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राजभाषा सम्मेलन: अमित शाह बोले- हिंदी को लचीला बनाने की जरूरत, सावरकर नहीं होते तो हम अंग्रेजी ही बोल रहे होते

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी
Published by: उत्पल कांत
Updated Sat, 13 Nov 2021 10:27 PM IST

सार

गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को वाराणसी में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा कि देश में हिंदी और स्थानीय भाषाओं का कोई विवाद नहीं है। 
 

अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में गृहमंत्री अमित शाह
– फोटो : अमर उजाला

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वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के शुभारंभ सत्र में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आजादी और देश के इतिहास को राजभाषा में अनुवाद करने के लिए मुहिम चलनी चाहिए। राष्ट्रीय एकात्मकता के लिए देश के कोने-कोने में बिखरी हुई इतिहास की घटनाओं और पुस्तकों को राजभाषा में अनुवादित किया जाए।

उन्होंने कहा कि हिंदी की स्वीकृति के लिए उसे और लचीला बनाना पड़ेगा। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वीर सावरकर ने स्वभाषा और राजभाषा के लिए बहुत बड़ा काम किया। उन्होंने हिंदी का शब्दकोश बनाया। कई नए शब्दों की रचना कर हिंदी को समृद्ध बनाने का प्रयास किया। अगर वीर सावरकर नहीं होते तो शायद हम अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग कर रहे होते। उन्होंने कहा कि राज्यों और विदेशी भाषा के शब्दों से परहेज नहीं करें। उनके उपयोग का माध्यम हिंदी बना लेंगे तो भाषा अपना रास्ता तय कर लेगी।

हिंदी और हमारी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं
गृहमंत्री ने कहा कि हिंदी और स्थानीय भाषाओं के बीच विवाद और राजनीति करने के बहुत प्रयास हो रहे हैं। हिंदी और हमारी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है और हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है। उन्होंने कहा कि राजभाषा और स्थानीय भाषा एक दूसरे के पूरक हैं।

उन्होंने कहा कि कोई भी सरकारी परिपत्र, अधिसूचना तब तक जन उपयोगी नहीं होती है, जब तक वो जन आंदोलन में परिवर्तित नहीं होती है। आजादी के अमृत महोत्सव में 130 करोड़ भारतीयों को यह तय करना है कि देश की आजादी के 100 साल में भारत कैसा होगा। यह अमृत काल हमारे सभी लक्ष्यों की सिद्धि का माध्यम होगा।

गृहमंत्री अमित शाह ने अभिभावकों से अपील की और कहा कि बच्चे चाहे किसी भी माध्यम में पढ़ते हो, घर के अंदर उनसे अपनी भाषा में बात करिए और उनका आत्मविश्वास बढ़ाइए। उसके मन में अपनी भाषा बोलने के लिए जो झिझक है, उसे निकाल दीजिए।

उन्होंने कहा कि इससे भाषा का तो भला होगा ही, उससे ज्यादा भला बच्चों का होगा, क्योंकि मौलिक चिंतन अपनी भाषा से ही आ सकता है। दूसरी भाषा रटा-रटाया ज्ञान तो दे सकती है मगर ज्ञान को अर्जित करना और उसे आगे बढ़ाने की यात्रा मौलिक चिंतन से ही हो सकती है।
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गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि हिंदी की पढ़ाई और पाठ्यक्रम तैयार करने की चिंता पंडित मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में की थी। यहां तैयार हुए पाठ्यक्रम को पूरे देश भर के विश्वविद्यालयों ने स्वीकार किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर तैयार नई शिक्षा नीति में भी राजभाषा और स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता दी गई है। 
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें उन्होंने कहा कि वैसे तो मै गुजराती हूं और लोग यही जानते हैं कि मेरे कई शब्द  हिंदी से नहीं होंगे लेकिन  सब समझ लेते हैं। उन्होंने कहा मुझे गुजराती से ज्यादा हिंदी पसंद है। गृह मंत्री ने कहा कि रामचरित मानस में आदर्श पति, भाई, पुत्र सहित अन्य चरित्र बताए गए हैं। इसमें शत्रु के रूप में रावण को बताया गया हैं। इसी दौरान उन्होंने लक्ष्मण की जगह भरत का नाम भी लिया। उन्होंने बताया कि भगवान राम ने भरत को रावण के पास सुशासन के ज्ञान के लिए भेजा। 

विस्तार

वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के शुभारंभ सत्र में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आजादी और देश के इतिहास को राजभाषा में अनुवाद करने के लिए मुहिम चलनी चाहिए। राष्ट्रीय एकात्मकता के लिए देश के कोने-कोने में बिखरी हुई इतिहास की घटनाओं और पुस्तकों को राजभाषा में अनुवादित किया जाए।

उन्होंने कहा कि हिंदी की स्वीकृति के लिए उसे और लचीला बनाना पड़ेगा। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वीर सावरकर ने स्वभाषा और राजभाषा के लिए बहुत बड़ा काम किया। उन्होंने हिंदी का शब्दकोश बनाया। कई नए शब्दों की रचना कर हिंदी को समृद्ध बनाने का प्रयास किया। अगर वीर सावरकर नहीं होते तो शायद हम अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग कर रहे होते। उन्होंने कहा कि राज्यों और विदेशी भाषा के शब्दों से परहेज नहीं करें। उनके उपयोग का माध्यम हिंदी बना लेंगे तो भाषा अपना रास्ता तय कर लेगी।

हिंदी और हमारी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं

गृहमंत्री ने कहा कि हिंदी और स्थानीय भाषाओं के बीच विवाद और राजनीति करने के बहुत प्रयास हो रहे हैं। हिंदी और हमारी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है और हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है। उन्होंने कहा कि राजभाषा और स्थानीय भाषा एक दूसरे के पूरक हैं।

उन्होंने कहा कि कोई भी सरकारी परिपत्र, अधिसूचना तब तक जन उपयोगी नहीं होती है, जब तक वो जन आंदोलन में परिवर्तित नहीं होती है। आजादी के अमृत महोत्सव में 130 करोड़ भारतीयों को यह तय करना है कि देश की आजादी के 100 साल में भारत कैसा होगा। यह अमृत काल हमारे सभी लक्ष्यों की सिद्धि का माध्यम होगा।

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