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काशी में संस्कृति संसदः जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद बोले, हिंदू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार 

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सार

हिंदू धर्म की ऐसी व्यवस्था है कि बिना महिलाओं के कोई यज्ञ नहीं होता। इसलिए महिला उपेक्षा का आरोप धर्म मान्य नहीं है।

संस्कृति संसद में उपस्थित वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, प्रो रामयन्न शुक्ल, सांसद राज्यसभा रूपा गांगुली व अन्य साधु संत शमिल रहे ।
– फोटो : अमर उजाला

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वाराणसी में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि हिंदू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार है। स्त्री विभिन्न रूपों में पूजनीय है और यह मान्यता सिर्फ हिंदू संस्कृति में है। उन्होंने कहा कि मनु स्मृति में उल्लेख है कि स्त्री व पुरुष परमेश्वर के दो भाग हैं।

स्वामी वासुदेवानंद शुक्रवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय संस्कृति संसद को संबोधित कर रहे थे। देश भर से आए साधु-संतों और विद्वानों ने हिंदू धर्म पर आधारित जीवन को सबसे श्रेष्ठ बताया। अखिल भारतीय संत समिति, गंगा महासभा व श्री काशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में संस्कृति संसद का शुभारंभ जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने दीप जलाकर किया।

प्रथम सत्र में प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि विद्वानों एवं संतों को हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए विदेशों की यात्राएं करनी चाहिए। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि हिंदू धर्म की ऐसी व्यवस्था है कि बिना महिलाओं के कोई यज्ञ नहीं होता। इसलिए महिला उपेक्षा का आरोप धर्म मान्य नहीं है।

 

प्रो. वाचस्पति त्रिपाठी ने कहा कि हिंदू संस्कृति में नारी अपमान का आरोप विरोधियों का कुप्रचार है। नारी उपनयन के रूप में विवाह को मान्यता है। विवाह के उपरांत कुल संचालन ही उसकी दीक्षा एवं जीवनचर्या का भाग है। महिलाओं को पुरुषों से प्रमुख स्थान दिया गया है। इसीलिए कृष्ण के पहले राधा, राम के पहले सीता, शिव के पहले पार्वती का उच्चारण होता है। इस तरह के अनेकों उदाहरण हैं जो महिला सम्मान को प्रदर्शित करते हैं। सत्र का संचालन गंगा महासभा के गोविंद शर्मा ने किया।

संस्कृति संसद के दूसरे सत्र में भारत की प्राचीनतम अखंडित संस्कृति की वैश्विक छाप एवं वर्तमान परिदृश्य विषयक सत्र का आयोजन हुआ। पोलैंड के योगानंद शास्त्री ने कहा कि पोलैंड के आसपास लगभग एक हजार क्षेत्र ऐसे हैं जहां की संस्कृति प्राचीनकाल में हिंदुत्व की थी। यह संस्कृति नि:स्वार्थ भाव को बढ़ावा देती है इसलिए आकर्षित होना स्वभाविक है। ब्रिटेन से आए योगाचार्य दिव्य प्रभा ने कहा कि हिंदू धर्म संस्कृति एक प्रकाश की भांति है जो अपनी रोशनी चारों ओर फैला रही है।  

संस्कृति संसद के तृतीय सत्र ‘भारतीय युवा जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार’ को संबोधित करते हुए लद्दाख के लोकसभा सांसद जमयांग सेिंरग नामग्याल ने कहा कि भारतीयता की भावना भारतीय संस्कृति से उत्पन्न होती है। मजबूत संस्कार से ही नकारात्मकता दूर होगी और संस्कृति बचेगी। आज देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार, बेेरोजगारी, गरीबी, आतंकवाद व नक्सलवाद से मुक्त कराना है। इस महायज्ञ का बिगुल काशी के युवाओं द्वारा फूंका जाना चाहिए। राज्यसभा सांसद एवं संस्कृति संसद के आयोजन समिति की अध्यक्ष रूपा गांगुली ने कहा कि हिंदू संस्कृति कभी भी हिंसक एवं हमलावर नहीं रही। वर्तमान समय में हिंदू संस्कृति पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं, उससे सजगतापूर्वक संघर्ष की जरूरत है। स्वामी कृष्णानंद ने कहा कि हम बुराइयों से संघर्ष करने से पीछे हट रहे हैं। 

 ‘एक देश एक विधान, हमारा देश हमारे कानून विषय पर समानांतर सत्र को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि देश के विकास के लिए समान नागरिक संहिता आवश्यक है। अब तक 125 बार संविधान में संशोधन किया जा चुका है और 5 बार तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी पलट दिया गया, लेकिन समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता का एक मसौदा भी नहीं तैयार किया गया। संचालन सुनील किशोर द्विवेदी व मीडिया संयोजक प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने किया। 

हिंदू धर्म के आधार पर बनाए जाएंगे विधान
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि संस्कृति संसद के दौरान हम हिंदू धर्म के आधार पर कुछ विधान बनाने वाले हैं। जिन्हें 2031 तक हर हाल में लागू करना है। इन लक्ष्यों को संस्कृति संसद में सार्वजनिक किया जाएगा। 

विस्तार

वाराणसी में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि हिंदू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार है। स्त्री विभिन्न रूपों में पूजनीय है और यह मान्यता सिर्फ हिंदू संस्कृति में है। उन्होंने कहा कि मनु स्मृति में उल्लेख है कि स्त्री व पुरुष परमेश्वर के दो भाग हैं।

स्वामी वासुदेवानंद शुक्रवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय संस्कृति संसद को संबोधित कर रहे थे। देश भर से आए साधु-संतों और विद्वानों ने हिंदू धर्म पर आधारित जीवन को सबसे श्रेष्ठ बताया। अखिल भारतीय संत समिति, गंगा महासभा व श्री काशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में संस्कृति संसद का शुभारंभ जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने दीप जलाकर किया।

प्रथम सत्र में प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि विद्वानों एवं संतों को हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए विदेशों की यात्राएं करनी चाहिए। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि हिंदू धर्म की ऐसी व्यवस्था है कि बिना महिलाओं के कोई यज्ञ नहीं होता। इसलिए महिला उपेक्षा का आरोप धर्म मान्य नहीं है।

 

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