपा के आशुतोष उपाध्याय व महराजगंज जिले की नौतनवा सीट से निर्दल अमनमणि त्रिपाठी ही जीत पाए थे। इस चुनाव में सुभासपा सपा के साथ है। भाजपा में कई मौजूदा विधायकों के टिकट कटने की आशंका के बीच हर सीट पर तीन से पांच दावेदार उभर आए हैं। मुख्यमंत्री का गृह मंडल होने के नाते संगठन से सरकार तक की प्रतिष्ठा दांव पर है। सपा में भी कई सीटों पर 8-10 दावेदार हैं। 


निषाद फैक्टर भी अहम

गोरखपुर मंडल की ज्यादातर सीटों पर निषाद, मल्लाह व साहनी जैसी जातियों का अच्छा प्रभाव है। भाजपा ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को एमएलसी बना दिया है और उनके बेटे प्रवीण निषाद सांसद हैं। पर, सब कुछ अपने परिवार के लिए ही मांगने की वजह से बिरादरी में संजय के प्रति नाराजगी भी है। दूसरी ओर सपा के पास पूर्व मंत्री जमुना निषाद का परिवार व राम भुआल निषाद जैसे कद्दावर चेहरे हैं। ऐसे में कई सीटों पर 5 से 15 हजार वोट की हिस्सेदारी रखने वाले निषाद समाज का रुख विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा।


पूरे नहीं हुए चीनी मिलों के वादे : लल्लू

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व कुशीनगर के तमकुहीराज से विधायक अजय कुमार ‘लल्लू’ कहते हैं, कुशीनगर के तमकुहीराज, खड्डा व महराजगंज से लेकर गोरखपुर तक महीनों बाढ़ से जूझता रहा। फसलें बर्बाद हो गईं। कभी देवरिया व कुशीनगर जिले में 14 चीनी मिलें हुआ करती थीं। इनमें 13 बंद हैं। मोदी से लेकर योगी तक ने इन्हें चलाने का वादा किया था। गोरखपुर में मेट्रो, लाइट मेट्रो से लेकर रैपिड रेल तक की बातें हुईं, लेकिन जमीन पर ये कहीं नजर नहीं आ रही हैं। मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किया जा रहा है, लेकिन वहां संसाधन नहीं हैं।


सपा की पूर्व विधायक ने इरादे पर उठाया सवाल

देवरिया जिले के रामपुर कारखाना से समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक गजाला लारी कहती हैं कि महंगाई चरम पर है। किसानों का धान बिक नहीं पा रहा है। गन्ना किसानों का भुगतान बकाया है। गोरखपुर के इर्द-गिर्द छोड़ दीजिए तो मंडल में गड्ढामुक्ति का दावा पूरी तरह से खोखला है। जिस काम का हमने शिलान्यास किया, पूरा कराया, उसका इन्होंने उद्घाटन कर अपना पट लगा दिया। हमारे शिलान्यास का पट तक हटा दिया।


फिलहाल सपा दे सकती है चुनौती

गोरखपुर मंडल में फिलहाल मुख्य लड़ाई भाजपा गठबंधन और सपा गठबंधन के बीच नजर आ रही है। भाजपा ने पिछले चुनाव में कुछ सीटें सहयोगी दल सुभासपा व अपना दल के लिए छोड़ी थीं तो सपा   ने सहयोगी कांग्रेस के लिए। इस बार भी भाजपा व सपा सहयोगी दलों के साथ आने की तैयारी कर रहे हैं। ज्यादातर सीटों पर बसपा के प्रभारी फाइनल नहीं होने से इस पार्टी के समर्थकों का रुख साफ नहीं है। वास्तविक तस्वीर प्रत्याशी फाइनल होने के बाद स्पष्ट होगी।


