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दो कांस्टेबलों के फर्जी एनकाउंटर के मामले में पंजाब के पूर्व एसपी को 30 साल से अधिक की जेल

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पंजाब में 32 साल पुराने फेक एनकाउंटर केस में बड़ा फैसला सामने आया है। रिटायर्ड SP समेत 5 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। 1992 में हुए इस मामले में 7 लोगों को एनकाउंटर में मारा गया था, जिसे फर्जी करार दिया गया। इस केस में कुल 10 पुलिसकर्मियों पर मुकदमा चला था।

पंजाब पुलिस के एक पूर्व अधीक्षक को 1993 में एक फर्जी मुठभेड़ में दो कांस्टेबलों की निर्मम हत्या के जुर्म में बुधवार को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई। यह फैसला एक 32 वर्षीय व्यक्ति की गवाही में सुनाया गया, जो अपने पिता से कभी नहीं मिला था और जिसकी हत्या उसके जन्म से कुछ महीने पहले ही कर दी गई थी। मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व एसपी परमजीत सिंह (67), जो उस समय ब्यास के एसएचओ थे, को कांस्टेबल सुरमुख सिंह (26) और सुखविंदर सिंह (20) का अपहरण कर उनकी हत्या करने का दोषी ठहराया। दोनों को 18 अप्रैल, 1993 को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था, उन्हें “अज्ञात आतंकवादी” बताकर झूठा करार दिया गया था और लोपोके के पास एक फर्जी मुठभेड़ के बाद लावारिस शवों के रूप में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था।
सुरमुख के बेटे चरणजीत सिंह के लिए यह फैसला कड़वा-मीठा था। अपने पिता पर “आतंकवादी” का ठप्पा लगने के साये में पले-बढ़े, उन्होंने 20 साल की उम्र में पंजाब पुलिस की परीक्षा पास की, लेकिन उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई जब उनकी सत्यापन रिपोर्ट में उन्हें “मुठभेड़ में मारे गए एक आतंकवादी का बेटा” बताया गया। अब, वह एक निजी ड्राइवर के रूप में काम करते हैं और 9,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पंजाब में उग्रवाद के दौर में हुई हिरासत में हत्याओं की जाँच कर रही सीबीआई ने पाया कि कांस्टेबलों को परमजीत और उनकी टीम ने कथित स्कूटर चोरी के संदेह में उठाया था। बाद में मालिक ने गवाही दी कि कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी। फिर भी, कुछ ही दिनों में, वे लोग मारे गए, उनकी मौत को झूठी “अज्ञात” रिपोर्टों के नीचे दबा दिया गया।

CASE BRIEF: State vs Bhupinderjit Singh & Others (Fake Encounter Case – 32 Years Old)

A. मामले का पृष्ठभूमि (Background of the Case):
यह मामला 1992 में पंजाब में उग्रवाद के दौर का है, जब पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ (Fake Encounter) में निर्दोष व्यक्तियों की हत्या कर दी गई थी।
आरोप था कि पुलिस अधिकारियों ने पीड़ितों को अवैध रूप से हिरासत में लेकर, गैरकानूनी ढंग से मुठभेड़ दिखाकर उनकी हत्या कर दी और साक्ष्यों को मिटाने का प्रयास किया।
पीड़ितों के परिवारों ने न्यायालय में याचिकाएं दायर कीं और मामला सी.बी.आई. को सौंपा गया।

B. अभियुक्त (Accused Persons):

  1. भूपिंदरजीत सिंह (पूर्व एस.एस.पी.)
  2. दविंदर सिंह (तत्कालीन डी.एस.पी.)
  3. सूबा सिंह (इंस्पेक्टर)
  4. गुलबर्ग सिंह (ए.एस.आई.)
  5. रघबीर सिंह (ए.एस.आई.)

C. प्रमुख आरोप (Charges):
आपराधिक साजिश (Section 120B IPC)
हत्या (Section 302 IPC)
साक्ष्य नष्ट करना (Section 201 IPC)
रिकॉर्ड में हेराफेरी (Section 218 IPC)

D. प्रक्रिया (Proceedings):
2002 में सी.बी.आई. ने 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।
केस में विभिन्न कारणों से सुनवाई में विलंब होता रहा।
साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर 5 अधिकारियों के खिलाफ आरोप सिद्ध हुए।

E. निर्णय (Judgment):
मोहाली स्थित सी.बी.आई. कोर्ट ने 1 अगस्त 2025 को 5 पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया।
दोषियों को रिमांड पर भेजा गया है।
सजा पर बहस के लिए अगली सुनवाई 4 अगस्त को निर्धारित है।

IMPACT ANALYSIS (प्रभाव विश्लेषण):

  1. कानूनी प्रभाव (Legal Impact): —यह फैसला दिखाता है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में पुलिस अधिकारियों को भी कानून के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। यह फर्जी मुठभेड़ों में पारदर्शिता और न्यायिक निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित करता है। तथा केस का यह फैसला ‘Rule of Law’ (कानून का शासन) के सिद्धांत को मजबूत करता है।
  2. प्रशासनिक प्रभाव (Administrative Impact):—
    पुलिस तंत्र में जवाबदेही (Accountability) और पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक चेतावनी है।
    भविष्य में पुलिस मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच कराने की मांगों को बल मिलेगा।
    फर्जी मुठभेड़ों की घटनाओं पर रोकथाम के लिए पुलिस सुधारों की आवश्यकता को उजागर करता है।
  3. सामाजिक प्रभाव (Social Impact): —पीड़ित परिवारों के लिए यह न्याय एक उदाहरण है कि न्याय में भले ही देरी हो, परंतु इनकार नहीं हो सकता, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सिविल सोसायटी के लिए यह एक बड़ी जीत मानी जा रही है तथा यह फैसला समाज में पुलिसिया अत्याचारों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाएगा।
  4. राजनीतिक प्रभाव (Political Impact): —यह निर्णय सरकारों पर पुलिस सुधार (Police Reforms) लागू करने का दबाव बढ़ाएगा एवं राजनीतिक स्तर पर यह संकेत देगा कि सत्ता में बैठे लोगों की भी जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।

निष्कर्ष: —यह केस “न्याय में देरी, परंतु न्याय की जीत” (Justice Delayed but Not Denied) का प्रतीक बन चुका है। इससे न केवल पीड़ित परिवारों को राहत मिली है, बल्कि यह निर्णय पुलिस कार्यप्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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