सीडीएस जनरल बिपिन रावत का बुधवार को तमिलनाडु के कुन्नूर में हेलीकॉप्टर हादसे में निधन हो गया।
कर्नल डॉ. जाहिद सिद्दीकी व ब्रिगेडियर नवीन सिंह – फोटो : अमर उजाला
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कानपुर में रहने वाले कर्नल डॉ. जाहिद सिद्दीकी ने भी सीडीएस बिपिन रावत से जुड़े संस्मरण सुनाए। उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने तिरछी टोपी पहनने को लेकर टिप्पणी की थी।
इस पर सीडीएस ने कहा था कि 1971 के युद्ध में तिरछी टोपी पहनने वाले मानिकशा ने ही पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को बंदी बनाकर बांग्लादेश बनवाया था। इसके बाद से वे बहुत चर्चा में आए थे।
उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सेना ने 1999 में ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया था। तब बतौर जेसीओ वह भी पहुंचे थे। उन्होंने बताया था कि किस तरह से सेना को आगे बढ़ना है। कैसे दुश्मन को हराना है। वो गोरखा राइफल से 1978 में कमीशन हुए थे।
बटालियन, ब्रिगेड, डिवीजन समेत सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए देश के पहले सीडीएस बने। वो बहुत अच्छी प्लानिंग करते थे। दो फ्रंट में कैसे लड़ाई लड़नी है। एक फ्रंट में कैसे लड़ाई लड़नी है, इसके बहुत अच्छे रणनीतिकार थे। बेहतरीन योद्धा थे रावत, उनका जाना अपूर्णनीय क्षति विशिष्ट सेवा मेडल वीर चक्र से सम्मानित ब्रिगेडियर नवीन सिंह ने बताया कि सीडीएस बिपिन रावत से कई बार मिलने का अवसर मिला। प्रयागराज, अरुणाचल प्रदेश, कोलकाता, दिल्ली में मुलाकात हुई। वे एक बेहतरीन योद्धा और नेतृत्व क्षमता वाले थे। उनका अनुभव उनकी लीडरशिप में दिखता था। सादा जीवन और उच्च विचार वाला उनका व्यक्तित्व था। उनका जाना अपूर्णनीय क्षति है।
बिपिन रावत को दी श्रद्धांजलि भाजयुमो कानपुर उत्तर के जिलाध्यक्ष शिवांग मिश्रा ने गंगा बैराज में सीडीएस, उनकी पत्नी और 11 अन्य सैन्य अफसरों को श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर शुभम दीक्षित, अंशु ठाकुर, आशुतोष दीक्षित, रोहित सिंह आदि मौजूद रहे।
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कानपुर में रहने वाले कर्नल डॉ. जाहिद सिद्दीकी ने भी सीडीएस बिपिन रावत से जुड़े संस्मरण सुनाए। उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने तिरछी टोपी पहनने को लेकर टिप्पणी की थी।
इस पर सीडीएस ने कहा था कि 1971 के युद्ध में तिरछी टोपी पहनने वाले मानिकशा ने ही पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को बंदी बनाकर बांग्लादेश बनवाया था। इसके बाद से वे बहुत चर्चा में आए थे।
उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सेना ने 1999 में ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया था। तब बतौर जेसीओ वह भी पहुंचे थे। उन्होंने बताया था कि किस तरह से सेना को आगे बढ़ना है। कैसे दुश्मन को हराना है। वो गोरखा राइफल से 1978 में कमीशन हुए थे।
बटालियन, ब्रिगेड, डिवीजन समेत सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए देश के पहले सीडीएस बने। वो बहुत अच्छी प्लानिंग करते थे। दो फ्रंट में कैसे लड़ाई लड़नी है। एक फ्रंट में कैसे लड़ाई लड़नी है, इसके बहुत अच्छे रणनीतिकार थे।