 नौकरशाही बेकाबू

गोरखपुर जिले में करीब 40 वर्ष तक प्रधान रहे राम सहाय सिंह सैंथवार अपने नजरिए को अलग तरीके से रखते हैं। वह कहते हैं, योगी ईमानदार हैं, लेकिन नौकरशाही बेकाबू है। इसका भी गलत असर पड़ा है। वहीं, महराजगंज के लक्ष्मीपुर निवासी सोनू चौधरी कहते हैं कि जंगलों को जाने वाली सड़कें हजारों लोगों के आने-जाने का माध्यम हैं, लेकिन इस ओर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया। वनवासी समुदाय को सरकारी सुविधाएं तो मिलने लगी हैं, लेकिन पिछड़ापन दूर करने के लिए कुछ और ठोस करने की जरूरत है। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की महंगाई सत्ताधारी दल की चुनौती बढ़ा सकती है।

बड़ा सवाल : योगी किस सीट से लड़ेंगे चुनाव

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी विधान परिषद के सदस्य हैं। 2022 के चुनाव में भी भाजपा ने उन्हें सीएम प्रोजेक्ट किया है। योगी के   लिए गोरखपुर से लेकर अयोध्या तक की सीटों पर चुनाव लड़ने की अटकलें हैं।

कुशीनगर(कुल 7 सीटें)

खड्डा : पहले सीट का नाम नेबुआ नौरंगिया था। यह एससी के लिए आरक्षित थी। वर्ष 2012 में अनारक्षित हुई और नाम भी बदल गया। भाजपा के जटाशंकर त्रिपाठी विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : कुशवाहा करीब 57 हजार, यादव 53 हजार, ब्राह्मण 48 हजार, कुर्मी 38 हजार, वैश्य 29 हजार, निषाद 28 हजार, एससी 67 हजार और मुस्लिम 65 हजार।
पडरौना : श्रममंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य इस सीट से लगातार तीसरी बार विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 52 हजार, यादव 48 हजार, सैंथवार 46 हजार, कुशवाहा 44 हजार, वैश्य 41 हजार, कुर्मी 37 हजार, एससी 76 हजार और मुस्लिम 84 हजार।
तमकुहीराज : विधानसभा क्षेत्र 2012 में वजूद में आया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू यहां से लगातार दूसरी बार विधायक हैं।   
जातिगत समीकरण : यादव करीब 48 हजार, ब्राह्मण 41 हजार, भूमिहार 36 हजार, कुर्मी 29 हजार, निषाद 27 हजार व मुस्लिम 55 हजार।
फाजिलनगर : भाजपा के गंगा सिंह कुशवाहा लगातार दूसरी बार विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : यादव व कुशवाहा करीब 56-56 हजार, ब्राह्मण 48 हजार, वैश्य 39 हजार, कुर्मी 38 हजार, एससी 77 हजार, अन्य जातियां  और मुस्लिम 98 हजार।
कुशीनगर : 2012 में वजूद में आई इस सीट को पहले कसया के नाम से जाना जाता था। भाजपा के रजनीकांत मणि त्रिपाठी विधायक हैं।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण करीब 77 हजार, यादव 59 हजार, सैंथवार 35 हजार, वैश्य 30 हजार, गोंड 27 हजार, कुर्मी 26 हजार, एससी 59 हजार और मुस्लिम 85 हजार।
हाटा : भाजपा के पवन केडिया यहां से विधायक हैं। वर्ष 2012 से पहले यह सीट एससी के लिए आरक्षित थी।
जातिगत समीकरण : सैंथवार करीब 96 हजार, ब्राह्मण 63 हजार, वैश्य. 33 हजार, यादव 32 हजार, कुर्मी 26 हजार, एससी 65 हजार और मुस्लिम 59 हजार।
रामकोला (सु.) : सुभासपा के रामानंद बौद्ध यहां के विधायक हैं। उन्होंने सपा के पूर्णमासी देहाती को हराया था।
जातिगत समीकरण : ब्राह्मण 59 हजार, यादव 57 हजार, राजपूत 39 हजार, वैश्य 37 हजार, कुर्मी 31 हजार, गोंड 27 हजार, एससी 61 हजार और मुस्लिम 71 हजार।

 

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